सड़क पर किसी को काला कोट-पैंट और सफेद शर्ट पहने देख लें, तो तुरंत अंदाजा हो जाता है कि वो वकील है। अदालतों में जज भी इसी पोशाक में नजर आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों वकील और जज हमेशा काला ही कोट पहनते हैं? क्या ये सिर्फ एक ड्रेस कोड है या इसके पीछे कोई गहरा कारण छिपा है? दरअसल, काले रंग की ये पोशाक केवल पहचान की निशानी नहीं, बल्कि अनुशासन, शक्ति और निष्पक्षता का प्रतीक मानी जाती है। यह परंपरा ब्रिटेन से भारत आई, जब न्यायपालिका ने ब्रिटिश दौर की कई व्यवस्थाएं अपनाईं। इसके अलावा इतिहास और कानून दोनों ही इस ड्रेस कोड को मजबूत आधार देते हैं।
साल 1961 के एडवोकेट एक्ट के बाद भारत में भी वकीलों के लिए काला कोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया। यह ड्रेस न सिर्फ उन्हें अन्य पेशों से अलग करती है, बल्कि उनकी जिम्मेदारी और निष्पक्षता का प्रतीक भी बन गई है।
काले रंग को आत्मविश्वास, शक्ति और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है, जबकि सफेद रंग शुद्धता और पवित्रता का। वकील और जज जब सफेद शर्ट के ऊपर काला कोट पहनते हैं, तो ये संदेश देता है कि वे न्याय की रक्षा करेंगे और किसी भी गलत के साथ खड़े नहीं होंगे। काला रंग "अंधे कानून" की धारणा को भी दर्शाता है कानून सबके लिए समान है और किसी का पक्ष नहीं लेता।
काला कोट पहनने की परंपरा ब्रिटेन से आई। 1694 में क्वीन मैरी द्वितीय की मृत्यु के बाद, उनके पति विलियम ने सभी जजों को अंतिम संस्कार में काली पोशाक पहनने का आदेश दिया। राष्ट्रीय शोक के दौरान ये ड्रेस कोर्ट में भी जारी रही और धीरे-धीरे ये परंपरा बन गई। इसके अलावा ब्रिटेन की ठंड के मौसम में काले कपड़े धूप सोखकर गर्म रखते थे।
पहचान और अनुशासन के लिए कानून
साल 1961 में एडवोकेट एक्ट के तहत भारत में भी वकीलों के लिए काला कोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया। इससे वो अन्य प्रोफेशन से अलग आसानी से पहचाने जा सकते हैं। जैसे ट्रेन में काला कोट देखकर हमें टिकट चेकर की याद आती है, वैसे ही सड़क पर इसे देखकर वकील या जज की पहचान तुरंत हो जाती है।
काला कोट केवल पेशेवर पहचान नहीं, बल्कि न्याय की जिम्मेदारी का प्रतीक भी है। ये याद दिलाता है कि वकील और जज का काम पक्षपात रहित, निडर और सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। भारत जैसे गर्म देशों में ये ड्रेस असुविधाजनक जरूर हो सकती है, लेकिन इसके पीछे की परंपरा और संदेश इसे अब भी अनिवार्य बनाए हुए हैं।