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मरे हुए बच्चे को छोड़ने से इनकार क्यों करती हैं मादा बंदर? जानें वजह

Monkey Facts: अक्सर देखा गया है कि जब किसी बंदरिया का बच्चा मर जाता है, तो वह उसके शव को घंटों या कई दिनों तक अपने साथ लेकर घूमती रहती है। ये व्यवहार लंबे समय से रहस्य बना हुआ था। एक स्टडी ने बंदरों की कई प्रजातियों का अध्ययन कर इस पहेली का कारण खोज निकाला है

अपडेटेड Aug 13, 2025 पर 9:32 AM
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Monkey Facts: लेमूर प्रजाति के बंदर अपने मृत बच्चों को साथ लेकर नहीं घूमते

आपने अक्सर देखा होगा कि जब किसी बंदरिया का बच्चा मर जाता है, तो वो उसके शव को लंबे समय तक अपने साथ लिए घूमती रहती है। कभी घंटों तक तो कभी कई दिनों तक, वो उस छोटे से शव को ऐसे संभालती है जैसे बच्चा अभी भी जिंदा हो। ये दृश्य जितना भावुक करने वाला है, उतना ही रहस्यमय भी रहा है। दशकों से वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर मादा बंदर ऐसा क्यों करती हैं। क्या ये ममता की चरम सीमा है या फिर मौत को स्वीकार न कर पाने की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया?

अब इस पहेली को सुलझाने के लिए हाल ही में एक नई स्टडी सामने आई है। इस शोध ने बंदरों की कई प्रजातियों के व्यवहार का गहराई से अध्ययन किया और वो कारण खोज निकाला, जिसकी वजह से मादा बंदर अपने मृत शावक को लंबे समय तक छोड़ नहीं पाती।

400 अध्ययनों का विश्लेषण


अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने 400 से ज्यादा पुराने अध्ययनों का विश्लेषण किया। इनमें बंदरों की 50 प्रजातियों का व्यवहार दर्ज किया गया, जिनमें ये देखा गया कि मादा बंदर अपने मृत शावकों के शव के साथ कैसी प्रतिक्रिया देती हैं।

मानसिक रूप से मौत को स्वीकार नहीं कर पाती बंदरिया

स्टडी के मुताबिक मादा बंदर अपने बच्चे की मौत को तुरंत स्वीकार नहीं कर पातीं। बच्चा चाहे नवजात हो या बड़ा, मां का व्यवहार एक जैसा रहता है। कई बार वो शव को तब तक अपने पास रखती है, जब तक वो सड़ने या सूखकर ममी न बन जाए।

1915 से 2020 तक के केस स्टडी

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की प्राइमेटोलॉजिस्ट एलिसा फर्नाडेंज फुयो ने बताया कि ये शोध 1915 से लेकर 2020 तक के घटनाक्रम पर आधारित है। शुरुआती रिपोर्ट में भी ये जिक्र था कि लाल मुंह वाले बंदर मृत शावकों को कई हफ्तों तक अपने साथ रखते हैं।

ग्रेट एप्स में सबसे ज्यादा ये व्यवहार

शोध में पाया गया कि सामान्य मकाऊ, एप्स, बुशबेबी और लेमूर सहित 80% प्रजातियां अपने मृत बच्चों को उठाए घूमती हैं। खासतौर पर ग्रेट एप्स में यह प्रवृत्ति सबसे ज्यादा देखी गई। 2020 में मादा बबून ने अपने शावक को 10 दिन तक उठाए रखा, जबकि 2017 में एक मादा मकाऊ ने चार हफ्तों तक शव को नहीं छोड़ा।

लैमूर का व्यवहार अलग

लेमूर प्रजाति के बंदर अपने मृत बच्चों को साथ लेकर नहीं घूमते, लेकिन दुख व्यक्त जरूर करते हैं। वे शव के पास जाकर कुछ समय बिताते हैं और फिर लौट जाते हैं। वैज्ञानिक इसे मदर-इन्फैंट कॉन्टैक्ट कॉल्स  कहते हैं।

कब शव जल्दी छोड़ती हैं मादा बंदर?

अगर बच्चे की मौत हादसे से हुई हो तो मां शव को जल्दी छोड़ देती है, लेकिन बीमारी से मौत पर वह शव को लंबे समय तक नहीं छोड़ती। युवा मादाएं अक्सर शव को कम समय तक उठाती हैं।

मां के दर्द को कम करने का तरीका

स्टडी के मुताबिक मादा बंदर को मौत की समझ नहीं होती जैसे इंसानों को होती है। वह अपने दुख को कम करने के लिए शव को उठाए घूमती है। कभी अगर शव छिन जाए या गिर जाए तो वह पूरे समूह को अलर्ट कर देती है। यह रिसर्च 15 सितंबर को प्रोसीडिंग्स ऑफ रॉयल सोसाइटी बी: बायोलॉजिकल साइंसेज में प्रकाशित हुई।

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