120 Bahadur: 'आखिरी आदमी आखिरी गोली' कैसे रेजांग ला में मेजर शैतान सिंह ने 120 सैनिकों के साथ 2000 चीनियों को चटाई धूल
फरहान अख्तर इस फिल्म में चार्ली कंपनी के कमांडर मेजर शैतान सिंह भाटी की भूमिका निभा रहे हैं, जिन्होंने रेजांग ला की लड़ाई के दौरान भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया था। उनके और उनके साथियों के साहस और बलिदान ने रेजांग ला पर चीन के कब्जे को रोकने में मदद की। तो चलिए आज जानते हैं रेजांग ला की उसी लड़ाई और मेजर शैतान सिंह भाटी के बारे में
120 Bahadur: कैसे रेजांग ला में मेजर शैतान सिंह ने 120 सैनिकों के साथ 2000 चीनियों को चटाई धूल
फरहान अख्तर की आन वाली नई फिल्म '120 बहादुर' की इन दिनों काफी चर्चा है, जिसमें 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान हुए बड़े संघर्ष की कहानी को पर्दे पर दिखाया जाएगा। बैटल ऑफ रेजांग ला, चीन के साथ भारत के युद्ध के दौरान हुई कई अहम लड़ाइयों में से एक। युद्ध पर आधारित इस फिल्म का टीजर मंगलवार (5 अगस्त) को रिलीज किया गया, जिसमें 120 भारतीय सैनिकों की वीरता और साहस को दिखाया गया है, जिन्होंने -24 डिग्री तापमान में हजारों चीनी सैनिकों के हमले को नाकाम कर दिया।
फरहान अख्तर इस फिल्म में चार्ली कंपनी के कमांडर मेजर शैतान सिंह भाटी की भूमिका निभा रहे हैं, जिन्होंने रेजांग ला की लड़ाई के दौरान भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया था। उनके और उनके साथियों के साहस और बलिदान ने रेजांग ला पर चीन के कब्जे को रोकने में मदद की। तो चलिए आज जानते हैं रेजांग ला की उसी लड़ाई और मेजर शैतान सिंह भाटी के बारे में...
मेजर शैतान सिंह भाटी कौन थे?
मेजर शैतान सिंह भाटी, पैंगोंग झील के पास रेजांग ला में 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के कमांडर थे। राजस्थान के जोधपुर के बनासर गांव में 1 दिसंबर, 1924 को एक एक सैन्य परिवार में उनका जन्म हुआ। शैतान सिंह लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह के बेटे थे।
भाटी के नेतृत्व वाली चार्ली कंपनी के सभी सैनिक अहीर थे, जो हरियाणा के गुड़गांव और मेवात इलाके से आते थे और ये सभी जवान जानवर पालने वाले या किसान परिवारों से ताल्लुक रखते थे।
भाटी 37 साल की उम्र में चीनी सैनिकों से देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। उनकी असाधारण वीरता और साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
बैटल ऑफ रेजांग ला
रेजांग ला की लड़ाई लद्दाख में चुशूल घाटी की बर्फीली चोटियों पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच लड़ा गई थी। रेजांग ला एक 16,000 फुट ऊंचा माउंटेन पास है, जो रणनीतिक गांव चुशुल और स्पैंगगुर झील के पास है। यह पास भारतीय और चीनी दोनों इलाकों से होकर गुजरता है। यह पास चुशूल की रक्षा के लिए अहम है।
इस युद्ध को अनेक विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारतीय सेना की अदम्य शक्ति के प्रदर्शन के रूप में याद किया जाता है। इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा - उनकी संख्या चीनी सैनिकों के मुकाबल काफी कम थी, उनके पास एडवांस हथियार भी नहीं थे और वे चीनी सैनिकों की तुलना में ज्यादा सर्दी झेलने की स्थिति में नहीं थे।
इतनी मुश्किलों के बावजूद, 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के 120 सैनिकों ने 18 नवंबर 1962 की रात को चीन के हमले के दौरान असाधारण साहस का परिचय दिया।
