हम हर दिन मोबाइल नंबर डायल करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में मोबाइल नंबर हमेशा 10 अंकों के ही क्यों होते हैं? अगर नंबर में कोई अंक छूट जाए या ज्यादा जोड़ दिया जाए, तो वह नंबर काम नहीं करेगा और अवैध माना जाएगा। 8, 9 या 11 अंकों के नंबर क्यों नहीं होते, इसका जवाब विज्ञान और गणित में छिपा है। दरअसल, मोबाइल नंबर सिर्फ पहचान का साधन नहीं हैं, बल्कि यह नेटवर्क को कॉल को सही दिशा में भेजने में मदद करते हैं। भारत जैसी बड़ी आबादी के लिए 10 अंकों का नंबर सिस्टम इसलिए चुना गया ताकि हर व्यक्ति को यूनिक नंबर मिल सके।
अगर नंबर 9 अंकों के होते, तो पर्याप्त संख्या उपलब्ध नहीं होती। वहीं 11 अंकों के नंबर आवश्यकता से ज्यादा होते और डायलिंग में मुश्किल बढ़ जाती। यही वजह है कि भारत में मोबाइल नंबर 10 अंकों के ही बनाए गए हैं।
हर देश अपनी आबादी और जरूरत के हिसाब से फोन नंबर का सिस्टम बनाता है। भारत में 10 अंकों के नंबर सिस्टम से कुल 10 अरब यूनिक नंबर उपलब्ध होते हैं। ये संख्या भारत जैसी बड़ी आबादी के लिए पूरी तरह पर्याप्त है। अगर नंबर 9 अंकों के होते, तो सिर्फ 100 करोड़ नंबर उपलब्ध होते, जो काफी नहीं होते। वहीं, 11 अंकों के नंबर 100 अरब संभावनाएं देते, जो जरूरत से ज्यादा और डायलिंग में जटिल होते।
मोबाइल नंबर का मतलब क्या होता है?
मोबाइल नंबर सिर्फ पहचान नहीं है, बल्कि ये नेटवर्क को बताता है कि कॉल को किस दिशा में रूट करना है।
भारत में हमेशा 10 अंकों के ही नंबर थे?
1990 तक टेलीफोन नंबर सिर्फ 6–7 अंकों के थे। लेकिन 2000 के बाद मोबाइल उपयोग में तेजी से बढ़ोतरी हुई और ग्राहकों की संख्या बढ़ गई। पुराने सिस्टम में पर्याप्त नंबर नहीं बचे थे। इसके समाधान के लिए TRAI ने 2003 के आसपास पूरे देश में 10 अंकों के मोबाइल नंबर लागू कर दिए।