Javed Akhtar: संगीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने उन लोगों को तीखा जवाब दिया, जिन्होंने शोले जैसी क्लासिक फिल्म को साधारण बताया था। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि यह एक अच्छी फिल्म नहीं है। मीडिया से बात करते हुए, जावेद ने कहा कि पाँच दशक बाद भी, शोले के छोटे किरदारों का इस्तेमाल "स्टैंड-अप कॉमेडी" या दूसरी फिल्मों के संवादों में किया जाता है। शोले सलीम-जावेद ने लिखी थी।
जब जावेद साहब से पूछा गया कि शोले के छोटे किरदार क्यों अमर हैं, तो उन्होंने कहा कि काश ये बात उन्हें पता होता...काश मुझे पता होता। अगर आपको पता चले तो मुझे फ़ोन करके ज़रूर इल्तला कीजिएगा। क्योंकि मैं इसे दोबारा करना जीना और करना चाहूंगा। मैंने यूट्यूब पर सुना है कि कुछ लोग कहते हैं कि शोले कोई महान फ़िल्म नहीं है। हो सकता है कि यह न हो और मुझे नहीं पता कि एक महान फ़िल्म की परिभाषा क्या होती है।
जावेद अख्तर ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि "सच तो यह है कि आज भी शोले का एक छोटा सा किरदार, जिसने तीन शब्द बोले हों या जो बस वहीं खड़ा रहा हो, स्टैंड-अप कॉमेडी में इस्तेमाल किया जाता है। फिल्म के संबादों और स्टार्स के किरदारों का दूसरी फिल्मों के संवादों में भी ज़िक्र किया जाता है। यहाँ तक कि राजनीतिक भाषणों में भी उसका ज़िक्र होता है। लोग उसके संवादों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे तेरा क्या होगा, कालिया..., अरे ओ सांभा..., और पूरे पचास हज़ार...। जब आप कहते हैं मौसी ने ऐसा कहा..., तो सबको पता चल जाता है कि आप किस मौसी की बात कर रहे हैं।
बता दें कि एक इंटरव्यू में नसीरुद्दीन शाह ने कहा था कि उन्हें शोले एक ग्रेट फिल्म नहीं लगती हैं। उनके हिसाब से यह एक साधरण फिल्म हैं। शोले (1975) रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित और उनके पिता जी.पी. सिप्पी द्वारा निर्मित एक एक्शन-एडवेंचर फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, अमजद खान, हेमा मालिनी और जया बच्चन ने अभिनय किया था। फिल्म को हिंदी सिनेमा में अव्वल दर्जा हासिल है।
यह फ़िल्म दो अपराधियों, वीरू (धर्मेंद्र) और जय (अमिताभ) के बारे में है, जिन्हें एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी (संजीव) गब्बर सिंह (अमजद) को पकड़ने के लिए नियुक्त किया जाता है। हेमा (बसंती) और जया (राधा) वीरू और जय की प्रेमिकाओं के रूप में दिखाई दी हैं। फिल्म आज भी लोगों की फेवरिट है।