मेजर शैतान सिंह ने रेजांग ला को चीन के हमले से बचाने के लिए दो किलोमीटर के मोर्चे पर अपनी तीन प्लाटून तैनात कीं। रिटायर्ड कर्नल एनएन भाटिया के अनुसार, भारतीय सैनिकों के पास केवल पुरानी .303 सिंगल शॉट बोल्ट एक्शन राइफलें थीं और उनके पास कुछ ऑटोमेटेड डेंटिंग टूल और पुराने 62 रेडियो सेट थे, जिनकी बैटरियां बर्फ में फ्रीज हो चुकी थीं। इस कारण से वे रोडियो सेट भी काम नहीं कर रहे थे।
भारतीय सैनिकों के पास आगे बढ़ते दुश्मन को रोकने के लिए बारूदी सुरंगें भी नहीं थीं। कमांड पोस्ट के लिए बने ऊपरी शेल्टर जीरो से भी नीचे के तापमान के लिए उपयोगी नहीं था।
18 नवंबर को जब चीनी सैनिक रेजांग ला पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़े, तो मेजर शैतान सिंह की दो प्लाटूनों ने राइफल, मशीन गन और मोर्टार से लगातार गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे दुश्मन को पीछे हटना पड़ा।
इस हमले से चीन की तरफ भारी नुकसान हुआ। उन्होंने भारतीय चौकियों पर हैवी आर्टिलरी फायर किया। बाद में, चीनी सैनिकों ने रेजांग ला पर कब्जा करने की एक और कोशिश की।
120 भारतीय सैनिकों का सामना 2,000 से ज्यादा चीनी सैनिकों से था। तीसरी पलटन ने अपने सभी हथियारों के साथ दुश्मन का सामना किया। कई चीनी सैनिक मारे गए, जबकि बचे हुए 20 सैनिकों ने भारतीय पलटन पर हमला कर दिया, जिसके कारण चार्ली कंपनी के एक दर्जन सैनिकों के साथ उनकी हाथापाई हुई।
अपने पिछली कोशिशों में नाकाम होने के बाद, चीन ने फिर से भारतीय ठिकानों पर हमला किया, लेकिन इस बार पीछे से। दुश्मन की तोप और मोर्टार की गोलाबारी के बावजूद, भारतीय सैनिक चुशूल पर डटे रहे। 21 नवंबर को चीन ने एकतरफा युद्धविराम की घोषणा कर दी।
13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के 120 जवानों और अधिकारियों में से 114 शहीद हो गए। हालांकि, उन वीरों ने चीन 1,000 सैनिकों को मौत का घाट उतार दिया।
रेजांग ला युद्ध में मेजर शैतान सिंह की भूमिका
मेजर शैतान सिंह भाटी ने अपनी जान की बाजी लगाकर बहादुरी दिखाई। जब चीनी सैनिकों ने उनकी पलटनों पर हमला किया, तो वे अपने सैनिकों का मनोबल बनाए रखने के लिए लगातार एक चौकी से दूसरी चौकी पर जाते रहे।
इससे वह चीनी गोलीबारी की जद में आ गए, क्योंकि पहले उनके हाथ पर और बाद में पेट में गोली लगी। उनके दो साथियों ने उन्हें सुरक्षित जगह पर ले जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कथित तौर पर उनसे कहा कि वे उन्हें एक चट्टान के पीछे छोड़ दें और दुश्मन से लड़ते रहें।
कई महीनों बाद उनका शव उसी जगह पर उनके सैनिकों के शवों के साथ मिला।
फरवरी 1963 में, एक भारतीय सर्च पार्ट को युद्धभूमि में लाशें मिलीं। सभी सैनिक बर्फ में जम गए थे, कुछ अभी भी अपनी बंदूकों से लिपटे हुए थे। पांच को चीनियों ने बंदी बना लिया था।
हर एक सैनिक ने अपने पास उपलब्ध सभी गोला-बारूद का इस्तेमाल किया, और सी कंपनी ने “आखिरी आदमी, आखिरी गोली” तक लड़ाई लड़ी।
इस युद्ध में जिंदा बचे रिटायर्ड ब्रिगेडियर आर.वी. जटार ने मेजर भाटी को एक शर्मीले और इंट्रोवर्ट शख्स के रूप में याद किया। उन्होंने कहा, "हालांकि, मैदान पर, वह एक उत्कृष्ट और बहादुर अधिकारी थे, जिन्होंने भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं को कायम रखा।"
मेजर शैतान सिंह का पार्थिव शरीर जोधपुर लाया गया, जहां हजारों लोग चुशूल के इस नायक को अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा हुए और पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।