बिहार के किसानों के लिए ड्रैगन फ्रूट अब सिर्फ एक नया फल नहीं बल्कि आर्थिक अवसर भी बनकर सामने आया है। कृषि विज्ञान केंद्र, माधोपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह का कहना है कि ये फल राज्य के किसानों की दिशा और दशा दोनों बदल सकता है। बिहार के कई जिलों में पहले से ही अनाज के साथ-साथ फलों की बागवानी होती है। आम, केला, तरबूज और लीची जैसे फलों की खेती लंबे समय से हो रही है, लेकिन अब ड्रैगन फ्रूट किसानों के लिए लाभ का नया जरिया बन सकता है। इस फल की खेती कम लागत में की जा सकती है और यह लंबे समय तक फसल देती है।
इसके अलावा, इसकी मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य मिल सकते हैं। बिहार की मिट्टी और जलवायु भी इसके लिए उपयुक्त हैं, जिससे किसान आसानी से इस नई खेती को अपना सकते हैं।
बिहार में ड्रैगन फ्रूट की बढ़ती लोकप्रियता
डॉ. अभिषेक लोकल 18 से बात करते हुए बताते हैं कि , बिहार की मिट्टी में ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व मौजूद हैं। मूल रूप से ये फल मध्य अमेरिका का है, लेकिन अब बिहार के किसानों के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है। इसकी खेती रेतीली–दोमट मिट्टी में अच्छी होती है। किशनगंज, गया, पूर्णिया, पूर्वी और पश्चिमी चम्पारण जैसे जिले इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं। बस यह ध्यान रखना होगा कि मिट्टी में जल का जमाव न हो।
ड्रैगन फ्रूट कैक्टस समूह का पौधा है। इसे एक बार लगाने के बाद 20 से 25 साल तक फल मिलता है। इस पौधे को ज्यादा सिंचाई या देखभाल की जरूरत नहीं होती और कीटों का असर भी कम होता है। पौधे को लगाने के करीब 14 महीने बाद फल आने लगते हैं। शुरुआत में प्रति पौधा 2–3 किलो फल मिलते हैं, जबकि पौधे की परिपक्व अवस्था में यह 6–7 किलो तक पहुंच जाता है।
भारत में ड्रैगन फ्रूट को कमलम के नाम से जाना जाता है। यह पौष्टिक और नया फल होने की वजह से बाजार में इसकी कीमत 250 से 600 रुपए प्रति किलो तक होती है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती में किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए:
खुशखबरी ये है कि इसे गमले में भी उगाया जा सकता है। बिहार सरकार भी इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को अच्छी सब्सिडी दे रही है।