बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चर्चित नेताओं की सूची में गोपाल मंडल का नाम भी शामिल है। कभी JDU के फायरब्रांड और कद्दावर विधायक माने जाने वाले गोपाल मंडल इस बार गोपालपुर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे थे। लेकिन चुनाव परिणाम ने उन्हें बड़ा झटका दिया, मंडल तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें मात्र 12,686 वोट ही मिले। वहीं JDU उम्मीदवार बुलो मंडल ने 1,08,630 वोट पाकर शानदार जीत हासिल की, वही दूसरे स्थान पर VIP के उम्मीदवार डब्लू यादव 50,495 वोट के साथ रहे।
टिकट कटने के बाद निर्दलीय का दांव क्यों नहीं चला?
गोपाल मंडल को इस बार JDU ने टिकट नहीं दिया, जिसके बाद उन्होंने पटना स्थित CM आवास के बाहर धरना तक दिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि पिछले 1-2 महीने से उन्हें CM से मिलने नहीं दिया जा रहा। टिकट नहीं मिलने के बाद वे बगावत तो लेकर आए, लेकिन दिलचस्प बात यह रही कि उन्होंने JDU छोड़ने का ऐलान नहीं किया। वे निर्दलीय चुनाव प्रचार में कहते भी थे, जीतने के बाद नीतीश जी के पास जाऊंगा… पहले अर्जुन था, अब एकलव्य हूं।'
हार की बड़ी वजहें - क्यों नहीं चला गोपाल मंडल का प्रभाव?
बिहार की राजनीति अभी भी बड़े दलों के सिंबल पर टिकी हुई है। JDU, BJP, RJD जैसे दलों का प्रभाव गांव-गांव में मजबूत है। गोपालपुर सीट पर पिछले चुनावों से ही JDU की पकड़ मजबूत रही है। निर्दलीय उम्मीदवार होने से गोपाल मंडल का कोर वोटर खिसक गया।
लगातार विवादों में रहने की छवि
गोपाल मंडल की सबसे बड़ी कमजोरी उनकी विवादित छवि रही। ट्रेन में अर्धनग्न अवस्था वाला वायरल वीडियो, कई बार विवादित बयान, गाली भरी भाषा, पार्टी लाइन के खिलाफ बयान, इन सबने एक नकारात्मक माहौल खड़ा किया, जिसका नुकसान उन्हें चुनाव में झेलना पड़ा।
गोपालपुर में इस बार मुकाबला दिलचस्प रहा। JDU उम्मीदवार बुलो मंडल और VIP के डब्लू यादव ने मिलकर यादव और कोर वोट बैंक पूरा खींच लिया। गोपाल मंडल को दोनों तरफ से वोट कटने का भारी नुकसान हुआ।
वहीं, बीते कुछ चुनावों से बिहार के कई इलाकों में मतदाता विकास, योजनाओं और स्थिर सरकार को प्राथमिकता दे रहे हैं। गोपाल मंडल अपनी 'बोल्ड इमेज' के भरोसे मैदान में उतरे, लेकिन लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
हालांकि गोपाल मंडल अभी भी इलाके में पहचान रखते हैं, लेकिन इस चुनाव ने उनकी राजनीतिक वजनदारी को जरूर कम किया है। उनके समर्थक मानते हैं कि अगर वे JDU टिकट पर लड़ते, तो नतीजा पूरी तरह अलग होता। यह चुनाव बताता है कि बिहार की सियासत में नेता के साथ - साथ दल और सिंबल भी ज्यादा प्रभाव डालते हैं।
गोपाल मंडल ने भले ही अपने दम पर चुनाव लड़ने का दावा किया, लेकिन नतीजों ने यह साफ कर दिया कि बिहार में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत आसान नहीं है, चाहे चेहरा कितना भी चर्चित क्यों न हो।
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