उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भले ही अभी दो साल दूर हों, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी जिलों में “वॉर रूम” बना रही है, बूथ स्तर की टीमें तैयार कर रही है और उन्हें एक राज्यव्यापी कमांड नेटवर्क से जोड़ रही है, ताकि वोटर लिस्ट के रिवीजन वर्क की निगरानी की जा सके। वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत भाजपा ने बड़ा संगठनात्मक अभियान शुरू किया है, जिसमें डेटा प्रबंधन, डिजिटल ट्रैकिंग और बूथ स्तर पर फील्डवर्क जैसे काम शामिल हैं।
चुनाव आयोग का यह अभ्यास जहां मतदाताओं के विवरण की जांच और अपडेट पर केंद्रित है, वहीं भाजपा ने इसे अपने लिए एक जमीनी स्तर का जनसंपर्क और संगठन मज़बूती का अभियान बना लिया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कदम भाजपा की 2027 विधानसभा चुनाव रणनीति की शुरुआती तैयारी का हिस्सा है।
उत्तर प्रदेश के हर जिले में लखनऊ और गोरखपुर से लेकर इटावा और हरदोई तक भाजपा के जिला कार्यालय अब चुनावी गतिविधियों से भरे हुए हैं। यहां बूथ-वार डेटा की जांच और समीक्षा करने वाले स्वयंसेवक लगातार काम में जुटे हैं। हर "वॉर रूम" अब एक छोटे चुनावी कार्यालय की तरह काम कर रहा है। यहां लैपटॉप, मतदाता सूची के प्रिंटआउट और सैकड़ों बूथ प्रभारियों से जुड़े व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं को यह सिखाया जा रहा है कि वे हटाए गए, बदले गए या नए मतदाताओं की सही पहचान करें और यह सुनिश्चित करें कि उनका नाम सही श्रेणी और सूची में शामिल हो। इस अभियान का मकसद बूथ स्तर पर संगठन को मज़बूत करना और आने वाले चुनावों के लिए पूरी तैयारी करना है।
लखनऊ में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने इस अभियान को “एक लंबे चुनावी सफर की शांत शुरुआत” बताया। उन्होंने कहा, “मतदाता सूची किसी भी चुनाव की रीढ़ होती है। अगर हम शुरुआत से ही इस प्रक्रिया में शामिल रहेंगे, तो यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर असली मतदाता का नाम सूची में हो और किसी की अनदेखी न हो।” इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी राज्य महासचिव (संगठन) धर्मपाल सिंह खुद कर रहे हैं। उन्होंने सभी जिला अध्यक्षों को निर्देश दिया है कि वे हर हफ्ते राज्य कार्यालय को अपनी प्रगति रिपोर्ट भेजें। इसके अलावा, एक डिजिटल डैशबोर्ड भी तैयार किया गया है, जिससे बूथवार नए मतदाताओं के जुड़ने और हटने पर नज़र रखी जा सके। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, यह पहली बार है जब भाजपा के आईटी सेल का इस्तेमाल मतदाता सत्यापन जैसे बड़े अभियान में इतने व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा का यह अभियान उसके पुराने ‘पन्ना प्रमुख’ मॉडल का नया और उन्नत रूप है। यह वही बूथ-स्तर की रणनीति है जिसने पार्टी को 2017 और 2022 के चुनावों में मज़बूती दी थी। इस बार फोकस खास तौर पर उन नए मतदाताओं पर है, जो 1 जनवरी 2026 से पहले 18 साल के होने वाले हैं। लखनऊ के डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. शशिकांत पांडे ने कहा, “भाजपा ने सूक्ष्म स्तर पर काम करने की कला में महारत हासिल कर ली है।” उन्होंने आगे बताया, “जो बाहर से सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया लगती है, असल में वह चुनावी अभियान की शुरुआती तैयारी है। मतदाता सूची में जुड़ने वाला हर नया नाम, पार्टी के लिए एक संभावित वोट है, जिसे भाजपा पहले से ही अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है।”
विपक्ष ने अभी नहीं पकड़ा रफ़्तार
जहाँ भाजपा जमीन स्तर पर अपनी चुनावी तैयारियाँ तेज़ी से आगे बढ़ा रही है, वहीं विपक्षी दल अभी भी धीमी चाल में दिख रहे हैं। समाजवादी पार्टी, जो लोकसभा चुनाव में हार के बाद संभलने की कोशिश में है, फिलहाल मुद्दा-आधारित आंदोलनों पर ध्यान दे रही है। उसने अभी तक भाजपा जैसी बूथ-स्तर की सक्रियता नहीं दिखाई है। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने न्यूज़18 से बातचीत में कहा, “भाजपा चाहे दो साल पहले से अपना अभियान शुरू कर दे, लेकिन जनता महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की परेशानियों को नहीं भूलेगी। चुनाव तकनीक से नहीं, लोगों के विश्वास से जीते जाते हैं।”
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी (सपा) चुनावी तारीखें तय होने के बाद, यानी 2026 के मध्य में अपनी बूथ समितियों का फिर से गठन कर सकती है। वहीं दूसरी ओर, बसपा अभी भी ज़मीनी स्तर पर ज़्यादा सक्रिय नहीं दिख रही है। कांग्रेस ने अपने सीमित संसाधनों का फोकस कुछ चुनिंदा शहरी क्षेत्रों और युवा मतदाताओं के पंजीकरण पर रखा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा के मुकाबले विपक्षी दलों की तैयारी अभी शुरुआती दौर में है।
वहीं उत्तर प्रदेश भाजपा प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा, “हमारा लक्ष्य पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी, अनुशासित और सबकी भागीदारी वाला बनाना है। हमारा मानना है कि जो बूथ जीतता है, वही चुनाव जीतता है।” उन्होंने बताया, “हमारे कार्यकर्ता यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी असली मतदाता छूटे नहीं और किसी तरह की गलत प्रविष्टि न हो। मतदाता सूची में सुधार का यह अभियान अब हमारे लिए लोगों से जुड़ने और जनसंपर्क बढ़ाने का एक बड़ा अवसर बन गया है।”