शारदीय नवरात्रि का आरंभ 22 सितंबर, सोमवार यानी आज से हो रहा है, जिसमें पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा विशेष विधि से की जाएगी। आज के दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है और इसे शुभ मुहूर्त में किया जाता है ताकि पूजा सफल और मंगलमय हो।
पूजा की शुरुआत साफ-सफाई और प्रातः स्नान के बाद गंगाजल से पूजा स्थल की शुद्धि से होती है। इसके बाद पूजा चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। कलश में जल भरकर सात प्रकार के धान्य, आम के पत्ते और नारियल रखें और पूजा के दौरान मां शैलपुत्री को फूल, लाल चंदन, सिंदूर, फल और अक्षत अर्पित करें।
मां शैलपुत्री को सफेद फूल और वस्त्र चढ़ाना शुभ माना जाता है। पूजा के समय “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः” जैसे मंत्रों का जाप किया जाता है। मां शैलपुत्री की आरती कर भक्त उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मां शैलपुत्री को विशेष रूप से दूध, घी से बनी मिठाइयां और फलाहार चढ़ाया जाता है।
पहले दिन यानी आज पूजा का शुभ मुहूर्त सूर्योदय के समय से लेकर सुबह 8:20 तक है। भक्त जन इस समय में कलश स्थापना और पूजा विधि को पूरा कर सकते हैं। शाम के वक्त पुनः पूजा कर भक्त फलाहार ग्रहण करते हैं।
शैलपुत्री मां को सौभाग्य की देवता माना जाता है, जिनका जन्म हिमालय पर्वत में हुआ था। उनका स्वरूप शक्ति, संयम एवं स्थिरता का प्रतीक है। उनकी आराधना से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और साधक को सफलता, समृद्धि एवं मानसिक शांति मिलती है।
इस नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना होती है, जिनमें से प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा से पूरे नवरात्र का शुभारंभ होता है। इससे परिवार में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति बनी रहती है।