आज के समय में जन्मदिन मनाना बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी के लिए खास बन चुका है। इस अवसर पर केक काटना, मोमबत्तियां जलाना और परिवार और दोस्तों के साथ खुशियाँ बाँटना अब एक आम परंपरा बन गई है। हालांकि, क्या आपने कभी सोचा है कि ये परंपरा कब शुरू हुई थी और किसने सबसे पहले जन्मदिन मनाया था? इतिहास और पुरातत्व से जुड़े रिकॉर्ड बताते हैं कि जन्मदिन मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसके पीछे धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारण भी हैं।
प्राचीन ग्रीस में लोग भगवान की पूजा के लिए मोमबत्तियां जलाते थे और उन्हें प्रतीक के रूप में रखते थे। बाद में मध्यकालीन जर्मनी में बच्चों के जन्मदिन पर केक और मोमबत्तियों के साथ जश्न मनाने की परंपरा शुरू हुई। आज भी ये परंपरा खुशियों और आस्था का प्रतीक बनी हुई है।
ग्रीस से शुरू हुआ मोमबत्ती जलाने का रिवाज
जन्मदिन पर मोमबत्तियां जलाने की प्रथा प्राचीन ग्रीस से आई थी। उस समय लोग भगवान की पूजा में जलती हुई मोमबत्तियां लेकर जाते और उन्हें भगवान के प्रतीक के रूप में सजाते थे। बाद में इन मोमबत्तियों को बुझा दिया जाता था, ताकि उनका धुंआ फैलकर शुभ संदेश और प्रार्थनाएं ऊपर तक पहुंचें। इसे लोगों की आस्था और विश्वास से जोड़ा जाता था।
जर्मनी में जन्मा केक और मोमबत्ती का जश्न
केक काटने और मोमबत्तियां बुझाने की प्रथा मध्यकालीन जर्मनी में शुरू हुई। 1746 में पहली बार केक पर मोमबत्तियां लगाकर जन्मदिन मनाया गया था। ये जन्मदिन जर्मनी के धार्मिक और सामाजिक सुधारक जिंजोनडॉर्फ का था। उस समय बच्चों के जन्मदिन पर एक विशेष समारोह होता था, जिसमें केक और मोमबत्तियां केंद्रीय भूमिका निभाती थीं।
इच्छाओं को पूरा करने का प्रतीक
उस समय केक पर जलती मोमबत्तियों को दिनभर रखा जाता और शाम को उन्हें बुझाया जाता। माना जाता था कि मोमबत्ती का धुंआ ऊपर की ओर जाता है और आपकी इच्छाओं को भगवान तक पहुंचाता है। यही कारण है कि आज भी जन्मदिन पर मोमबत्तियां जलाना और केक काटना शुभ और खुशी का प्रतीक माना जाता है।