Bihar election Results : सभी सीटों के नतीजे घोषित, जानिए टॉप 5 सूरमाओं में किसे मिली जीत, किसने चखा हार का स्वाद
Bihar election results : 243 सदस्यीय विधानसभा में NDA ने 200 सीटें पार कर ली हैं। इससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की स्थिति और मजबूत हुई है
Bihar election : इस चुनाव में NDA ने 202 सीटें जीती हैं, जिनमें भाजपा को 89, जेडीयू को 85, एलजेपी को 19, हम को 5 और RLM को 4 सीटें मिली हैं। वही, विपक्ष को सिर्फ 35 सीटें मिली हैं
Bihar election : बिहार विधानसभा चुनावों में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA)को पिछले दो दशकों में सबसे मज़बूत जनादेश मिला है। 243 सदस्यीय विधानसभा में 200 सीटें जीतने के साथ, यह परिणाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए समर्थन में मज़बूती का संकेत देता है। इस प्रदर्शन ने 2010 के प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ दिया है।
यहां हम उन बड़ी हस्तियों,दलों और मतदाता समूहों पर एक नजर डाली गई है जिन्होंने 2025 के बिहार चुनाव को आकार दिया। इसके साथ ही उन बड़े नेताओं पर भी नजर डाली गई है जिनको इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। पहले नजर डालते हैं विजेताओं पर -
विनर्स
नीतीश कुमार
20 साल सत्ता में रहने के बाद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) ने न केवल सत्ता-विरोधी लहर का मुकाबला किया,बल्कि 85 सीटें जीतकर स्पष्ट बढ़त भी दर्ज की। एनडीए की कुल 202 सीटें नीतीश कुमार के लिए पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ करती हैं। इस नतीजे ने तेजस्वी यादव की खुद को बिहार का अगला नेता बनाने की कोशिशों पर पानी फेर दिया है। विपक्ष के चुनावी रण में हावी "युवा बनाम अनुभव" का विरोधाभास वोटों में तब्दील नहीं हो पाया।
चिराग पासवान
2020 में केवल एक सीट जीतने वाले चिराग पासवान ने इस चुनाव में जोरदार वापसी की है। उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 29 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटों पर कब्जा कर लिया है। पासवान वोटों का ध्रुवीकरण और युवा मतदाताओं तथा दलित समुदाय के बीच चिराग की अपील ने इस जीत में अहम भूमिका निभाई है।
असदुद्दीन ओवैसी और AIMIM
असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने बिहार के सीमांचल इलाके में शानदार प्रदर्शन किया है। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि AIMIM ने चार सीटें जीती हैं। इनमें अररिया की जोकीहाट,किशनगंज की कोचाधामन (किशनगंज),पूर्णिया की अमौर और पूर्णिया की ही बायसी नाम की सीट शामिल है। बता दें कि AIMIM ने 2020 के विधानसभा चुनाव में भी जोकीहाट, कोचाधामन,अमौर और बैसी की सीटें जीती थीं।
महिला मतदाता
2025 के जनादेश को आकार देने में महिला मतदाताओं की अहम भूमिका रही। बिहार के चुनावी इतिहास में पहली बार, महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में कहीं ज़्यादा मतदान किया। उनके मतदान एनडीए की की जीत में अहम भूमिका निभाई है। महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से लगभग नौ प्रतिशत ज्यादा रहा। इस चुनाव में 71.6 प्रतिशत महिलाओं ने अपना मताधिकार का इस्तेमाल किया। वहीं,पुरुषों का मतदान प्रतिशत 62.8 रहा। महिलाओं के लिए शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं ने गरीब और पिछड़े समुदायों के बीच NDA के लिए समर्थन मजबूत करने में मदद की। इन योजनाओं में 10,000 रुपये वाली मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना भी शामिल है।
नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस(NDA)
एनडीए के छोटे सहयोगी दलों, जैसे जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा और चिराग पासवान की लोजपा (RV)ने इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया। HAM ने 6 में से 5 सीटों पर, लोजपा (RV) ने 20 सीटों पर और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLM) ने 4 सीटों पर जीत हासिल की।
इस इलेक्शन के बड़े लूजरों की बात करें तो तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का नाम सबसे पहले नजर आता है। विपक्ष के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश किए गए तेजस्वी यादव,नीतीश कुमार के खिलाफ किसी भी सत्ता-विरोधी लहर को वोटों में तब्दील नहीं कर पाए। हालांकि,उन्होंने राघोपुर का अपना गढ़ जीत लिया। 2010 के 22 सीटों के बाद, यह राजद का अपने चुनावी इतिहास का दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन है। पार्टी ने सिर्फ 25 सीटें जीती हैं। 2020 के चुनाव ने तेजस्वी को बिहार में एक उभरते हुए नेता के रूप में स्थापित किया था। लेकिन 2025 के चुनाव ने उनकी लीडरशिप पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
राहुल गांधी
कांग्रेस बिहार में एक बार फिर बढ़त बनाने में नाकाम रही और उसकी सीटें सिमट कर सिंगल डिजिट में आ गईं। 2020 में भी कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था,लेकिन केवल 19 सीटें जीत पाई थी और महागठबंधन की संभावनाओं को कमज़ोर कर दिया था। राहुल गांधी की "मतदाता अधिकार यात्रा","वोट चोरी" के आरोपों और SIR अभियान के ख़िलाफ़ कैंपेन के बावजूद,पार्टी मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में कामयाब नहीं रही।
प्रशांत किशोर
लंबे समय से भारत के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में पहचाने जाने वाले प्रशांत किशोर, इस चुनाव के सबसे बड़े लूजरों में से एक रहे। दो साल की पदयात्रा और अच्छी-खासी लोकप्रियता के बाद भी, जन सुराज कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाया। इसे NOTA से भी कम वोट मिले। प्रशांत किशोर का डेवलपमेंट फर्स्ट का नारा लोगों को रास नहीं आया। खुद चुनाव न लड़ने के उनके फैसले ने पार्टी की दिशा को लेकर और भी भ्रम पैदा कर दिया।
मुकेश साहनी
सीमांचल इलाके में एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किए गए मुकेश सहनी, महागठबंधन द्वारा उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बावजूद अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। उनकी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) जाति आधारित गोलबंदी को सीटों में बदलने में विफल रही। निषाद वोट, जिसे वे एकजुट करना चाहते थे,कल्याणकारी योजनाओं के प्रभाव में आ कर एनडीए की ओर चले गए।
इंडिया ब्लॉक
बंगाल और तमिलनाडु सहित कई बड़े चुनावों से पहले इंडिया ब्लॉक को एक बड़ा झटका लगा है। सीटों के बंटवारे पर मतभेद,विरोधाभाषी संदेश और कमजोर नेतृत्व ने इंडिया ब्लॉक को कमजोर कर दिया है।
इस चुनाव में NDA ने 202 सीटें जीती हैं, जिनमें भाजपा को 89, जेडीयू को 85, एलजेपी (RV) को 19, हम को 5 और RLM को 4 सीटें मिली हैं। वही, विपक्ष को सिर्फ 35 सीटें मिली हैं। कांग्रेस तो सिंगल डिजिट में सिमट गई है। राजद अपना आधार बढ़ाने में विफल रही है। जबकि, वामपंथी दल अपने पहले के असर को बरकरार नहीं रख सके हैं।