भारत के ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में पाकिस्तान ने ड्रोन और मिलाइल अटैक कर के भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश तो की, लेकिन उसकी सभी चालें फेल हो गईं। इससे एक बार फिर पाकिस्तान के डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर की गंभीर खामियां और कमजोरियां दुनिया के सामने उजागर हो गईं। बड़ी बात ये है कि पाकिस्तान अपने डिफेंस के लिए चीन के मिलिट्री हार्डवेयर पर निर्भर है। भले ही चीन से खरीदे गए हथियार और एयर डिफेंस सिस्टम सस्ते हैं, लेकिन उनकी क्वालिटी एकदम घटिया है।
एक ज्वलंत मुद्दा यह है कि चीन के एयर डिफेंस सिस्टम गुप्त और सटीक हमलों के खिलाफ उतने एक्टिव नहीं हैं। पैट्रियट के तरह पेश किया गया HQ-9B और HQ-16, भारतीय SCALP स्टील्थ क्रूज मिसाइलों और हैमर ग्लाइड बमों को रोकने में फेल रहे।
इंटरसेप्ट करने की सीमित क्षमता और जाम होने की आशंका के कारण इस सिस्टम को कम ऊंचाई वाले, भूभाग से सटे खतरों का पता लगाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
पाकिस्तान के एयर डिफेंस में भी कई तरह के कॉर्डिनेशन की कमी है, जिसका भारत की SEAD (शत्रु वायु रक्षा का दमन) रणनीति ने रडार नोड्स को निशाना बनाकर पूरे नेटवर्क को पंगु बनाकर फायदा उठाया।
इसके अलावा, प्री-प्रोग्राम फ्लाइट पाथ पर निर्भर पाकिस्तान के लड़ाकू विमान भारतीय तकनीक के सामने कमजोर हैं, जिससे वे आसानी से निशाना बन सकते हैं।
पाकिस्तान के 81 प्रतिशत हथियार चीन से इंपोर्ट होते हैं, जिससे सिर्फ निर्भरता बढ़ती है, क्वालिटी नहीं। चीन की तरफ से J-20 स्टील्थ फाइटर जैसी अत्याधुनिक तकनीक शेयर करने से इनकार करने के कारण पाकिस्तान के पास पुराने सिस्टम ही रह गए हैं, जबकि भारत के पास रूसी, पश्चिमी और घरेलू तकनीक के मिक्स ने इसकी निर्भरता के जोखिम को कम कर दिया और क्षमता को बढ़ाया है।
CNN-News18 के मुताबिक, सूत्रों से पता चलता है कि पाकिस्तान को बेचे गए चाइनीज सिस्टम को डाउनग्रेड किया गया है। उदाहरण के लिए, HQ-9P की रेंज 125 किलोमीटर है, जबकि चीन के घरेलू HQ-9B की रेंज 250-300 किलोमीटर है।
गुजरांवाला में एक पाकिस्तानी LY-80 रडार सिस्टम को खराब मोबिलिटी और काउंटर-ड्रोन क्षमताओं के कारण भारतीय हारोप लोइटरिंग मुनिशन ने नष्ट कर दिया था।
JF-17 के KLJ-7A AESA रडार का एपर्चर भारत के राफेल के RBE2-AA रडार से छोटा है, जिससे इंटरसेप्ट लिमिट और ट्रैकिंग सटीकता कम हो जाती है। सीमित फ्यूल कैपेसिटी परिचालन सीमा को सीमित करती है, जिससे बीच हवा में ही ईंधन भरने पर निर्भरता बढ़ जाती है।
एक्सपोर्टेड PL-15E मिसाइलों की रेंज चीन की घरेलू PL-15 (200-300 Km) की तुलना में कम (145 Km) है, जिससे मीटियोर मिसाइलों (200 Km) से लैस भारत के राफेल उनसे आगे निकल सकते हैं।
खराब मोबिलिटी और स्टेल्थ सुविधाओं की कमी के कारण चीनी विंग लूंग II और CH-4 ड्रोनों को भारत के आकाश SAMs और SMASH-2000 काउंटर-ड्रोन सिस्टम ने आसानी से रोक लिया।
पाकिस्तान के सीमित रक्षा बजट (भारत के 86 अरब डॉलर के मुकाबले 10.2 अरब डॉलर) के कारण भी परेशानी बढ़ गई है, जिससे रखरखाव में कमी आई है। कथित तौर पर खराब विंग लूंग ड्रोन मिशन के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गए, और पाकिस्तान में स्पेशलाइज्ड टेक्नीशियन की कमी के कारण अहम ऑपरेशनों के दौरान डाउनटाइम हुआ।
सिमुलेटर पर ट्रेनिंग लिए हुए पाकिस्तानी पायलटों को वास्तविक दुनिया के युद्ध परिदृश्यों से जूझना पड़ा, जबकि भारत के राफेल पायलटों को फ्रांस में ट्रेनिंग मिली है।