राजनीति में जब जातीय समीकरण टूटते हैं, गठबंधन डगमगाते हैं। सत्ता के खिलाफ आंधी चलती है, तब यही महिला वोटर खामोशी से आती है, वोट डालती है और चुनाव की दिशा बदल देती है। नीतीश कुमार ने इसे समझा और लाभार्थी को भागीदार के मॉडल में बदल दिया। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को मिली ऐतिहासिक विजय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में जिस ‘M-Y फॉर्मूले’ का जिक्र किया, उसने पूरी चुनावी बहस ही बदल दी। लंबे समय तक बिहार की राजनीति में ‘M-Y’ यानी मुस्लिम-यादव वोट बैंक को निर्णायक माना जाता रहा, लेकिन इस बार मैदान में उतरा एक बिल्कुल नया समीकरण महिला और यूथ, जिसने रुझान ही बदल दिया।
नतीजों की दिशा बदलने वाली 'साइलेंट फोर्स'
दो चरणों में हुए विधानसभा चुनाव में इस बार बिहार में कुल मतदान 66.91 प्रतिशत रहा जो 1951 के बाद से राज्य में अब तक का सबसे ज्यादा है। पहले चरण में जहां 61.56 फीसदी पुरुषों ने वोट डाला, वहीं महिलाओं की वोटिंग 69.04 प्रतिशत रही। दूसरे चरण में 64.1 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 74.03 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले। 2020 में महिला वोटिंग का प्रतिशत 59.69 था। यानी पिछली बार की तुलना में इस बार करीब 10 फीसदी से अधिक महिलाओं ने वोट दिये हैं। महिला मत प्रतिशत में 10 फीसदी के उछाल से चुनावी नतीजों में बड़े परिवर्तन दिखाया।
43 लाख ज्यादा महिलाओं ने किया वोट
इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में कुल संख्याओं में भी महिलाएं आगे रहीं- 2.51 करोड़ महिलाओं ने वोट डाला, जबकि पुरुष मतदाता 2.47 करोड़ रहे, यानी महिलाओं ने पुरुषों से 4.34 लाख ज्यादा वोट डाले। 2020 के मुकाबले (जब 2.08 करोड़ महिलाओं ने वोट किया था), 2025 के चुनाव में 43 लाख ज्यादा महिलाओं ने मतदान किया। यह बढ़ोतरी पुरुष मतदाताओं की तुलना में भी अधिक है- पुरुष वोटिंग में 36 लाख की बढ़ोतरी दर्ज हुई (2020 में 2.11 करोड़ से बढ़कर 2025 में 2.47 करोड़)। 2020 के चुनाव में भी महिलाओं के उच्च टर्नआउट वाली 167 सीटों पर NDA ने 92 जीतीं, जो कुल जीत का 55% से अधिक था।
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में इस बार सबसे दिलचस्प और चौंकाने वाला पहलू महिला मतदाताओं की भूमिका को लेकर सामने आया है। मतदान पैटर्न के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन जिलों में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक रही, वहां जेडी(यू) को अपेक्षाकृत बेहतर वोट शेयर मिला। आंकड़ों के अनुसार, बिहार के जिन आठ जिलों में कुल मतदाताओं में 53-55% महिलाएं शामिल थीं, वहां नीतीश कुमार की पार्टी को 24.2% वोट मिले। यह आंकड़ा केवल संयोग नहीं है। पिछले कई वर्षों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिला कल्याण को अपनी नीतियों का केंद्र बनाते रहे हैं।
'10 हजारी' चाबी का कमाल
बिहार में एनडीए सरकार की एक पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सितंबर के अंत में शुरू की गई थी। इस योजना के तहत 75 लाख महिलाओं के बैंक खातों में 10,000 रुपये ट्रांसफर किए गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुसार, तब से अब तक 1.41 करोड़ महिलाओं को इस योजना के तहत 10,000 रुपये मिल चुके हैं। यह डायरेक्ट कैश बेनिफिट उन नकद ट्रांसफर योजनाओं जैसी ही है, जो बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे अन्य राज्यों में महिलाओं के लिए घोषित की गई हैं। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत बिहार की करीब 1 करोड़ 51 लाख महिलाओं को 10 हजार रुपये प्रदान किये गये हैं। यह संख्या (1.51 करोड़) कुल महिला वोटरों की आबादी का 40 फीसदी है।
50% पंचायती आरक्षण का गांवों में सीधा असर
नीतीश सरकार का पहला मास्टरस्ट्रोक। बिहार में पहली बार महिलाओं को पंचायतों और नगर निकायों में 50% आरक्षण दिया गया। परिणाम? आज लगभग 1.35 लाख महिला सरपंच, मुखिया और पार्षद सत्ता के केंद्र में हैं। ये महिलाएं अब घर से बाहर नहीं, सत्ता के भीतर हैं। शाहिना परविन का मानना है कि यह आरक्षण महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थायी भागीदार बनाता है।
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