Credit Cards

Bihar Chunav: जब एक निर्दलीय ने मुख्यमंत्री को हराया और खुद ही संभाली सत्ता

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: पटना पश्चिम (आज की बांकीपुर सीट) से तत्कालीन मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार महामाया प्रसाद सिन्हा ने बड़े अंतर से हरा दिया। इस जीत के बाद महामाया बाबू अचानक ही सुर्खियों में आ गए और विपक्षी दलों के समर्थन से बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने

अपडेटेड Sep 02, 2025 पर 5:35 PM
Story continues below Advertisement
Bihar Chunav: जब एक निर्दलीय ने मुख्यमंत्री को हराया और खुद ही संभाली सत्ता

बिहार के विधानसभा चुनाव के इतिहास में 1967 का साल बेहद अहम रहा। इस चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ कि एक निर्दलीय उम्मीदवार ने मौजूदा मुख्यमंत्री को शिकस्त दी और खुद सत्ता संभाली। यही नहीं, इस चुनाव ने राज्य की राजनीति की दिशा ही बदल दी। उस समय कांग्रेस लगातार सत्ता में थी, लेकिन इस बार बहुमत से दूर रह गई। नतीजा यह हुआ कि बिहार को पहली बार एक त्रिशंकु विधानसभा मिली। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी तो बनी, मगर अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी।

पटना पश्चिम (आज की बांकीपुर सीट) से तत्कालीन मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार महामाया प्रसाद सिन्हा ने बड़े अंतर से हरा दिया। इस जीत के बाद महामाया बाबू अचानक ही सुर्खियों में आ गए और विपक्षी दलों के समर्थन से बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।

कांग्रेस विपक्ष में और विपक्ष सत्ता में


आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, CPI, जन क्रांति दल और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जैसे दल एकजुट हुए। हालांकि, संसोपा के कर्पूरी ठाकुर सीएम पद के बड़े दावेदार थे, लेकिन परिस्थितियों ने उनका रास्ता रोक दिया। आखिरकार सबकी सहमति से महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बना दिया गया।

छोटा कार्यकाल, बड़ी यादें

5 मार्च 1967 को महामाया बाबू ने शपथ ली और बिहार के पांचवें मुख्यमंत्री बने। लेकिन विचारधाराओं के टकराव और गठबंधन के भीतर खींचतान के चलते उनका कार्यकाल सिर्फ 329 दिन चला। 26 जनवरी 1968 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

सत्ता की अस्थिरता और लगातार बदलाव

महामाया बाबू के बाद सतीश प्रसाद सिन्हा महज 5 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। फिर कांग्रेस के सहयोग से बीपी मंडल के नेतृत्व में नई सरकार बनी, लेकिन यह भी सिर्फ 51 दिन चली। भीतरघात और गुटबाजी ने सरकार गिरा दी।

इसके बाद लोकतांत्रिक कांग्रेस के समर्थन से भोला पासवान शास्त्री को मुख्यमंत्री बनाया गया। वे बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल भी 100 दिन से ज्यादा नहीं चला।

लगातार सत्ता परिवर्तन और खींचतान के बीच विधानसभा आखिरकार भंग कर दी गई। 29 जून 1968 को बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।

डेढ़ साल में चार मुख्यमंत्री

सिर्फ डेढ़ साल की अवधि में बिहार ने 4 मुख्यमंत्री देखे और आखिर में राष्ट्रपति शासन का सामना करना पड़ा। इस दौर ने राज्य की राजनीति को अस्थिरता, गुटबाजी और गठबंधन की मजबूरियों का आईना दिखा दिया।

बिहार चुनाव: दल बदल की आंधी में जब पांच साल में राज्य को मिले थे 9 मुख्यमंत्री

 

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।