70 के दशक में चुनावी धांधली का निराधार आरोप लगाने के कारण घट गई थी बलराज मधोक की राजनीतिक साख
तरह-तरह के निराधार आरोप लगाने वालों और उस पर विश्वास करने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं की संख्या इस बीच बढ़ी है। इस कारण भी राजनीति की साख कम हुई है। इस कारण और दूसरे कई कारणों से बलराज मधोक को भारतीय जनसंघ ने सन 1973 में पार्टी से निकाल दिया था
70 के दशक में चुनावी धांधली का निराधार आरोप लगाने के कारण घट गई थी बलराज मधोक की राजनीतिक साख
भारतीय जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने सन 1971 में यह आरोप लगाया था कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने मत पत्रों पर लगी अदृश्य रशियन स्याही के जरिए धांधली करके लोक सभा चुनाव जीत लिया है। हालांकि, मधोक के इस आरोप पर उनके दल जनसंघ के भी किसी बड़े नेता ने विश्वास नहीं किया। इस अफवाह को बढ़ावा नहीं दिया गया। इस निराधार आरोप के कारण खुद मधोक की राजनीतिक साख कम हुई। आजकल तो आए दिन चुनावी धांधली के आरोप लगते रहते हैं।
तरह-तरह के निराधार आरोप लगाने वालों और उस पर विश्वास करने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं की संख्या इस बीच बढ़ी है। इस कारण भी राजनीति की साख कम हुई है। इस कारण और दूसरे कई कारणों से बलराज मधोक को भारतीय जनसंघ ने सन 1973 में पार्टी से निकाल दिया था।
प्रोफेशर मधोक तब नई दिल्ली लोक सभा चुनाव क्षेत्र में इंदिरा कांग्रेस के शशि भूषण से चुनाव हार गये थे। उससे पहले वह दो बार सांसद चुने गये थे।
भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक मधोक ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की भी स्थापना की थी। मधोक की यह भी शिकायत रही कि उन्हें दरकिनार करके अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी में आगे बढ़ाया गया था। मिजाज से मधोक अतिवादी थे, जबकि वाजपेयी मध्यमार्गी।
जनसंघ पर संघ के प्रभाव को प्रो. मधोक कम करना चाहते थे। हालांकि, उन दिनों यह अपुष्ट खबर भी आती रहती थी कि मधोक को इस बात पर एतराज रहता था कि अटल बिहारी वाजपेयी मुसलमानों के साथ चाय भी क्यों पीते हैं?
अदृश्य स्याही ने मुझे हराया: मधोक
1971 के लोक सभा चुनाव के नतीजे आने के तत्काल बाद प्रो. मधोक ने यह कह कर देश को चैंका दिया था कि ‘‘मुझे शशि भूषण ने नहीं हराया है, बल्कि अदृश्य स्याही ने हराया है। मैं कुछ ऐसा रहस्य खोलने जा रहा हूं, जिससे सारा देश हिल जाएगा।’’
प्रो. मधोक ने आरोप लगाया था कि इस चुनाव के मत पत्रों पर अदृश्य स्याही लगी हुई थी। इस अदृश्य स्याही से गाय-बछिया के सामने पहले से ही निशान लगा हुआ था। वह निशान मत पत्रों के मत पेटियों में जाने के कुछ ही समय के बाद अपने-आप उभर आता था। दूसरी ओर मतदाता का लगाया गया निशान अपने आप मिट जाता था।"
तब इंदिरा कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय-बछिया था। प्रो. मधोक के इस बयान से देश में सनसनी फैली थी। इस संबंध में प्रो. मधोक ने अपने दल के नेताओं के साथ-साथ सहयोगी दल संगठन कांग्रेस के नेता एस.निजलिंगप्पा से भी भेंट की थी। निजलिंगप्पा ने कहा था कि ‘मधोक साहब ऐसा कुछ कह तो रहे थे, लेकिन मैं नहीं जानता सच्चाई क्या है?’
कांग्रेस का महा विभाजन
सन 1969 में कांग्रेस का महा विभाजन हुआ था। तब अविभाजित कांग्रेस के अध्यक्ष निजलिंगप्पा थे। महा विभाजन के बाद कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गयी। मूल कांग्रेस का नाम 'संगठन कांग्रेस' पड़ा और इंदिरा गांधी के दल का नाम 'कांग्रेस' ही रहा। निजलिंगप्पा 'संगठन कांग्रेस' में थे।
पार्टी में महा विभाजन के बाद लोक सभा में इंदिरा सरकार का बहुमत खत्म हो गया था। कम्युनिस्टों के समर्थन से वह सरकार चला रही थीं। इंदिरा गांधी ने अपना जन समर्थन बढ़ाने के लिए ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था।
इसी नारे के तहत ही उन्होंने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। राजाओं-महा राजाओं के प्रिवी पर्स और विशेषाधिकार खत्म कर दिए। उन्होंने आम लोगों को बताया कि इससे गरीबों को फायदा मिलेगा। बड़ी संख्या में गरीब उनके साथ हो लिये।
1971 में हार गए बड़े-बड़े नेता
इसी पृष्ठभूमि में 1971 में लोक सभा का मध्यावधि चुनाव हुआ, तो इंदिरा गांधी बड़े बहुमत से चुनाव जीत गयीं। 1971 में ऐसे-ऐसे नेता चुनाव हार गये जिनकी हार की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।
उस हार से बौखलाए प्रो. मधोक ने प्रचार किया कि सोवियत संघ से मंगायी गयी अदृश्य स्याही की मदद से इंदिरा गांधी ने चुनाव में प्रतिपक्ष को हरवा दिया।
बाद में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जन आंदोलन शुरू हुआ। उसे दबाने के लिए 1975 में आपातकाल लगाया गया और 1977 में जब चुनाव हुआ, तो इंदिरा गांधी को जनता ने सत्ता से हटा दिया।
उत्तर भारत में इंदिरा कांग्रेस की भारी हार हुई। फिर भी किसी बड़े नेता ने यह आरोप नहीं लगाया चुनावी धांधली के जरिए इंदिरा गांधी को गद्दी से उतार दिया गया। क्योंकि उन दिनों जो जन उभार था, वह मतदान केंद्रों पर भी नजर आ रहा था।