Bihar Chunav: RJD का ‘M-Y’ समीकरण बिखरा तो बदल जाएगी पूरे बिहार चुनाव की तस्वीर, मुस्लिम वोटों के कई दावेदार, समुदाय से अब तक केवल 1 CM
Bihar Election 2025: बिहार में आजादी के बाद से अब तक केवल एक बार मुख्यमंत्री मुस्लिम समुदाय से बना है। वह भी 70 के दशक में। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे अब्दुल गफूर को 1973 में इंदिरा गांधी ने मुख्यमंत्री बनाया था
Bihar Chunav: RJD का ‘M-Y’ समीकरण बिखरा तो बदल जाएगी पूरे बिहार चुनाव की तस्वीर
नया वक्फ कानून आने के बाद बिहार में अल्पसंख्यक मतों को लेकर राजनीतिक पार्टियों के बीच रस्साकशी और बढ़ने जा रही है। राज्य में बीते 35 सालों से अल्पसंख्यक वोटों का झुकाव लालू यादव और उनसे जुड़े गठबंधन की तरफ रहा है। 1990 से लालू यादव ने यादव और मुस्लिम वोटों का ऐसा गठजोड़ तैयार किया था जिसकी बदौलत वह करीब 15 वर्ष तक सत्ता में रहे। बीजेपी के साथ रहने के बावजूद कुछ अल्पसंख्यक वोट नीतीश कुमार की तरफ भी जाता रहा है। लेकिन इस बार कहानी थोड़ी अलग है।
प्रशांत किशोर भी कर रहे मुस्लिम वोटों पर दावेदारी
बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोटों की तरफ परंपरागत RJD-कांग्रेस के अलावा प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी बड़ी दावेदारी कर रही है। इसके अलावा बीते विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल सीमांचल से पांच सीटें जीतने वाली AIMIM भी पूरा जोर लगाएगी। पिछले चुनाव में अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी, और बहादुरगंज सीट से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी जीते थे।
लालू से पहले किसे मिलते थे वोट
1990 के पहले की बात करें तो बिहार में मुस्लिम वोट एकमुश्त कांग्रेस की तरफ जाते थे। लालू यादव ने इस सिलसिले को तोड़ दिया था। जब राजद और कांग्रेस एक-दूसरे के साथ आए तो फिर जहां भी कांग्रेस प्रत्याशी खड़े होते हैं, वहां मुस्लिम मतदाता सामान्य तौर पर उन्हें ही वोट देता है।
मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की नहीं सोची
दिलचस्प बात ये है कि मुस्लिम मतों को अपनी तरफ झुकाने के लिए प्रयासरत सभी पार्टियों ने कभी मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की बात नहीं सोची। लालू के साथ अडिग खड़े रहे मुस्लिम-यादव वोटों में भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या की हमेशा ज्यादा रही है। लेकिन कभी मुस्लिम मतदाताओं की तरफ से भी इसकी मांग नहीं उठी और न ही कभी राजद लीडरशिप ने इस तरफ ध्यान दिया है।
आजादी के बाद से अब तक केवल एक मुस्लिम मुख्यमंत्री
बिहार में आजादी के बाद से अब तक केवल एक बार मुख्यमंत्री मुस्लिम समुदाय से बना है। वह भी 70 के दशक में। कांग्रेसी नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे अब्दुल गफूर को 1973 में इंदिरा गांधी ने मुख्यमंत्री बनाया था।
दिग्गज नेता थे गफूर
गोपालगंज जिले के एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले अब्दुल गफूर राज्य के दिग्गज नेताओं की जमात का हिस्सा थे। इन दिग्गज नेताओं में बिंदेश्वरी दुबे, केदार पांडे, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, भगवत झा आजाद, चंद्रशेखर सिंह जैसे नेता शामिल थे। ये सभी स्वतंत्रता आंदोलन से निकले हुए थे और अब्दुल गफूर भी इस टोली का हिस्सा थे।
समता पार्टी बनाने में निभाई अहम भूमिका
दिलचस्प बात ये है कि अब्दुल गफूर ने 1990 के दशक में कांग्रेस छोड़कर समता पार्टी बनाने में अहम भूमिका निभाई। समता पार्टी ही बाद में जनता दल यूनाइटेड बनी जिसके मुखिया नीतीश कुमार हैं। गफूर ने कांग्रेस मुख्य रूप से इसलिए छोड़ी क्योंकि कहते हैं कि उन्हें पार्टी में उपेक्षा का सामना करना पड़ा।
दरअसल गफूर के शासनकाल में जेपी आंदोलन ने बिहार में कांग्रेस के खिलाफ व्यापक असंतोष पैदा किया था। हालांकि 1975 में पद छोड़ने के बाद वो बाद में राजीव गांधी की सरकार में केंद्र में भी मंत्री रहे। लेकिन 1980 के दशक में कांग्रेस में उनकी भूमिका सीमित होती गई।
1980 के दशक के अंत तक बिहार की राजनीति में क्षेत्रीय दलों का उभार हो रहा था। गफूर ने देखा कि कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक, जो परंपरागत रूप से मजबूत था, अब अन्य दलों की ओर खिसक रहा था। बाद में उन्होंने समता पार्टी का रुख किया था।
वक्फ कानून पर प्रशांत किशोर और आरजेडी दोनों कर रहे विरोध
वर्तमान चुनाव के मद्देनजर बात करें तो RJD और प्रशांत किशोर दोनों वक्फ संशोधन कानून 2025 का तीखा विरोध कर रहे हैं, इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला और संविधान का उल्लंघन बता रहे हैं। RJD कानूनी और संसदीय रास्ता अपना रही है, जबकि किशोर सड़क पर आंदोलन और नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। बिहार में यह मुद्दा 2025 के चुनाव में बड़ा सियासी हथियार बन सकता है।
अब देखना यह होगा कि विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट किसी पार्टी को एकतरफा मिलता है या फिर इसमें बंटवारा होगा। अगर मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता है तो यह चुनावी परिणामों का भी रुख पूरी तरह मोड़ सकता है। यानी चुनाव से पहले की गईं कयासबाजी धरी की धरी रह जाएंगी। यह भी देखना होगा कि राज्य को मुस्लिम समुदाय से दूसरा मुख्यमंत्री कब तक मिलता है!