अगले कुछ घंटों में दिल्ली में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) होने की संभावना है। वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया फिलहाल पूरी हो गई है। अधिकारियों ने बताया कि अगर मौसम ठीक रहा तो शाम को एक और राउंड चलाया जा सकता है। जानकारी के अनुसार, यह प्रक्रिया बुराड़ी, मयूर विहार और करोल बाग में की गई।
NDTV के मुताबिक, हालांकि, सूत्रों का कहना है कि शाम 5 बजे से पहले बारिश की उम्मीद नहीं है क्योंकि इस समय शहर के ऊपर बादलों में नमी की मात्रा 20 प्रतिशत से भी कम है। इतने कम स्तर पर, बारिश की संभावना आमतौर पर कम होती है। लेकिन, अगर मौसम अनुकूल रहा (और पहली क्लाउड-सीडिंग विफल रही) तो दूसरी उड़ान कानपुर से रवाना हो सकती है।
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, "हम कृत्रिम बारिश के मुद्दे पर लगातार चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि हम दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के लिए अनगिनत कदम उठा रहे हैं। हमने क्लाउड सीडिंग का भी परीक्षण किया है, यह देखने के लिए कि क्या यह दिल्ली की प्रदूषण समस्या का समाधान कर सकता है। यह एक प्रयोग है। देखते हैं इसका क्या नतीजा निकलता है। अगर यह प्रयोग सफल रहा, तो मेरा मानना है कि दिल्लीवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण समाधान निकलेगा... यह हम सभी के लिए नया है, क्योंकि यह दिल्ली में पहली बार हो रहा है। लेकिन मैं प्रार्थना करती हूं कि यह परीक्षण सफल हो और दिल्ली को इसका लाभ मिले।"
इस अभियान के लिए इस्तेमाल किया गया विमान उत्तर प्रदेश के कानपुर से उड़ान भरा और दिल्ली पहुंचा। दिल्ली सरकार के नेतृत्व में यह पहल IIT कानपुर के सहयोग से की गई।
दिल्ली सरकार ने सितंबर में IIT कानपुर के साथ पांच क्लाउड-सीडिंग टेस्ट के लिए एक मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किए थे। ये सभी परीक्षण उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में 3.21 करोड़ रुपए की लागत से किए जाने की योजना है। ये पांच परीक्षण 1 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच कभी भी किए जा सकते हैं।
क्या होती है क्लाउड सीडिंग?
इस प्रक्रिया में क्लाउड-सीडिंग फ्लेयर्स से लेस विमान को नमी से भरे बादलों में उड़ाकर सिल्वर आयोडाइड और साल्ट बेस्ड कंपाउंड जैसे पार्टिकलों को फैलाना शामिल था।
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें बादलों में खास तरह के केमिकल (जैसे सिल्वर आयोडाइड, आयोडाइज्ड नमक, या ड्राई आइस) डाले जाते हैं, जिससे वातावरण को बरसात करने के लिए "ट्रिक" किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य उन इलाकों में बारिश बढ़ाना या ओलों और धुंध को कम करना होता है, जहां पानी की कमी होती है।