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US-China Trade War: ट्रंप ने आजमाया हर दांव, पर टूट क्यों नहीं रहा चीन?

US-China Trade War: अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर अब सिर्फ टैरिफ तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन की जंग बन चुका है। ट्रंप अपना सारा जोर आजमा रहे हैं, लेकिन शी जिनपिंग को झुका नहीं पा रहे हैं। आखिर क्या है ड्रैगन की ताकत का राज? जानने के लिए पढ़ें यह डिटेल एनालिसिस।

अपडेटेड Apr 13, 2025 पर 10:55 PM
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चीन अभी के लिए अमेरिका के किसी दबाव में नहीं दिख रहा।

Trump vs Jinping: अमेरिका और चीन के बीच चल रहा ट्रेड वॉर (US-China Trade War) अब सिर्फ टैरिफ और व्यापार तक सीमित नहीं रह गया है। यह जटिल जियोपॉलिटिकल शतरंज बन चुका है। इसमें डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग दोनों अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं। दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है, एक भी इंच नहीं।

टैरिफ की जंग: कौन झुकेगा पहले?

ट्रंप सरकार ने अब तक चीन पर 145% तक टैरिफ लगा दिए हैं। ड्रैगन ने भी पलटवार करते हुए 125% तक जवाबी शुल्क लगाए हैं। चीन अभी के लिए अमेरिका के किसी दबाव में नहीं दिख रहा। वह झुकने के बजाय एक वैकल्पिक रणनीति पर काम कर रहा है। जैसे कि आंतरिक सुधारों को बढ़ावा देना और वैश्विक साझेदारियों का विस्तार करना।


अमेरिका ने यह भी ऐलान किया है कि बाकी देशों के लिए 90 दिनों तक टैरिफ स्थगित रहेंगे, यह दिखाने के लिए कि उसका निशाना सिर्फ चीन है। शी जिनपिंग ने इसे 'अमेरिकी एकतरफा दादागिरी' करार दिया है और कहा है कि चीन दबाव में झुकेगा नहीं।

अमेरिका ने टेक कंपनियों को राहत क्यों दी?

दिलचस्प बात ये है कि अमेरिका ने स्मार्टफोन्स, कंप्यूटर, लिथियम-आयन बैटरी जैसे कुछ उपभोक्ता उत्पादों पर टैरिफ से छूट दी है। इसका सीधा फायदा Apple, Dell और Nvidia जैसी अमेरिकी टेक कंपनियों को मिलेगा। इस छूट से साफ जाहिर है कि अमेरिका अपने ही उद्योगों को पूरी तरह चोट नहीं पहुंचाना चाहता।

चीन क्यों नहीं पीछे हट रहा?

  1. अमेरिका पर सीमित निर्भरता: टैरिफ लगने से पहले अमेरिका चीन का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर था, लेकिन उसके निर्यात का हिस्सा चीन की जीडीपी में केवल 2% था। यानी ट्रंप ने बेशक ड्रैगन को गहरी चोट दी है, लेकिन जानलेवा नहीं। चीन इसे अस्थायी झटका मान रहा है।
  2. घरेलू सुरक्षा कवच: चीन ने अपनी नीति में काफी बफर तैयार कर रखे हैं। जैसे कि एक बड़ा घरेलू बाजार और सरकारी वित्तीय राहत पैकेज। साथ ही, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसे प्रोजेक्ट्स के ज़रिए चीन नए बाजारों में भी पैर पसार रहा है।
  3. दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता: शी जिनपिंग लगातार 'स्वावलंबन और कड़ी मेहनत' की बात करते रहे हैं। 'मेड इन चाइना 2025' जैसी योजनाओं के जरिए चीन तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, खासकर सेमीकंडक्टर और रक्षा उद्योगों में। इसका मतलब अमेरिका पर उसकी निर्भरता और कम होगी।
  4. कमजोरी न दिखाने की नीति: चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए यह लड़ाई सिर्फ व्यापार की नहीं, बल्कि अपनी वैश्विक छवि और आंतरिक वैधता की है। अगर चीन झुकता है, तो इसे उसकी कमजोरी माना जाएगा। चीन न तो अपनी जनता के सामने कमजोर दिखना चाहता है और न ही वैश्विक बिरादरी के सामने।
  5. वैश्विक अर्थव्यवस्था में केंद्रीय भूमिका: चीन मानता है कि उसके उत्पादन और आपूर्ति के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था उस पर निर्भर है। बीजिंग को भरोसा है कि टैरिफ का असली बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं और उद्योगों पर पड़ेगा। ऐसे में ट्रंप को देर-सबेर पीछे हटना पड़ेगा। इसलिए भी चीन टैरिफ का ज्यादा लोड नहीं ले रहा।

क्या चीन जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास में है?

कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि चीन ग्लोबल सप्लाई चेन में तेजी से हो रहे बदलाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। खासतौर पर भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएं अब इस ‘चाइना वैक्यूम’ को भरने की तैयारी में हैं। भारत को अब सिर्फ सस्ता श्रम नहीं, बल्कि एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, चीन भी अलग-थलग पड़ने से बचने के लिए कई कदम उठा रहा है।

चीन लगातार भारत के साथ रिश्तों को लेकर सकारात्मक संदेश भेज रहा है। हाल ही में चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने S. जयशंकर की वीडियो साझा की और कहा कि भारत-चीन को मिलकर अमेरिका की टैरिफ नीति से उपजे संकट से निपटना चाहिए।

चीन ने यूरोपीय संघ से भी अपील की है कि वह अमेरिका की “एकतरफा दादागिरी” के खिलाफ उसके साथ खड़ा हो। साथ ही, चीन अफ्रीका और दक्षिण एशिया में इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रेड डील्स के जरिए अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है।

चीन-अमेरिका के बीच सुलह की कोई गुंजाइश?

दोनों पक्ष आपसी नफा-नुकसान का आकलन करके बैकडोर डिप्लोमेसी के जरिए कोई समझौता कर सकते हैं। इसमें कुछ टैरिफ हटाए जा सकते हैं। लेकिन ये डील अस्थायी होगी और कभी भी टूट सकती है।

वहीं, ट्रंप खुद मजबूर होकर टैरिफ घटा सकते हैं। उन्हें अपने देश में राजनीतिक और आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है। खासकर महंगाई, शेयर बाजार में गिरावट और सप्लाई चेन की दिक्कतों की वजह से। यही वजह है कि उन्होंने टेक प्रोडक्ट्स को टैरिफ के दायरे से बाहर किया है। दूसरी ओर, चीन के जन असंतोष कोई मसला नहीं है।

ट्रंप के पास कम पड़ते जा रहे हैं विकल्प?

ट्रंप की टैरिफ नीति से अमेरिका में निवेशकों का भरोसा डगमगा गया है। डॉलर कमजोर हो रहा है, उपभोक्ता विश्वास गिर रहा है और कई अरबपति खुलेआम इस नीति की आलोचना कर रहे हैं। ऐसे में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स पर छूट देना एक संकेत हो सकता है कि अमेरिका अब पीछे हटने के लिए जमीन तैयार कर रहा है।

चीन की रणनीति टारगेटेड जवाबी टैरिफ जो अमेरिका के किसानों और छोटे उद्योगों पर चोट करें। काफी हद तक प्रभावी साबित हुई है। चीन दबाव झेल रहा है, लेकिन फिलहाल झुकने के मूड में नहीं है।

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