Chhorii 2 Review: बॉलीवुड में हर साल कोई ना कोई हॉरर फिल्में रिलीज होती रहती है। इस हॉरर फिल्मों में हम अक्सर पुरानी हवेली, धुंध से भरे रास्ते और अचानक से सुनाई देने वाली चीखें सुनते हैं। पर कुछ हॉरर फिल्में ऐसी होती है कि जो हमें डराती भी है और साथ ही हमारे दिमाग पर एक गहरा असर भी छोड़ती है। ऐसी ही एक फिल्म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है 'छोरी 2'। ये फिल्म साल 2021 में आई 'छोरी' का सीक्वल है, जो 11 अप्रैल को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज की गई है।
डायरेक्टर विशाल फुरिया 'छोरी 2' के साथ एक बार फिर डर की दुनिया में लौटे हैं। इस बार इसे और भी दमदार तरीके से दिखाया गया है। ये फिल्म आपको डराने के साथ सोचने पर भी मजबूर कर देती है
फिल्म 'छोरी 2' की शुरुआत एक छोटी सी बच्ची से होती है। वह लालटेन लेकर गन्ने के डरावने खेतों में अपनी मां को ढूंढती हुई चलती जाती है। उसकी आवाज में डर और मासूमियत साफ झलकती है। लेकिन मां की जगह उसे कुछ अजीब लोग मिलते हैं जिनके चेहरे पीले होते हैं और वो बार-बार कहते हैं , "मां बुला रही है।" जिसके बाद एक कुएं में उतरने के बाद यह सीन खत्म हो जाता है। अब सात साल बीत चुके हैं। अब वह छोटी बच्ची बड़ी होकर इशानी बन जाती है, जिसे एक अजीब बीमारी होती है, उसे सूरज की रोशनी से खतरा होता है। उसकी मां साक्षी (नुसरत भरुचा) इंस्पेक्टर समर (गश्मीर महाजनी) के साथ रहती है। जहां पर वे सेफ और शांति से रहते हैं। लेकिन ये शांति ज्यादा देर टिक नहीं पाती। इशानी को एक डरावनी आत्मा अपनी ओर खींचने लगती है। इसके बाद साक्षी की जिंदगी में फिर से वहीं डर और तबाही आ जाती है।
कहानी फिर से हमें गन्ने के खेतों के नीचे बने एक रहस्यमयी और भयानक जगह पर ले जाती है, जहां परंपरा के नाम पर डरावनी चीजें होती हैं। यहीं से फिल्म में असली डर की शुरुआत होती है। एक रहस्यमय प्रधान की अगुवाई में एक खतरनाक पंथ (संस्था) सामने आता है, जो पितृसत्ता और पुराने अंधविश्वासों पर चलता है। इनका मकसद है, साक्षी का सिर काटना और इशानी को प्रधान को सौंपना। इसके साथ ही डर और खून से भरी एक खौफनाक उलटी गिनती शुरू हो जाती है।
नुसरत भरुचा ने इस फिल्म में साक्षी का रोल बहुत ही दमदार तरीके से निभाया है। उन्होंने मां की ममता और एक मजबूत महिला की हिम्मत को बड़ी खूबसूरती से दिखाया है। सोहा अली खान ने दासी मां के रोल में सबको डरा दिया है। उनका रहस्यमय अंदाज, डरावनी आवाज और अनुष्ठानों में डूबा किरदार बहुत असरदार है।
सोचने पर मजबूर करेगी आपको
डायरेक्टर फ्यूरिया ने इस फिल्म को सिर्फ डरावनी नहीं, बल्कि आपको सोचने पर मजबूर करने वाली कहानी की तरह पेश किया है। इसमें डर भूतों से ज्यादा समाज की सच्चाईयों से जुड़ा है। उन्होंने अचानक डराने वाले सीन नहीं दिखाए, बल्कि धीरे-धीरे ऐसा माहौल बनाया जो दिल तक असर करता है। साक्षी को डर भूतों से नहीं, बल्कि उन परंपराओं से है जो सालों से महिलाओं को दबा रही हैं।
'छोरी 2' की सिनेमैटोग्राफी बहुत प्रभावशाली है। अंशुल चौबे ने कैमरे के जरिए अंधेरे और रहस्यमय माहौल को बखूबी दिखाया है। 'छोरी 2' एक अच्छी हॉरर फिल्म है, लेकिन इसमें कुछ कमजोरियां भी हैं। साइड किरदारों को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया और वे जल्दी गायब हो जाते हैं। खासकर फिल्म का आखिरी हिस्सा थोड़ा धीमा लगता है। क्लाइमैक्स तो अच्छा है, लेकिन ऐसा लगता है कि इसे अगले पार्ट के लिए जल्दी खत्म कर दिया गया। इन छोटी-छोटी गलतियों के बावजूद यह एक बेहतरीन डरावनी फिल्म है, जिसको एक बार देखा जा सकता है।