भारत में कार निर्माता कंपनी अपनी कारों का नाम कैसे रखते हैं? जानें पूरी डिटेल
क्या आपने कभी सोचा है कि कार निर्माता किसी नए मॉडल का नाम कैसे तय करते हैं? यह देखने में जितना Random लगता है, उतना होता नहीं है। आकर्षक हैचबैक से लेकर बेहतरीन एसयूवी तक, हर नाम को कई चरणों से गुजरना पड़ता है, जैसे विचार-विमर्श, सांस्कृतिक जांच, कानूनी मंजूरी और आखिर में टॉप मैनेजमेंट की मंजूरी।
भारत में कार निर्माता कंपनी अपनी कारों का नाम कैसे रखते हैं? जानें पूरी डिटेल
क्या आपने कभी सोचा है कि कार निर्माता किसी नए मॉडल का नाम कैसे तय करते हैं? यह देखने में जितना Random लगता है, उतना होता नहीं है। आकर्षक हैचबैक से लेकर बेहतरीन एसयूवी तक, हर नाम को कई चरणों से गुजरना पड़ता है – जैसे विचार-विमर्श, सांस्कृतिक जांच, कानूनी मंजूरी और आखिर में टॉप मैनेजमेंट की मंजूरी। भारत में, जहां कारे सिर्फ मशीन से कहीं बढ़कर होती हैं और अक्सर परिवार का हिस्सा होती हैं, वहां नाम का बहुत महत्व होता है।
नाम क्यों महत्वपूर्ण है?
नाम किसी भी कार की पहली पहचान होता है। यह इस बात का संकेत देता है कि ग्राहक इसे कैसे याद रखेंगे और मॉडल किस तरह की पर्सनालिटी को दिखाता है। भारत जैसे बाजार में, जहां लोग अभी भी कंपनी के वास्तविक बेज (Logo) की बजाय 'स्कॉर्पियो' या 'इनोवा' जैसे नामों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, सही नाम रखना बेहद जरूरी है।
टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के चीफ कमर्शियल ऑफिसर विवेक श्रीवत्स ने Moneycontrol को बताया कि नाम चुनने की शुरुआत हमेशा उत्पाद (product) से होती है। उन्होंने बताया, "कार का नाम रखने की प्रक्रिया उत्पाद की विशषताओं, उसकी पोजिशनिंग, पर्सनालिटी और उस ऑडियंस को समझने से शुरू होती है जिससे वह जुड़ना चाहती है। हम ऐसे नाम चुनते हैं जो सरल हों, याद रखने में आसान हों और जो वाहन के खासियत को दिखाए।
प्रक्रिया कैसे काम करती है?
उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार, ज्यादातर कार निर्माता कंपनिया एक सामान्य प्रक्रिया का पालन करती हैं। मार्केटिंग और प्रोडक्ट टीमें नामों की एक लंबी सूची तैयार करती हैं, कभी-कभी सैकड़ों नामों की। भारत जैसे देश में, नामों का अलग-अलग भाषाओं में परीक्षण किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हिंदी, तमिल, तेलुगु या बंगाली में उनका कोई अजीब अर्थ न हो। फिर, भारत और विदेशों में ट्रेडमार्क की उपलब्धता के लिए नामों की जांच की जाती है। शॉर्टलिस्ट किए गए नामों को कभी-कभी फोकस ग्रुप्स के साथ याद रखने और स्वीकृति के लिए टेस्ट किए जाते हैं। अंत में, सीनियर मैनेजमेंट क्रिएटिव, सांस्कृतिक और कानूनी सलाहों को ध्यान में रखकर अंतिम फैसला लेता है।
विवेक श्रीवत्स ने टाटा की लोकप्रिय कॉम्पैक्ट एसयूवी, नेक्सॉन का उदाहरण दिया। "उदाहरण के लिए, 'नेक्सॉन' नाम अगले स्तर के डिजाइन (कूप से प्रेरित), तकनीक, फीचर्स, सुरक्षा और एक ऐसी कार पेश करने के विचार से लिया गया था जो भविष्य पर विजय पाने के लिए तैयार हो। एक प्रक्रिया के रूप में, कई विकल्पो का चयन किया जाता है, उन्हें भाषाई और सांस्कृतिक दृष्टि से परखा जाता है, और कानूनी मंजूर आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। कई राउंड की आंतरिक चर्चाओं के बाद अंतिम नाम चुना जाता है- ऐसा नाम जो उत्पाद की पहचान को सबसे अच्छे तरीके से दर्शाए और ग्राहकों के साथ मजबूत, स्थायी कनेक्शन बनाए।"
भारत में कार के नाम: थीम, ट्रेंड और सार्वजनिक प्रतियोगिता
भारत में, कार निर्माता अक्सर ऐसे नाम चुनते हैं जो आकर्षक हों, बोलने में आसान हों और जिनका सांस्कृतिक या भावनात्मक जुड़ाव हो।
