आजकल भारत में सड़क और रेल यात्रा को आसान बनाने के लिए नदियों पर नए पुल बन रहे हैं। ये पुल लोगों की यात्रा को तेज और सुरक्षित बनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन बड़े पुलों की नींव गहरे पानी में कैसे डाली जाती है? जमीन पर पिलर्स लगाना आसान लगता है, लेकिन नदी के तेज बहाव और गहराई में काम करना मजदूरों के लिए बहुत खतरनाक होता है। एक छोटी सी गलती पूरे काम को बर्बाद कर सकती है। इसलिए इंजीनियर और मजदूर खास तकनीकें और सुरक्षा उपाय अपनाते हैं। ये तकनीकें पानी को रोककर एक सुरक्षित जगह बनाती हैं, जहां नींव डाली जा सके। अगली बार जब आप किसी पुल से गुजरें, तो सोचिए कि इसके पीछे कितनी मेहनत, साहस और सावधानी छिपी है।
नदी के बीच पुल की नींव डालने के लिए सबसे आम तरीका है कॉफर्डैम (Cofferdam)। ये एक अस्थायी ढांचा होता है, जो पानी को रोककर एक सूखी जगह बनाता है। इस जगह पर ही पुल की नींव बनाई जाती है। सबसे पहले इंजीनियर नदी की गहराई, बहाव की तेजी और मिट्टी की मजबूती मापते हैं। फिर तय होता है कि कितने पिलर्स होंगे और उनकी गहराई कितनी होगी। कॉफर्डैम बनाने के लिए स्टील की लंबी शीट पाइल्स (10-20 मीटर) का इस्तेमाल होता है। इन्हें हाइड्रोलिक हथौड़े या वाइब्रेटर से नदी के तल में ठोंका जाता है। ये पाइल्स एक-दूसरे में जुड़कर गोल या चौकोर दीवार बना देती हैं, जो पानी को अंदर आने से रोकती है।
दीवार तैयार होने के बाद असली काम शुरू होता है। बड़े पंपों से पानी बाहर निकाला जाता है और नदी में वापस छोड़ा जाता है, ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। जब जगह सूख जाती है, तो मजदूर सीढ़ी या क्रेन से अंदर उतरते हैं। इसके बाद रेत, कीचड़ और पत्थर हटाए जाते हैं। अगर मिट्टी कमजोर हो तो पाइल फाउंडेशन लगाया जाता है लोहे की लंबी पाइप्स को 20-50 मीटर गहराई तक ठोंककर कंक्रीट का ढांचा तैयार किया जाता है। कंक्रीट डालते समय वाइब्रेटर से हवा के बुलबुले निकाले जाते हैं, ताकि नींव मजबूत बने।
गहरे पानी के लिए कैसन तकनीक
कभी-कभी नदी का पानी बहुत गहरा होता है और कॉफर्डैम काम नहीं आता। ऐसे में कैसन (Caisson) तकनीक अपनाई जाती है। कैसन पानी रोकने वाले बड़े बॉक्स होते हैं, जो धीरे-धीरे नदी के तल पर उतरते हैं।
इस काम में खतरा हमेशा रहता है। अगर दीवार में लीकेज हो जाए या भूकंप आए, तो पूरा ढांचा गिर सकता है। इसलिए सेंसर लगे रहते हैं, जो पानी का स्तर और दीवार की मजबूती मापते हैं। इंजीनियर और मजदूर हर कदम पर सावधानी बरतते हैं ताकि नींव मजबूत और सुरक्षित बनी रहे।