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Layoffs: कंपनियां छंटनी के लिए 40 से ज्यादा उम्र के एंप्लॉयीज को कर रही टारगेट, जानिए इसकी क्या है वजह

40 से ज्यादा उम्र में व्यक्ति की जिम्मेदारियां काफी ज्यादा होती है। उसे बच्चों की पढ़ाई की फीस चुकानी पड़ती है। उसे घर की EMI चुकानी होती है। साथ ही अपने बुजुर्ग मातापिता के इलाज पर पैसे खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में अचानक नौकरी चले जाने से व्यक्ति बड़ी मुसीबत में फंस जाता है

अपडेटेड Apr 14, 2025 पर 5:11 PM
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40 और 50 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति के लिए यह 'गोल्डन सैलरी पीरियड' होता है।

क्या आपने इस पर ध्यान दिया है कि कंपनियां छंटनी में उन एंप्लॉयीज को टारगेट कर रही हैं, जिनकी उम्र 40 से ज्यादा है? बॉम्बे सेविंग कंपनी के सीईओ शांतनु देशपांडे ने इस ट्रेंड के बारे में बताया है। यह ट्रेंड इसलिए भी खतरनाक है, क्योंकि 40 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति की सैलरी ज्यादा होती है। साथ ही उसकी जिम्मेदारियां भी ज्यादा हैं। देशपांडे का कहना है कि 40 और 50 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति के लिए यह 'गोल्डन सैलरी पीरियड' होता है। लेकिन, इस दौरान उस पर बच्चों की पढ़ाई की फीस, मातापिता के इलाज के खर्च और घर की ईएमआई की भी जिम्मेदारी होती है।

यह समय बड़ी वित्तीय जिम्मेदारियां को होता है

देशपांडे ने कहा कि अगर आप 40 साल से ज्यादा उम्र के हैं और आपकी नौकरी चली जाती है तो आपका परिवार बड़ी आर्थिक मुश्किल में फंस जाता है। उन्होंने कहा, "यह एक बड़ा संकट है। इस उम्र में आप पर कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं। इसमें घर की EMI, बच्चो की पढ़ाई की फीस और मातापिता के इलाज पर होने वाले खर्च शामिल हैं।" दरअसल, देशपांडे ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट किया है।


दोबारा नौकरी तलाशन में 40 प्लस लोगों को आती है दिक्कत

देशपांड के इस पोस्ट पर कई यूजर्स ने प्रतिक्रिया जताई है। श्वेता गाडिया नाम की यूजर ने बताया है कि उनकी नौकरी 42 की उम्र में चली गई। तब से दूसरी नौकरी तलाश करने की वह कोशिश कर रही हैं। हालांकि, उनका प्रोफाइल काफी अच्छा है। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है, "यह सच है। पिछले साल मेरी नौकरी चली गई। तब से मैं दूसरी नौकरी हासिल करने की कोशिश कर रही हूं। यह बहुत पीड़ादायक है। ऐसा होने पर तो कई लोग स्ट्रेस में जा जाते हैं।"

इस ट्रंड के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह कंपनियों की यह सोच है

विशाल जोशी नाम के यूजर ने अपने पोस्ट में लिखा है कि कंपनियां सोचती है कि एक व्यक्ति को प्रति माह 1 लाख रुपये की सैलरी पर रखने की जगह वे उस पैसे में चार लोगों को रख सकती हैं। हर एंप्लॉयी को उन्हें सिर्फ 25,000 रुपये देने होंगे, जबकि घंटे के लिहाज से प्रोडक्टिविटी बढ़ जाएगी। उन्होंने लिखा है, "पोजीशन जितनी हाई होगी, सैलरी उतनी ज्यादा होगी। लेकिन, कंपनियां अब टैलेंट की जगह यह देखती हैं कि कुल एंप्लॉयीज के काम के घंटों का जोड़ कितना है।"

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हर सेक्टर में दिख रहा है यह ट्रेंड

यह ट्रेंड किसी एक सेक्टर तक सीमित नहीं है। कई सेक्टर में इस तरह का ट्रेंड देखने को मिला है। इससे भले ही कंपनियों को फायदा हो रहा हो, लेकिन लोगों को बहुत दिक्कत हो रही है। अचानक नौकरी चले जाने से बच्चों की पढ़ाई, लोन की ईएमआई जैसे खर्चों का इंतजाम करना मुश्किल हो जाता है। नौकरी चले जाने पर बैंक भी लोन देने में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।

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