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Bihar Voter Verification: बिहार वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन मामले पर होगी 'सुप्रीम' सुनवाई, RJD ने चुनाव आयोग पर लगाए गंभीर आरोप

Bihar Election 2025: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद महुआ मोइत्रा समेत कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। इसमें बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन का निर्देश देने वाले निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती दी गई है

अपडेटेड Jul 07, 2025 पर 12:57 PM
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Bihar Chunav 2025: सुप्रीम कोर्ट ने कई वरिष्ठ वकीलों की दलीलों को सुनाने के बाद सुनवाई के लिए तैयार हो गया

Bihar Voter Verification Row News: सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग के बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कई याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल की अगुवाई में कई वरिष्ठ वकीलों की दलीलों को सुना और याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई के लिए राजी हुईसिब्बल ने पीठ से इन याचिकाओं पर निर्वाचन आयोग को नोटिस देने का अनुरोध किया। इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा, "हम गुरुवार को इस पर सुनवाई करेंगे"

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा समेत कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैंइसमें बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन का निर्देश देने वाले निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती दी गई हैझा ने कहा कि निर्वाचन आयोग का 24 जून का आदेश संविधान के आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार), आर्टिकल 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), आर्टिकल 325 (जाति, धर्म और जेंडर के आधार पर किसी को भी वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जा सकता) और आर्टिकल 326 (18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका प्रत्येक भारतीय नागरिक मतदाता के रूप में पंजीकृत होने के योग्य है) का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।

इससे मिलती-जुलती एक याचिका गैर-लाभकारी संगठन 'एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' ने भी दायर की है, जिसमें बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के निर्वाचन आयोग के निर्देश को चुनौती दी गई है। कई अन्य समाजिक संगठनों और योगेंद्र यादव जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी आयोग के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है।

निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण करने के निर्देश जारी किए थे। इसका उद्देश्य अयोग्य नामों को हटाना और यह सुनिश्चित करना है कि केवल पात्र नागरिक ही मतदाता सूची में शामिल हों। बिहार में पिछली बार ऐसा विशेष पुनरीक्षण 2003 में किया गया था।

विपक्ष का आरोप

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि चुनाव आयोग का यह आदेश संविधान का उल्लंघन करता है। हालांकि निर्वाचन आयोग (ECI) ने रविवार को एक बयान जारी करके स्पष्ट किया कि उसने पुनरीक्षण प्रक्रिया पर अपने निर्देशों में कोई बदलाव नहीं किया है। आयोग का यह स्पष्टीकरण कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे एवं कुछ अन्य के सोशल मीडिया पोस्ट की पृष्ठभूमि में आया है। खड़गे ने एक्स पर पोस्ट में कहा, "...जब विपक्ष, जनता और नागरिक समाज का दबाव बढ़ा, तब आनन-फ़ानन में चुनाव आयोग ने ये विज्ञापन आज प्रकाशित किये हैं, जो ये कहते हैं कि अब केवल फॉर्म भरना है, कागज दिखाने जरूरी नहीं है।"


खड़गे ने आरोप लगाया कि जब जनता का विरोध सामने आता है, तो बीजेपी बड़ी चालाकी से कदम पीछे खींच लेती है। कांग्रेस एवं 'इंडिया' गठबंधन के विभिन्न सहयोगी दल उस प्रावधान का विरोध कर रहे हैं, जिसके तहत 2003 के बाद वोटर लिस्ट में शामिल किए गए मतदाताओं को जन्म से संबंधित दस्तावेज दिखाने की आवश्यकता बताई गई है।

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने रविवार को आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूचियों का वेरिफिकेशन करने का आदेश आगामी विधानसभा चुनाव में वास्तविक युवा मतदाताओं को मतदान से वंचित करने के लिए है और उसका अगला निशाना पश्चिम बंगाल होगा।

मोइत्रा ने निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता हैRJD सांसद मनोज झा ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्देश देने संबंधी निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है

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वकील फौजिया शकील के मार्फत दायर अपनी याचिका में झा ने कहा कि निर्वाचन आयोग के 24 जून के आदेश को संविधान के आर्टिकल 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन होने के कारण रद्द किया जाना चाहिए। राज्यसभा सदस्य ने कहा कि विवादित आदेश संस्थागत रूप से मताधिकार से वंचित करने का एक माध्यम है।

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