नेपाल में भ्रष्टाचार और सरकार के सोशल मीडिया पर रोक लगाने के विरोध में हुए प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। ओली के इस्तीफे के बाद नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता और भी गहरा गई है। Gen-Z आंदोलन के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन में दर्जनों लोग मारे गए और सेना को काठमांडू घाटी में कर्फ्यू लगाना पड़ा। अंतरिम नेता की तलाश में सबसे पहले काठमांडू के मेयर बालेन शाह और पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की के नाम सामने आए।
शाह ने यह जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया, जबकि कार्की पर संवैधानिक अड़चनों और उम्र को लेकर आपत्तियां उठीं। इसके अलावा कारोबारी दुर्गा प्रसाई और सांसद सुमना श्रेष्ठा के नाम पर भी चर्चा हुई, लेकिन किसी पर सहमति नहीं बन सकी।
इसी बीच, कुलमान घिसिंग का नाम सामने आया है। प्रदर्शनकारियों ने उन्हें "देशभक्त और सबका पसंदीदा" बताया है। उनकी ईमानदारी, कामयाबी का ट्रैक रिकॉर्ड और पार्टी राजनीति से दूरी ने उन्हें उस आंदोलन का सबसे स्वीकार्य चेहरा बना दिया है, जो एक नई और साफ सियासत की मांग कर रहा है।
25 नवंबर 1970 को रामेछाप जिले के बेथन गांव में जन्मे कुलमान घिसिंग ने भारत के जमशेदपुर में रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से स्कॉलरशिप पर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के तहत पुलचोक इंजीनियरिंग कॉलेज से पावर सिस्टम्स इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता हासिल की और आगे मैनेजमेंट स्किल्स मजबूत करने के लिए MBA भी पूरा किया।
कुलमान घिसिंग ने साल 1994 में नेपाल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (NEA) से अपने करियर की शुरुआत की और धीरे-धीरे संगठन में ऊंचे पदों तक पहुंचे। 14 सितंबर 2016 को उन्हें एनईए का मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) नियुक्त किया गया। उस समय वे रहुघाट हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के प्रमुख थे और इससे पहले चिलीमे हाइड्रोपावर कंपनी की भी अगुवाई कर चुके थे।
पहले कार्यकाल के बाद साल 2020 में उन्हें हटा दिया गया, लेकिन 11 अगस्त 2021 को वे दोबारा एनईए के मैनेजिंग डायरेक्टर बनकर लौटे।
2025 में बर्खास्तगी और विरोध
अपनी लोकप्रियता के बावजूद कुलमान घिसिंग को 24 मार्च 2025 को उनके पद से हटा दिया गया, जबकि उनका कार्यकाल अगस्त में खत्म होना था। उनकी जगह हितेंद्र देव शाक्य को नियुक्त किया गया। इस फैसले ने बड़े पैमाने पर आलोचना और विरोध को जन्म दिया। विपक्षी नेताओं, सिविल सोसायटी और आम नागरिकों ने सवाल उठाए कि जिस व्यक्ति ने देश को बिजली संकट से उबारा, उसे अचानक क्यों हटाया गया।
द हिमालयन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, घिसिंग का स्वतंत्र कार्यशैली ऊर्जा मंत्री दीपक खड़्का से टकराव का कारण बनी और यही उनकी बर्खास्तगी की वजह बनी। हालांकि इस फैसले के खिलाफ उठी तीखी प्रतिक्रिया ने उनकी छवि को और मजबूत किया—एक ऐसे गैर-पक्षपाती प्रोफेशनल के रूप में, जिसने नतीजे दिए।
क्यों Gen-Z चाहते हैं घिसिंग को नेता
घिसिंग की साफ-सुथरी छवि और परिणाम देने वाली प्रशासनिक शैली ने उन्हें राजनीतिक दलों की खींचतान से ऊपर खड़ा कर दिया। मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, घिसिंग ने खुद अपील की थी कि अंतरिम कैबिनेट ऐसे लोगों से बने जिनकी छवि साफ हो, जिनमें जेन-जेड की आवाज़ भी शामिल हो और तुरंत चुनाव कराए जाएं।
जवाबदेही की मांग कर रहे युवा प्रदर्शनकारियों को उनका यह रुख अपने एजेंडे से मेल खाता लगा। उनकी ईमानदारी और कामयाबी का रिकॉर्ड मिलकर उन्हें सहमति वाला चेहरा बना देता है।