बिहार में नई NDA सरकार के गठन के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐसा मंत्रिमंडल पेश किया है, जिसमें जातीय प्रतिनिधित्व को सटीक रूप से बैलेंस किया गया है। सम्राट चौधरी से लेकर श्रेयसी सिंह तक- कैबिनेट की लिस्ट साफ बताती है कि टीम का चयन सिर्फ प्रशासनिक क्षमता नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन और राजनीतिक रणनीति को ध्यान में रखकर किया गया है। नई कैबिनेट में राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ समुदायों को सीधा प्रतिनिधित्व मिला है।
इन नियुक्तियों के जरिये NDA ने अपने पारंपरिक वोट बैंक को संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी सामाजिक संरचना में ‘कोर सपोर्ट ग्रुप’ को प्राथमिकता बरकरार है।
OB-EBC को मिला बड़ा हिस्सा
इन नियुक्तियों को आगे आने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी के रूप में भी देखा जा रहा है।
दलित नेतृत्व की मजबूत मौजूदगी
कैबिनेट में चार दलित मंत्री- अशोक चौधरी, संतोष कुमार सुमन, लखेंद्र कुमार रोशन और संजय कुमार की एंट्री यह दिखाती है कि NDA सामाजिक न्याय के मुद्दे को मजबूती से आगे बढ़ाना चाहती है। दलित प्रतिनिधित्व बढ़ाकर सरकार ने सामाजिक समानता पर फोकस का संकेत दिया है।
मुस्लिम और दूसरे वर्गों के लिए भी जगह
नई कैबिनेट में एकमात्र मुस्लिम चेहरा मोहम्मद जमा खान हैं, जबकि ‘कहार’ समुदाय से डॉ. प्रमोद कुमार को शामिल कर सामाजिक विविधता का दायरा और व्यापक किया गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मंत्रिमंडल महज प्रशासनिक टीम नहीं, बल्कि एक सुविचारित चुनावी संदेश भी है। दो डिप्टी सीएम, विविध सामाजिक हिस्सेदारी और कई नए चेहरों की मौजूदगी यह दिखाती है कि NDA आने वाले सालों की राजनीति को ध्यान में रखकर आगे बढ़ रही है।
नई कैबिनेट से सरकार ने साफ संकेत दिया है- विकास, सामाजिक न्याय और राजनीतिक संतुलन ही उसके शासन का त्रिकोण होगा।