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Bihar Elections: बिहार में मायावती की 'एकला चलो' की रणनीति! आकाश आनंद संग इन नेताओं को मिली बड़ी जिम्मेदारी

Bihar Assembly Elections : बिहार में बसपा अगर अकेले चुनाव लड़ती है तो वो कई दलों के लिए चुनौती बन सकती है, क्योंकि पार्टी का वोट बैंक सीमित होते हुए भी निर्णायक असर डाल सकता है। ऐसे में सबकी नजरें बसपा सुप्रीमो मायावती पर हैं कि वह आने वाले दिनों में क्या रणनीति अपनाती हैं

अपडेटेड Sep 02, 2025 पर 5:02 PM
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बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पहले प्रदेश की सियासत अभी से गरमाई हुई है।

Bihar Assembly Elections : बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पहले प्रदेश की सियासत अभी से गरमाई हुई है। बिहार चुनाव में यूपी के राजनीतिक धुरंधर भी उतरने वाले हैं और इस लिस्ट में सबसे पहला नाम पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती का है। बहुजन समाज पार्टी ने तय किया है कि वह बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में किसी गठबंधन के बिना अकेले सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।

बसपा  की 'एकला चोलो' की रणनीति!

बता दें कि बसपा सुप्रीमो मायावती की अगुवाई में पार्टी की दो दिनों तक चली बैठक में उम्मीदवारों के चयन और चुनावी तैयारियों पर विस्तार से चर्चा की गई। इस दौरान बिहार की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और बदलते समीकरणों का आकलन करते हुए पार्टी ने अपने आगामी कार्यक्रमों और रणनीति को अंतिम रूप दिया। मायावती की अगुवाई वाली बसपा का राज्य में अपना एक सीमित आधार है, लेकिन चुनावी समीकरणों में यह पार्टी असर डाल सकती है। पिछली बार बसपा ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ा था, हालांकि उसे बड़ी सफलता नहीं मिल पाई थी।

बसपा की ओर से इन्हें मिली जिम्मेदारी


पार्टी के इस बार बिहार चुनाव के लिए राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद, केंद्रीय कोऑर्डिनेटर और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम, तथा बीएसपी बिहार इकाई को इन कार्यक्रमों की जिम्मेदारी दी गई है।वहीं बिहार में बसपा अगर अकेले चुनाव लड़ती है तो वो कई दलों के लिए चुनौती बन सकती है, क्योंकि पार्टी का वोट बैंक सीमित होते हुए भी निर्णायक असर डाल सकता है। ऐसे में सबकी नजरें बसपा सुप्रीमो मायावती पर हैं कि वह आने वाले दिनों में क्या रणनीति अपनाती हैं।

बिहार में सत्ता की चाबी हैं दलित वोट!

बिहार चुनाव में दलित वोट हमेशा से अहम भूमिका निभाते रहे हैं। राज्य की आबादी में दलितों की संख्या करीब 16 प्रतिशत है, इसलिए हर राजनीतिक दल इन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता है। चुनावी इतिहास बताता है कि कई बार दलित वोट जिस ओर झुके हैं, उसी दल ने सत्ता की कुर्सी पाई है। यही वजह है कि सभी पार्टियाँ इस बार भी दलित समाज को लुभाने में लगी हुई हैं। एनडीए हो या महागठबंधन, दोनों ही दलितों के लिए योजनाओं और वादों की लंबी सूची लेकर सामने आ रहे हैं।

दलित समाज की बड़ी आबादी गांवों और छोटे कस्बों में रहती है, जहां रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याएं सबसे ज्यादा महसूस की जाती हैं। राजनीतिक पार्टियां इन्हीं मुद्दों पर जोर दे रही हैं। बहुजन समाज पार्टी भी अपने पारंपरिक वोट बैंक को सक्रिय करने में जुटी है, जबकि आरजेडी और कांग्रेस सामाजिक न्याय की राजनीति को फिर से धार देने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा और जेडीयू विकास योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों के जरिए दलितों को जोड़ने पर फोकस कर रही हैं। कुल मिलाकर, दलित वोट इस बार भी सत्ता की चाबी साबित हो सकते हैं। जिस दल या गठबंधन को इनका भरोसा मिलेगा, बिहार की सत्ता पर उसकी पकड़ मजबूत होगी।

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