लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान अब बिहार केंद्रित राजनीति करना चाहते हैं। उनका मानना है कि 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का उनका स्लोगन केवल केंद्र की राजनीति के जरिए नहीं पूरा हो सकता। चिराग की बिहार चुनाव में एंट्री के साथ कई तरह आंकलन भी सामने आने लगे हैं जिनमें उन्हें एक वैकल्पिक CM फेस के रूप में भी प्रदर्शित किया जा रहा है। इसके लिए तमाम तरीके के समीकरण भी बताए जा रहे हैं। लेकिन बिहार में चुनाव लड़ने को तैयार यानी खुद विधायक बनने को तैयार चिराग पासवान के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
दरअसल ढेर सारे चुनावी आंकलनों के बीच चिराग की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि वो NDA में ठीक-ठाक सीट शेयर हासिल कर सकें। क्योंकि पिछले दस साल में ये पहली बार है जब चिराग बिहार की राजनीति में सीधे एंट्री करना चाहते हैं और वो पूर्ण NDA (BJP+JDU) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। सूत्रों के जरिए कई मीडिया रिपोर्ट्स आई हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में 5 सीटों पर मिली जीत के हिसाब से चिराग पासवान 40 से 50 सीटों तक दावा कर सकते हैं। चिराग की सबसे बड़ी चुनौती यहीं पर है। क्योंकि अगर गठबंधन में उन्हें 20 से 25 सीटें तक ही मिलती हैं तो वह उस स्थिति तक नहीं पहुंच पाएंगे जिसका अंदाजा लगाया जा रहा है।
चिराग के बिहार की पॉलिटिक्स में एक्टिव होने की वजह से NDA की अन्य सहयोगी पार्टियों में भी 'असुरक्षा' की भावना मुश्किल पैदा कर सकती है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी अपने लिए 10-15 सीटों की मांग कर रही है। जबकि हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी 20-30 सीटों की मांग कर रहे हैं।
ऐसे में कुल 243 विधानसभा सीटों वाले राज्य में एनडीए के भीतर चिराग के लिए सबसे बड़ी चुनौती सीटें हासिल करना ही है। क्योंकि गठबंधन के बाहर चुनाव लड़कर उन्हें वोट प्रतिशत भले ठीक-ठाक मिल जाए लेकिन सीटों की संख्या लगभग नगण्य रहती हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव लेकर अब तक चिराग पासवान ने खुद को बीजेपी के साथ मजबूती से जोड़े रखा है। वह खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान भी बता चुके हैं। लेकिन इन सबके बीच लोकसभा चुनाव छोड़ दें तो पिछले दो विधानसभा चुनाव में चिराग की अपनी पार्टी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है। 2015 के विधासभा चुनाव में उन्हें महज दो सीटें हासिल हुईं तो वहीं 2020 में 1 ही सीट मिली। हालांकि लोकसभा चुनाव में उनका प्रदर्शन शानदार रहा लेकिन इसका कोई प्रभाव विधानसभा चुनाव में नहीं पड़ा।
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को 2 सीटें मिलीं। पार्टी ने 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वोट प्रतिशत के मामले में, LJP को 4.8% वोट शेयर प्राप्त हुआ। उस वक्त गठबंधन में रालोसपा और हम तो थे लेकिन जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस से हाथ मिला लिया था। 2020 के चुनाव में नीतीश कुमार का विरोध करते हुए LJP ने अकेले चुनाव लड़ा था। चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को 1 सीट मिली। पार्टी ने 137 सीटों पर चुनाव लड़ा। वोट प्रतिशत के मामले में, LJP को 5.66% वोट शेयर प्राप्त हुआ।
2024 के चुनाव से खुद को किया स्थापित
जून 2021 में पार्टी में टूट हुई तो चिराग को बड़ा झटका लगा था। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों ने साबित किया कि लोकजनशक्ति पार्टी की असली विरासत उन्हीं के पास है। लेकिन लोकसभा चुनाव की सफलता से चिराग पासवान को मिली बढ़त असर विधानसभा चुनाव में भी होगा, यह कहना मुश्किल है। चिराग अपने विधायकों की संख्या तब ही बढ़ा सकते हैं जब बीजेपी और जेडीयू उनके साथ हों। इसलिए यह जरूरी है कि चिराग एनडीए के साथ रहें।
लेकिन एनडीए में रहते हुए भी अगर चिराग अपनी मर्जी की सीट नहीं हासिल कर पाते तो भविष्य में उनको लेकर किए जा रहे बड़े-बड़े दावे भी कमजोर हो सकते हैं। कम से कम अगले पांच साल के लिए।
बिहार केंद्रित राजनीति पर फोकस करने के चिराग के फैसले को एक अन्य नजरिए से भी देखा जा रहा है। बीते तीन लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले चिराग का प्रदर्शन तो बेहतर रहा है। लेकिन अब जबकि उनकी मूल पार्टी का एक खेमा पशुपतिनाथ पारस के साथ जा चुका है तो पार्टी को जमीन पर भी मजबूत करने की जरूरत चिराग जरूर महसूस कर रहे होंगे।
इस संबंध में बिहार की राजनीति गहरी दिलचस्पी रखने वाले और दिल्ली में यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रोफेसर सत्येंद्र सिंह का मानना है कि 2024 लोकसभा चुनाव में 100 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट ने चिराग को स्थापित कर दिया है। लेकिन राज्य की राजनीति के लिए जरूरी है कि जमीन पर उनके कार्यकर्ता मजबूती से दिखें और उनकी पार्टी के नेताओं की अच्छी संख्या विधानसभा में भी हो। इसी क्रम में पार्टी को मजबूत करने और बिहार के भीतर अपने विधायकों की संख्या-अपनी ताकत बढ़ाने के लिए चिराग ने यह फैसला लिया है। अगर वह संयुक्त एनडीए में मनमाफिक सीटों की बाजी जीत जाते हैं और आगे चुनावी लड़ाई उनके लिए आसान हो सकती है।