ग्रामीण भारत में डिजिटल ऑनबोर्डिंग अब भी बड़ी चुनौती, गरीबों पर सबसे अधिक असर: जीरोधा के CEO नितिन कामत
जीरोधा (Zerodha) के को-फाउंडर और सीईओ नितिन कामत (Nithin Kamath) का कहना है कि फिनटेक कंपनियों ने देश में वित्तीय समावेशन को तेजी से बढ़ाया है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। हालांकि, इसके बावजूद अभी भी ग्रामीण और कमजोर वर्गों के लिए डिजिटल ऑनबोर्डिंग की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण बनी हुई है
नितिन कामत (Nithin Kamath), जीरोधा (Zerodha) के को-फाउंडर और सीईओ
जीरोधा (Zerodha) के को-फाउंडर और सीईओ नितिन कामत (Nithin Kamath) का कहना है कि फिनटेक कंपनियों ने देश में वित्तीय समावेशन को तेजी से बढ़ाया है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। हालांकि, इसके बावजूद अभी भी ग्रामीण और कमजोर वर्गों के लिए डिजिटल ऑनबोर्डिंग की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। कामत का कहना है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी को इस तरह डिजाइन करने की जरूरत है जिससे यह यूजर-केंद्रित हो और उन समुदायों की जरूरतों और सीमाओं को ध्यान में रखे जो अभी भी तकनीकी रूप से पिछड़े हैं।
नितिन कामत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में लिखा, "भारत की फाइनेंशिल सर्विस इंडस्ट्री ने आधार ई-साइन (Aadhaar e-Sign), ई-केवाईसी (eKYC) जैसी डिजिटल ऑनबोर्डिंग सुविधाओं से काफी लाभ उठाया है। इसमें हमारी कंपनी जीरोधा भी शामिल हैं। इसी के चलते देश के टियर-2 और टियर-3 शहरों और ग्रामीण इलाकों में वित्तीय समावेशन तेजी से बढ़ा है। जो लोग पहले औपचारिक फाइनेंशियल सिस्टम से नहीं जुड़े थे, वे भी इससे जुड़े।"
हालांकि, कामत ने यह भी कहा कि ग्रामीण भारत में डिजिटल सिस्टम के संचालन में कई व्यावहारिक चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि भले ही डिजिटलीकरण से धोखाधड़ी और रिसोर्स बर्बादी में कमी आई है, लेकिन कोई भी तकनीकी सिस्टम पूरी तरह परफेक्ट नहीं होता।
डिजिटल सिस्टम की समस्याएं
कामत ने बताया कि शहरी लोग अक्सर इन डिजिटल सुविधाओं को सामान्य मान लेते हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में OTP वेरिफिकेशन और बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन अब भी बड़ी चुनौती हैं।
उन्होंने लिखा, “हममें से कई लोग शहरों में बैठकर इन सुविधाओं को सामान्य मान लेते हैं। लेकिन जब आप ग्रामीण भारत की तरफ देखते हैं, तो आपको समझ आता है कि ओटीपी (OTP) वेरिफिकेशन या बायोमेट्रिक डिवाइस कितनी बार विफल हो जाते हैं।”
उनके मुताबिक, “बायोमेट्रिक डिवाइस कई बार आदर्श परिस्थितियों में भी सही तरीके से काम नहीं करते। वहीं OTP सिस्टम में भी समस्या है। देश के कई दूरदराज इलाकों में मोबाइल नेटवर्क की दिक्कतों के चलते वेरिफिकेशन में देरी होती है, जिससे लाभार्थियों को भुगतान या सेवा पाने में रुकावट आती है।”
कामत ने कहा कि ऐसे तकनीकी रुकावटों का असर सबसे ज्यादा गरीब और कमजोर तबकों पर पड़ता है, जो सरकारी वित्तीय योजनाओं पर निर्भर रहते हैं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “SEBI ने ब्रोकर्स को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वे सिर्फ ऐप के जरिए ही नहीं, बल्कि कई माध्यमों के जरिए सेवाएं मुहैया कराएं। क्योंकि किसी एक इंटरफेस पर निर्भर रहना जोखिम भरा है।” उन्होंने कहा कि SEBI के ये नियम इसलिए अहम हैं ताकि अगर किसी एक सिस्टम में दिक्कत आए तो निवेशक दूसरे माध्यम से अपनी सेवाओं तक पहुँच सकें।
तकनीक फायदेमंद है, लेकिन संतुलन जरूरी
कामत ने अपनी पोस्ट में कहा कि हर तकनीक के अपने फायदे और नुकसान होते हैं, खासकर ग्रामीण भारत जैसे इलाकों में, जहां आर्थिक रूप से कमजोर आबादी रहती है।
उन्होंने लिखा, “फायदे और नुकसान के बीच संतुलन बेहद जरूरी है क्योंकि छोटी-छोटी तकनीकी दिक्कतें भी इन समुदायों पर बड़ा असर डाल सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि हम इन सिस्टम्स को बनाते समय उनकी सीमाओं को पहचानें और ऐसे विकल्प तैयार करें जो किसी तरह की रुकावट को कम कर सकें।”
यूजर-फर्स्ट डिजाइन बनाने का दिया सुझाव!
कामत ने सलाह दी कि फिनटेक कंपनियों और नियामकों को ‘फर्स्ट प्रिंसिपल्स’ और ‘ग्रेसफुल डिग्रेडेशन’ नजरिया अपनाना चाहिए। यानी ऐसी तकनीक तैयार करें जो किसी गड़बड़ी के बावजूद भी बुनियादी सेवाएं जारी रख सके। उन्होंने कहा, “सार्वजनिक तकनीक को नागरिक सेवाओं के लिए डिजाइन करते समय यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सिस्टम असफल होने की स्थिति में भी नागरिकों को सेवाएँ मिलती रहें।”
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