उच्च जाति आयोग: एक गुरु के दो शिष्य, कर्पूरी फॉर्मूले को नीतीश ने याद रखा, लालू भूल गए
कर्पूरी ठाकुर आजाद भारत की राजनीति के पहले नेता थे जिन्होंने संवैधानिक आरक्षण की मूल भावना से एक कदम आगे जाकर गरीब पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। नई उम्र के लोगों को यह सोचकर भी हैरानी होगी कि कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था
उच्च जाति आयोग: एक गुरु के दो शिष्य, कर्पूरी फॉर्मूले को नीतीश ने याद रखा, लालू भूल गए
बिहार की वर्तमान राजनीति के दो बड़े ध्रुव एक ही 'शिक्षक' की क्लास से निकले दो साथी हैं। शिक्षक हैं कर्पूरी ठाकुर और दो ध्रुव हैं लालू यादव और नीतीश कुमार। दोनों ही नेता गाहे-बगाहे कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं और उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने पर जोर देते रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर की राजनीति की सबसे बड़ी उपलब्धि सामाजिक न्याय की लड़ाई रही है। इस लड़ाई को नीतीश और लालू ने अपने ढंग से आगे बढ़ाया। लेकिन एक मामला ऐसा है जहां लालू यादव अपने प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार से से पीछे दिखते हैं। या कह सकते हैं कि वो अपने गुरु कर्पूरी ठाकुर का एक सबक भूल गए।
गरीब सवर्णों के बारे में सोचने वाले पहले नेता कर्पूरी
दरअसल कर्पूरी ठाकुर आजाद भारत की राजनीति के पहले नेता थे जिन्होंने संवैधानिक आरक्षण की मूल भावना से एक कदम आगे जाकर गरीब पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। नई उम्र के लोगों को यह सोचकर भी हैरानी होगी कि कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मामले में कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय के सिद्धांत के साथ खड़े दिखते हैं। जबकि लालू यादव अपनी सामाजिक न्याय की लड़ाई में सवर्णों को शामिल करने के खिलाफ रहे हैं।
सामाजिक न्याय की लड़ाई में लालू का अलग स्टैंड
अगर पूरे सामाजिक ढांचे के हिसाब से देखें तो कर्पूरी ठाकुर का सामाजिक न्याय का फॉर्मूला ज्यादा समावेशी दिखाई देता है। अब तो सुप्रीम कोर्ट भी कर्पूरी ठाकुर के फॉर्मूले पर अपनी मुहर लगा चुका है। इसी जगह पर नीतीश कुमार अपने गुरु कर्पूरी ठाकुर के नजदीक दिखाई देते हैं। यानी जिस कर्पूरी फॉर्मूले की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी, नीतीश उसके पक्षधर दिखते हैं।
केंद्र के EWS आरक्षण का भी JDU ने किया था समर्थन
जब 2019 में मोदी सरकार EWS आरक्षण लेकर आई तो नीतीश की अगुवाई वाली जनता दल यूनाइटेड ने इसका समर्थन किया था। वहीं राष्ट्रीय जनता दल ने इसका खुलकर विरोध किया था। EWS आरक्षण के खिलाफ देश की सर्वोच्च अदालत में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 2022 में फैसला केंद्र सरकार के पक्ष में सुनाया था।
RJD के साथ रहते हुए भी नीतीश ने EWS को सही माना था
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के वक्त भी नीतीश कुमार ने सवर्ण आरक्षण को सही माना। साथ ही उन्होंने जातीय जनगणना की मांग भी की थी। नीतीश कुमार ने कहा था-EWS को 10 प्रतिशत का आरक्षण ठीक है। जाति आधारित जनगणना भी अगर एक बार हो जाएगी तो 50% आरक्षण की सीमा को बढ़ाया जा सकेगा। इससे आबादी के आधार पर मदद दी जा सकेगी। हम बिहार में इस चीज को करवा रहे हैं, ये देशभर में होना चाहिए।'
हालांकि तब नीतीश कुमार 2022 में राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार चला रहे थे। इसके बावजूद उन्होंने EWS का स्वागत किया था। दिलचस्प बात ये है कि नीतीश उस वक्त बिहार में जातीय सर्वे करा रहे थे। जिसके नतीजे 2 अक्टूबर 2023 को जारी किए गए थे। यानी नीतीश उस वक्त जातीय जनगणना के भी समर्थन में थे और EWS आरक्षण को भी सपोर्ट कर रहे थे।
अब फिर नीतीश ने खेला है दांव
बाद में नीतीश एक बार फिर बीजेपी के साथ आ गए और 2024 का चुनाव साथ मिलकर लड़ा। अब केंद्र सरकार सरकार भी जातीय जनगणना कराने की घोषणा कर चुकी है। यानी इस बार जब नीतीश कुमार जब चुनाव में जाएंगे तो उनके पास (क्योंकि बीजेपी भी नीतीश कुमार के साथ है) अगड़े और पिछड़े दोनों ही समाज को अपने साथ जोड़ने के लिए कहने के लिए ज्यादा शब्द होंगे।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न भी NDA ने दिया
20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के पास सिर्फ इतना ही नहीं एक और बात है बताने के लिए। 2024 में ही केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न भी दिया है। नीतीश की जेडीयू केंद्र में भी पार्टनर है। नीतीश इसे भी अपने चुनाव प्रचार में प्रचारित कर सकते हैं।
हालांकि इसकी कोई घोषणा नहीं हुई है लेकिन उम्र के मद्देनजर यह नीतीश कुमार का आखिरी चुनाव भी हो सकता है। ऐसे में अगर वह 2025 में जब जनता के बीच वोट मांगने जाएंगे तो कर्पूरी ठाकुर का नाम ज्यादा भरोसे के साथ ले सकते है। वह बता सकते हैं कि कैसे उन्होंने सामाजिक न्याय की लड़ाई ‘सभी पिछड़ों’ को शामिल करने की कोशिश की है। उच्च जाति आयोग बनाकर उन्होंने इसका संकेत दे दिया है।
2011 में ये नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने बिहार में सवर्ण आयोग बनाया था। माना जाता है कि केंद्र द्वारा 2019 में EWS आरक्षण लागू करने के पीछे भी सवर्ण आयोग की सिफारिशें अहम फैक्टर थीं। हालांकि नीतीश सरकार पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि सवर्ण आयोग की सिफारिशों पर ठीक तरीके से ध्यान नहीं दिया। शायद यही वजह है कि नीतीश ने एक बार फिर उच्च जाति आयोग बनाकर सवर्ण आयोग की सिफारिशों से एक कदम आगे बढ़ने की कोशिश की है।