Krishna Janmashtami 2025: देवकी की आठवीं संतान के रूप में ही क्यों जन्मे कृष्ण, जानिए आठ के साथ जुड़े गहरे रहस्य

Krishna Janmashtami 2025: कृष्ण का देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म भी यूं ही नहीं हुआ था। आठ की संख्या बहुत खास है। कृष्ण, पूर्ण अवतार के रूप में आए थे, जो संसार के चक्र में बंधने वाले नहीं थे, बल्कि उसे फिर से स्थापित करने वाले थे।

अपडेटेड Aug 08, 2025 पर 8:59 PM
Story continues below Advertisement
कृष्ण का जन्म देवकी के आठवें पुत्र के रूप में भी यूं ही नहीं हुआ।

सनातन धर्म में बिना कारण के कुछ भी नहीं होता है। कोई अवतार अकारण नहीं हुआ, कोई घटना बेवजह नहीं होती और हमारे आसपास हो रही हर हलचल का ब्रह्मांड से जुड़ाव होता है। यहां तक कि कृष्ण का देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म भी यूं ही नहीं हुआ था। यह एक दैवीय संरचना थी, जो कई परतों में नाटकीयता को अपने भीतर समेटे, कर्म और ईश्वर के न्याय का प्रत्यक्ष प्रमाण थी। मगर आठवां ही क्यों? पहला क्यों नहीं, जिससे छह अबोध, नन्हे शिशुओं को असमय मौत से बचाया जा सकता? या सबसे अंत में आते जब कंस का आतंक खत्म हो जाता। इसका जवाब भावनात्मक न हो कर धार्मिक है।

आठ में समाया है सारा ब्रह्मांड

हिंदू कॉस्मोलॉजी के अनुसार संख्याओं की अपनी ध्वनि या कंपन है। इस मामले में आठ की संख्या बहुत खास है।

  • अष्ट लक्ष्मी : सम्पन्नता के आठ प्रकार
  • अष्ट सिद्धि : आठ दैवीय शक्तियां
  • अष्टांग योग : मुक्ति के आठ मार्ग
  • अष्ट दिग्पाल : आठ दिशाओं के रक्षक

हमारे शास्त्रों में आठ की संख्य को उस सीमा के तौर पर देखा जाता है, जो भौतिक दुनिया से मुक्त कर पारलौकिक की तरफ जाने का रास्ता है। आठवां संसार का नहीं है, यह उससे परे जो है, उस तक पहुंचने का रास्ता है। कृष्ण, पूर्ण अवतार के रूप में आए थे, जो संसार के चक्र में बंधने वाले नहीं थे, बल्कि उसे फिर से स्थापित करने वाले थे। सिर्फ आठवीं संतान ही इस भार को सह सकती थी।


पहला नहीं, ताकि धर्म पूरी तरह से असहाय हो जाए

कृष्ण अगर सबसे पहले आ जाते, तो कंस के अत्याचारों के बारे में कोई जान ही नहीं पाता। पाप का अंत होने से पहले उसका खुलासा होना जरूरी है। भागवत पुराण के मुताबिक, जन्म के बाद मार दिए गए कृष्ण के वो छह भाई-बहन, कोई साधारण शिशु नहीं थे। वे कालनेमी के पुत्रों का पुनर्जन्म थे, जिन्हें हिरण्यकश्यप ने श्राप दिया था अगले जन्म में पैदा होते ही मार दिए जाने का। उनकी मृत्यु पिछले कमों से उनकी मुक्ति थी। धर्म किसी को भी यूं ही भुगतने नहीं देता है। कृष्ण ने सबसे अंत में आने का चुनाव कर कर्म को अपना काम करने दिया। उनकी देरी छिपी हुई दया थी, जिसने एक नये दिव्य युग के शुरू होने से पहले पिछली गलतियों को खत्म करने का मौका दिया।

अंत भी नहीं आए क्योंकि...

कृष्ण अगर सबसे आखिर में आते तो कंस अंत तक बिना किसी चुनौती के शासन करते रहते। सबकुछ खत्म होने से ठीक पहले कृष्ण आए, किसी अद्भुत चमत्कार की तरह। महाभारत में उन्होंने कहा है, "संभवामि युगे युगे", यानी मैं तब प्रकट होता हूँ जब धर्म का पतन हो रहा होता है। उसके खत्म हो जाने के बाद नहीं। जब लोगों की आस टूटने लगती है और उन्हें धर्म की जरूरत आवश्यकता महसूस होती है।

जेल में एक असहाय स्त्री से क्यों ?

देवकी और वसुदेव भी कोई साधारण माता-पिता नहीं थे। उनका चुनाव नियति ने किया था। कृष्ण ने डर के माहौल में जन्म लिया और आशा की किरण लेकर आए। जेल में जन्म लिया ताकि संसार को बंधन में भी आजादी से जीना सिखा सकें। जेल के दरवाजों का अपने आप किसी चमत्कार की तरह खुलना बताता है कि धर्म के सामने कोई बंधन, कोई दीवार नहीं टिकती है।

  • समय में छिपा एक संदेश
  • कृष्ण का आठवीं संतान के रूप में आना कोई सामान्य बात नहीं थी। यह एक संकेत है, जो बताता है :
  • अंधेरे को हावी होने दो, लेकिन उससे निराश मत हो।
  • विश्वास रखो गहरे अंधेरे में भी, ईश्वर आने की तैयारी कर रहा है।
  • आठवां अंक वह है जहां चक्र टूटते हैं, और भगवान का आशीर्वाद प्रवेश करती है।
  • इसलिए कृष्ण को मुरलीधर कहा जाता है, लेकिन कर्म-क्षय भी, जो कर्म के चक्र को समाप्त करता है।
  • वे पहले नहीं आए। उन्होंने अंतिम होने का भी इंतजार नहीं किया। वे सही समय पर आए, जैसा कि धर्म हमेशा करता है।

Raksha Bandhan 2025: राखी बांधने के लिए मिलेंगे ये 4 बेहद शुभ मुहूर्त, नोट कर लें समय

MoneyControl News

MoneyControl News

First Published: Aug 08, 2025 8:59 PM

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।