बिहार चुनावों के नतीजों को लेकर तस्वीर साफ हो गई है। गांव-गांव और शहर-शहर एनडीए की जीत हुई है। विपक्षी गठबंधन का सूपड़ा साफ हो गया है। वैसे तो एग्जिट पोल के नतीजों से एनडीए की जीत का अंदाजा लग गया था। लेकिन, महागठबंधन की सीटों का अंदाजा लगाने में 11 नवंबर को आए एग्जिट पोल पूरी तरह फेल रहे। किसी एग्जिट पोल ने महागठबंधन खासकर राजद के इतने बुरे हश्र का संकेत नहीं दिया था। अब बहस इस बात पर हो रही है कि आखिर एनडीए की इस प्रंचड की वजह क्या रही?
अमित शाह ने एनडीए का रोडमैप काफी पहले तैयार कर दिया था
बिहार में एनडीए की जीत का सबसे ज्यादा श्रेय BJP के दिग्गज नेता और गृहमंत्री अमित शाह की स्ट्रेटेजी को जाता है। एनडीए ने यह पूरा चुनाव शाह की रणनीति के तहत लड़ा। यह कहा जा सकता है कि इस चुनाव में एनडीए का रोडमैप अमित शाह ने काफी पहले तैयार कर दिया था। आखिर समय तक एनडीए इस रोडमैप पर चलता दिखा। अगर कुछ शुरुआती मान मनौवल को छोड़ दिया जाए तो एनडीए की गाड़ी बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान कभी बेपटरी नहीं हुई।
सहयोगी दलों को साथ बनाए रखने की कोशिश
शाह ने बिहार चुनावों के लिए एनडीए की पटकथा काफी पहले लिखनी शुरू कर दी थी। इसमें पहला काम सहयोगी दलों के बीच सीटों का बंटवारा था। ध्यान देने वाली बात है कि इस बार एनडीए ने पिछली बार के मुकाबले ज्यादा एकजुट होकर चुनाव लड़ा। चुनावों से पहले किसी सहयोगी दल ने अंसतुष्ट होकर एनडीए का साथ नहीं छोड़ा। एनडीए के साथी जो पहले से केंद्र सरकार में शामिल हैं, उन्होंने बिहार चुनावों के दौरान भी यह साथ बनाए रखा। इनमें चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता शामिल हैं।
बिहार की जाति आधारित राजनीति को शाह ने समझा
केंद्रीय गृह मंत्री ने न सिर्फ चुनावों के दौरान बिहार का लगातार दौरा किया बल्कि उन्होंने काफी पहले बिहार की जमीनी राजनीति को समझने के लिए सूबे में समय बितानी शुरू कर दिया था। बताया जाता है कि चुनावों से पहले शाह कुल मिलाकर 19 दिन बिहार रहे। इस दौरान उन्होंने राज्य के जाति आधारित समीकरण को समझने की कोशिश की। खास इलाकों में खास जाति के वर्चस्व को देखते हुए भाजपा और सहयोगी दलों के बीच सीटों का बंटवारा किया। दरअसल, शाह ने यह अंदाजा लगा लिया था कि चिराग, मांझी और कुशवाहा को कितनी सीटें व्यावहारिक रूप से ऑफर की जा सकती है। उन्होंने अपने कैलकुलेशन के हिसाब से सहयोगी दलों को सीटों का आवंटन किया। इसका नतीजा यह हुआ कि हर सहयोगी पार्टी का स्ट्राइक रेट शानदार रहा।
अंतिम समय में नीतीश कुमार के नाम पर लगाया मुहर
सूत्रों का कहना है कि इस बार शाह ने चुनावों के दौरान अगले मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान नहीं करने के बारे में सोचा था। हालांकि, बीजेपी ने बार-बार यह दोहराया कि यह चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए लड़ रहा है। लेकिन, शाह सहित अगले मुख्यमंत्री के नाम पूछे जाने पर गोलमोल जवाब देते नजर आए। लेकिन, जब विपक्ष ने यह प्रचारित करना शुरू किया कि इस बार एनडीए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगा तो शाह ने इस उलझन को दूर करते हुए नीतीश को फिर से मुख्यमंत्री बनाने का संकेत दे दिया। इसका सीधा असर बिहार के मतदाताओं पर भी पड़ा।
बीजेपी के अंसतुष्ट नेताओं से शाह ने सीधे बात की
एक्सपर्ट्स का कहना है कि शाह का कार्यकर्ताओं पर काफी ज्यादा असर है। उनका यह असर पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की शिकायत दूर करने में काफी काम आया। बताया जाता है कि करीब 100 भाजपा नेता टिकट के बंटवारों से असंतुष्ट थे। शाह ने इन सभी नेताओं से बातचीत की। उन्हें पार्टी के बड़े मकसद के बारे में बताया। उनकी इस बातचीत से नेताओं की नाराजगी जल्द खत्म हो गई और भाीतरघात की आशंका खत्म हो गई। पूरी पार्टी और ज्यादातर कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा।
इस बार भी मोदी के नाम पर लड़ा चुनाव
शाह ने हमेशा की तरह इस बार भी मोदी ने नाम पर यह चुनाव लड़ने का फैसला किया। लेकिन, इस दौरान नीतीश कुमार को हमेशा साथ रखा। उन्हें पूरा सम्मान दिया। इस वजह से पूरे चुनाव के दौरान जदयू और बीजेपी के बीच कोई मनमुनटाव देखने को नहीं मिला। बहुत सोचसमझकर स्टार प्रचारकों की लिस्ट तैयार की गई है। बीजेपी के उन चेहरों को चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया गया जो पहले के चुनावों में अपनी अहमियत साबित कर चुके हैं। इस लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के नाम शामिल हैं। बताया जाता है कि संघ ने भी इस बार सक्रिय भूमिका निभाई।