मध्य प्रदेश देश में चने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य माना जाता है, और खासकर विंध्य क्षेत्र की मिट्टी व जलवायु इस फसल के लिए बेहद अनुकूल हैं। सीधी जिले के किसान अब पारंपरिक खेती की बजाय जैविक खेती को अपनाने लगे हैं, जिससे उन्हें कम लागत में अधिक उत्पादन मिलने लगा है। कृषि वैज्ञानिकों की ट्रेनिंग और मार्गदर्शन का असर भी दिखाई दे रहा है, क्योंकि किसान अब बीजामृत और जीवामृत जैसे प्राकृतिक जैविक उपायों का उपयोग कर रहे हैं। इससे बीज रोगमुक्त होते हैं, जल्दी अंकुरित होते हैं और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। खेती के खर्च में कमी आई है, जबकि पैदावार पहले से कहीं ज्यादा हो रही है।
इसके अलावा, गहरी जुताई, समय पर सिंचाई और संतुलित प्राकृतिक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ रही है। जैविक तकनीक अपनाकर विंध्य क्षेत्र के किसान अब कम मेहनत में अधिक लाभ कमा रहे हैं।
वरिष्ठ कृषि अधिकारी संजय सिंह के लोकल 18 से बात करते हुए बताते हैं कि, बीजामृत चने की बुवाई के लिए सबसे प्रभावी जैविक विकल्प है। ये बीजों को रोगमुक्त करता है, जल्दी अंकुरण में मदद करता है और पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। बुवाई से 24 घंटे पहले बीजामृत तैयार करना जरूरी है।
बीजामृत बनाने की सामग्री:
सभी सामग्री को मिलाकर 24 घंटे छाया में किण्वित करें और दिन में दो बार हिलाएं। 48 घंटे के भीतर बीजों पर उपयोग करें।
जैविक तकनीक से मिट्टी और पैदावार में सुधार
किसानों का कहना है कि बीजामृत और जीवामृत दोनों का इस्तेमाल फसल की मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। पौधे मजबूत होते हैं और पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। यही कारण है कि अब किसान बड़े पैमाने पर जैविक तकनीक अपना रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, अच्छी पैदावार के लिए गहरी जुताई और खेत को भुरभुरा बनाने के लिए कल्टीवेटर से दो बार जुताई करना जरूरी है। सीधी जिले की जलवायु के अनुसार, एक या दो बार सिंचाई पर्याप्त है, जिसमें पहली सिंचाई फूल आने से पहले अनिवार्य होती है।
वैज्ञानिक मार्गदर्शन और जैविक तकनीक अपनाने से विंध्य क्षेत्र के किसान कम लागत में अधिक लाभ कमा रहे हैं। आने वाले समय में यह जैविक चना उत्पादन किसानों की आय बढ़ाने का बड़ा जरिया बन सकता है।