क्या आप जानते हैं कि स्कोडा ऑटो इंडिया ने 'Kylaq' नाम कैसे रखा? कार निर्माता ने एक सार्वजनिक अभियान शुरू किया जिसमें लोगों से अपने एसयूवी परिवार के अनुरूप 'K' से शुरू होने वाले और 'Q' पर खत्म होने वाले नाम सुझाने को कहा गया। 2,00,000 से अधिक नाए आए और विजेता नाम ' 'Kylaq' चुना गया। यह संस्कृत के 'क्रिस्टल' शब्द से लिया गया है, जो कैलाश पर्वत से भी प्रेरित है। इसने न केवल एसयूवी को एक सांस्कृतिक रूप से जुड़ा हुआ नाम दिया, बल्कि लॉन्च से पहले ही चर्चा और सार्वजनिक जुड़ाव भी पैदा किया।
अन्य ब्रांडों ने अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं। टाटा के पास हैरियर, सफारी और पंच जैसे मॉडल हैं। महिंद्रा ने अपनी एक्सयूवी अल्फान्यूमेरिक सीरीज के साथ स्कॉर्पियो और थार जैसे बोल्ड नामों को बरकरार रखा है। मारुति स्विफ्ट, बलेनो और ब्रेजा जैसे छोटे, सरल नामों को प्राथमिकता देती है। हुंडई ने अपनी एसयूवी - क्रेटा, वेन्यू और अल्काजार - के लिए एक थीम अपनाई है, जो कहने में आसान और वैश्विक रूप से सुसंगत है। वहीं, टोयोटा की इनोवा और फॉर्च्यूनर भारत में घर-घर में पहचाने जाने वाले नाम बन गए हैं।
BMW का तरीका
लक्जरी कार निर्माता आमतौर पर स्थानीय नामों की बजाय वैश्विक संगति पर ध्यान देते हैं। उदाहरण के लिए, BMW की नामकरण प्रक्रिया बहुत व्यवस्थित और स्ट्रक्चर्ड है।
BMW ग्रुप इंडिया के अध्यक्ष और सीईओ हरदीप सिंह बरार ने Moneycontrol को बताया कि इस लग्जरी ब्रांड की स्पष्ट नामकरण परंपरा का पालन करने की लंबी परंपरा रही है और मॉडल का नाम बनाने में कड़ी मेहनत लगती है। उन्होंने कहा, "बीएमडब्ल्यू के पास इसके लिए एक आंतरिक विभाग है, जिसका नामक ''Strategic Naming and Vehicle Identification' है, जो दर्शाता है कि कंपनी मॉडल के नामों को कितना महत्व देती है। एक नया मॉडल नाम एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम होता है, जिसका लक्ष्य दुनिया भर के ग्राहकों के लिए नाम को समझने योग्य बनाना होता है। नए नाम बनाते समय भविष्य के रणनीतिक विकास को भी ध्यान में रखा जाता है।"
बरार ने समझाया कि ज्यादातर BMW तीन अंकों के फॉर्मेट में होते हैं। पहला अंक सेगमेंट को दर्शाता है, अगले दो अंक प्रदर्शन का संकेत देते हैं, और फिर अंत में एक छोटा अक्षर ड्राइव तकनीक को दर्शाता है। "तीन अंकों के संयोजन का पहला अंक मॉडल श्रृंखला को दर्शाता है। इवन नंबर्स आमतौर पर अल्ट्रा-स्पोर्टी वर्जन्स, जैसे कूपे, को दी जाती हैं। अपवाद SAV, SAC और रोडस्टर हैं, जो X या Z का उपयोग करते हैं। इसके बाद आने वाले दो अंक आज किलोवाट या वर्चुअल विस्थापन में प्रदर्शन को दर्शाते हैं। अंतिम भाग में एक छोटा अक्षर शामिल होता है जो ड्राइव तकनीक को दर्शाता है - AWD के लिए xDrive, FWD या RWD के लिए sDrive।
बीएमडब्ल्यू का अपना इलेक्ट्रिक 'i' सब-ब्रांड और परफॉर्मेंस 'M' लाइन भी है। उन्होंने आगे कहा, "M परफॉर्मेंस वाहनों के नाम में M प्रमुखता से रखा गया है, जैसे M340i। BMW M2 या X5 M जैसे हाई-परफॉर्मेंस मॉडल नामकरण के मामले में अलग हैं, और इनका पूरा ध्यान M बैज पर है।"
संतुलन बनाना
एक इंडस्ट्री एक्सपर्ट ने कहा कि भारत में बड़े पैमाने पर कार बनाने वाली कंपनियां ऐसे नाम अपनाना चाहती हैं जो आकर्षक, सांस्कृतिक रूप से सुरक्षित और कानूनी रूप से मजबूत हों। उन्होंने आगे कहा कि लक्जरी ब्रांड अनुशासित और वैश्विक रूप से सुसंगत प्रणालियों का पालन करते हैं। दोनों दृष्टिकोण अलग-अलग प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं - स्थानीय जुड़ाव बनाम वैश्विक स्पष्टता - लेकिन अंतिम लक्ष्य एक ही है: एक ऐसा नाम जो किसी मॉडल को ग्राहकों के दिमाग में जगह बनाने और उसे बनाए रखने में मदद करे।