सीतामढ़ी के नवाचारी किसान हरेराम महतो ने खेती के क्षेत्र में एक ऐसा अनोखा मॉडल तैयार किया है, जिसने पारंपरिक खेती की सीमाओं को तोड़ दिया है। जहां अधिकतर किसान एक ही फसल उगाने पर निर्भर रहते हैं, वहीं हरेराम ने टमाटर और करेला को एक साथ उगाने की नई तकनीक अपनाई है। उनका लक्ष्य था कि कम जगह और कम मेहनत में अधिक उत्पादन हासिल किया जाए। इस तकनीक में करेला की बेलें टमाटर के पौधों पर ऊपर बढ़ती हैं, जिससे मचान लगाने की जरूरत नहीं पड़ती और जमीन का अधिकतम उपयोग होता है।
टमाटर की मजबूत डालियां करेले को सहारा देती हैं और दोनों फसलें बिना एक-दूसरे को प्रभावित किए बढ़ती हैं। इसके परिणामस्वरूप फसलें स्वस्थ, संतुलित और रोग-रहित रहती हैं। हरेराम की इस ‘स्मार्ट खेती’ से उनकी आय बढ़ी है और ये अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है, जिससे सीमांत किसान भी कम लागत में बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।
टमाटर और करेला का सामंजस्यपूर्ण सहयोग
हरेराम की तकनीक में करेला की बेलें टमाटर के पौधों पर चढ़ती हैं, जिससे अतिरिक्त मचान लगाने की जरूरत नहीं पड़ती और जमीन का अधिकतम उपयोग होता है। टमाटर की मजबूत डालियां करेले को सहारा देती हैं, जबकि दोनों फसलों की जड़ें बिना एक-दूसरे को प्रभावित किए विकास करती हैं। इस विधि से खेत में धूप, हवा और नमी का संतुलन भी बेहतर रहता है।
कीटनाशकों और लागत में भारी कमी
इस मिश्रित खेती मॉडल में रोग और कीटों का असर कम होता है। हरेराम के अनुसार कीटनाशकों पर खर्च लगभग आधा हो जाता है। सिंचाई, खाद और मजदूरी की लागतें साझा होने से किसान का खर्च भी कम आता है। दोनों फसलें अलग-अलग समय पर तैयार होती हैं, जिससे बाजार में निरंतर बिक्री और आय सुनिश्चित होती है।
सीमांत किसानों के लिए नई उम्मीद
हरेराम ने इस तकनीक को अपने खेत के अन्य हिस्सों में भी लागू किया है और पारंपरिक खेती की तुलना में लगभग दोगुना मुनाफा कमा रहे हैं। उनके इस मॉडल से आसपास के किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। हरेराम का मानना है कि थोड़ी समझदारी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर किसान कम जगह और कम लागत में अधिक लाभ कमा सकते हैं।