गालियों में टॉप करने वाला राज्य कौन? ‘गाली बंद घर’ सर्वे का खुलासा उड़ाएगा होश
Top abusive cities in india: भारत में लोग कैसे बोलते हैं, ये उनकी सोच और माहौल का आईना होता है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि सबसे ज्यादा गालियां कहां दी जाती हैं? ‘गाली बंद घर अभियान’ नाम के सर्वे ने इसका खुलासा किया है, जो बताता है कि कौन-से राज्य गाली-गलौज में सबसे आगे हैं
Top abusive cities in india: इस लिस्ट में कश्मीर सबसे नीचे रहा, जहां केवल 15% लोगों ने गालियों के प्रयोग को स्वीकारा।
भारत एक ऐसा देश है जहां हर कुछ किलोमीटर पर भाषा, बोली और व्यवहार बदल जाता है। यहां लोगों की ज़ुबान से न सिर्फ़ उनके विचार, बल्कि उनकी संस्कृति और परवरिश भी झलकती है। पर सोचिए, जब यही ज़ुबान गालियों से भरी हो, तो क्या वह आदत बन जाती है या जरूरत? क्या आप जानते हैं कि देश के किस हिस्से में लोग सबसे ज्यादा गालियां देते हैं? ये सवाल जितना चौंकाने वाला है, उसका जवाब उतना ही दिलचस्प है। 'गाली बंद घर अभियान' नाम के एक अनोखे सर्वे के ज़रिए इस राज़ से पर्दा उठाया गया है।
ये अभियान न तो किसी मजाक के लिए था और न ही किसी ट्रेंड का हिस्सा, बल्कि समाज में भाषा की गिरावट को समझने और सुधारने की एक गंभीर कोशिश थी। इसमें 11 साल तक देश के अलग-अलग कोनों से हजारों लोगों की सोच और बोलचाल पर नज़र रखी गई।
किसने शुरू किया ये अभियान?
इस अनूठी पहल की शुरुआत वर्ष 2014 में की थी डॉ. सुनील जागलान ने, जो 'सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन' और महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस हैं। ये अभियान पूरे 11 साल तक चला और इसमें देशभर के 70,000 लोगों से बातचीत कर डेटा जुटाया गया। इनमें छात्र, शिक्षक, डॉक्टर, पुलिसकर्मी, ऑटो ड्राइवर, पंचायत सदस्य और यहां तक कि सफाईकर्मी भी शामिल रहे।
टॉप पर क्यों है दिल्ली?
सर्वे के मुताबिक, दिल्ली इस लिस्ट में पहले स्थान पर है। यहां 80% लोगों ने माना कि वे अपनी रोजमर्रा की बातचीत में गालियों का प्रयोग करते हैं। ट्रैफिक, भीड़-भाड़, तनाव और तेज लाइफस्टाइल के कारण दिल्ली के लोग अधिक चिड़चिड़े रहते हैं, जिसका असर उनकी भाषा पर साफ दिखाई देता है।
टॉप 10 राज्यों की सूची
सर्वे के अनुसार गाली-गलौज के मामले में दिल्ली सबसे ऊपर है, जहां 80% लोग रोजमर्रा की बातचीत में गालियों का प्रयोग करते हैं। इसके बाद पंजाब 78% के साथ दूसरे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही 74% के साथ तीसरे स्थान पर हैं। राजस्थान में 68%, हरियाणा में 62%, और महाराष्ट्र में 58% लोगों ने माना कि वे गालियों का उपयोग करते हैं। वहीं गुजरात 55%, मध्य प्रदेश 48% और उत्तराखंड 45% के साथ इस सूची में शामिल हैं। इस सर्वे से स्पष्ट है कि ये राज्य बातचीत के दौरान गाली-गलौज का सबसे अधिक उपयोग करते हैं।
कश्मीर सबसे सभ्य
इस लिस्ट में कश्मीर सबसे नीचे रहा, जहां केवल 15% लोगों ने गालियों के प्रयोग को स्वीकारा। धार्मिक शांति, पारिवारिक मर्यादा और सांस्कृतिक अनुशासन इसकी बड़ी वजहें मानी गईं।
गालियों की वजहें भी अलग-अलग राज्य में अलग
पंजाब और हरियाणा में गालियां कभी-कभी मजाक और दोस्ती का हिस्सा होती हैं।
यूपी और बिहार में राजनीति, पारिवारिक तनाव और सड़क झगड़े गाली देने की बड़ी वजह हैं।
राजस्थान के गांवों में गुस्से और मजाक में हल्की-फुल्की गालियां सामान्य बात मानी जाती हैं।
महाराष्ट्र और गुजरात में शहरी तनाव और यंग जनरेशन का स्लैंग कल्चर जिम्मेदार है।
कश्मीर में लोगों के शांत स्वभाव और धार्मिक आदर्शों के कारण गालियां कम सुनने को मिलती हैं।
महिलाएं भी पीछे नहीं
सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि 30% महिलाओं ने भी स्वीकार किया कि वे कभी न कभी गाली का प्रयोग करती हैं। इससे ये साफ होता है कि गाली देना अब केवल पुरुषों की आदत नहीं रही, बल्कि ये एक समाजिक व्यवहार बनता जा रहा है।
गाली बंद घर अभियान का उद्देश्य क्या था?
इस अभियान का मकसद सिर्फ गाली रोकना नहीं था, बल्कि सभ्य भाषा को बढ़ावा देना, परिवारों में संवाद को बेहतर बनाना, और बच्चों को संस्कारों के साथ बड़ा करना भी था। 60 हजार से ज्यादा जगहों पर "गाली बंद घर" के चार्ट लगाए गए, ताकि लोग बार-बार देखकर अपनी भाषा सुधार सकें।
गाली – आदत या बीमारी?
डॉ. जागलान का कहना है कि गाली देना कोई संस्कार नहीं, बल्कि एक आदतनुमा बीमारी है। बच्चे जब लगातार गालियां सुनते हैं, तो वो उनकी भाषा का हिस्सा बन जाती हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने इस अभियान की नींव रखी थी।
समाज को सोचने पर मजबूर करता है ये सर्वे
"गाली देना" अब केवल गुस्से या झगड़े का तरीका नहीं रहा, ये धीरे-धीरे हमारी बातचीत का हिस्सा बनता जा रहा है। ऐसे में "गाली बंद घर" जैसा अभियान हमें सोचने पर मजबूर करता है क्या हम अपनी भाषा को सुधार सकते हैं या ये हमारी पहचान बनती जा रही है?
आप क्या सोचते हैं?
क्या आपके राज्य में भी गालियां आम हो चुकी हैं? क्या आपने भी अपनी रोज की बातचीत में बदलाव महसूस किया है? अब वक्त आ गया है भाषा की शुद्धता की ओर लौटने का क्योंकि शब्दों में ताकत होती है, और यह ताकत सम्मान दे भी सकती है और छीन भी सकती है।