दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि क्रिकेट पर सट्टेबाजी से होने वाले मुनाफे को सिर्फ उसी स्थिति में PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के तहत अपराध से हुई कमाई माना जाएगा, अगर वह फायदा किसी गैर-कानूनी तरीके से खरीदी गई प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करके कमाया गया हो। दिल्ली हाई कोर्ट ने 24 नवंबर को कहा कि अगर कोई व्यक्ति जालसाजी, धोखाधड़ी या साज़िश के ज़रिए क्रिकेट बेटिंग से पैसा कमाता है, तो एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) उसे “क्राइम से हुई कमाई” मानकर जब्त कर सकती है। यह कार्रवाई प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की धारा 2(1)(u) के तहत की जा सकती है।
ED कर सकती है कार्रवाई
कोर्ट ने साफ कहा कि भले ही क्रिकेट बेटिंग PMLA के शेड्यूल में दर्ज अपराध न हो, फिर भी अगर बेटिंग से जुड़ी प्रॉपर्टी किसी गैर-कानूनी तरीके से हासिल की गई है, तो ED उस पर कार्रवाई कर सकती है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कहा- अगर कोई व्यक्ति धोखाधड़ी आदि करके कोई प्रॉपर्टी हासिल करता है और बाद में उस प्रॉपर्टी का इस्तेमाल आगे किसी और गतिविधि में करता है तो उस आगे की गतिविधि से हुई कमाई भी “गुनाह की कमाई” मानी जाएगी,और ED उसे भी अटैच कर सकती है। यानी, अगर जड़ में मौजूद प्रॉपर्टी ग़ैर-कानूनी है, तो उससे जुड़ी आगे की कमाई भी ज़ब्त की जा सकती है।
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर बार एंड बेंच ने कोर्ट के हवाले से बताया: कोर्ट ने कहा, “क्योंकि प्रॉपर्टी की शुरुआत ही एक अपराध से हुई थी, इसलिए उस पर लगा दाग़ आगे के इस्तेमाल में भी बना रहता है।”
कोर्ट ने कही ये बात
भले ही आगे की गतिविधि, जैसे क्रिकेट बेटिंग - PMLA में अपराध नहीं मानी जाती, लेकिन ऐसी गतिविधि से होने वाला मुनाफ़ा भी उसी असली दागदार प्रॉपर्टी से जुड़ा रहता है और अगर यह आगे की गतिविधि उसी अपराध की चेन का हिस्सा हो तो उससे होने वाली कमाई भी “अपराध की कमाई” मानी जाएगी।
कोर्ट ने साफ कहा, “PMLA की धारा 2(1)(u) का दायरा बहुत बड़ा है। इसमें सिर्फ़ अपराध से सीधे हुई कमाई ही शामिल नहीं है, बल्कि उस दागदार प्रॉपर्टी को इस्तेमाल करने, ट्रांसफर करने या आगे किसी भी तरीके से इस्तेमाल करने से जो भी लाभ मिलता है, वह भी अपराध की कमाई माना जाएगा।” दिल्ली हाई कोर्ट यह मामला उन लोगों की याचिका पर सुन रहा था, जिन्होंने ED द्वारा जारी प्रोविजनल अटैचमेंट ऑर्डर (PAO) को चुनौती दी थी। यह पूरा केस एक बड़े हवाला नेटवर्क और अंतरराष्ट्रीय बेटिंग सिंडिकेट की ED जांच से जुड़ा है, जिसे कथित तौर पर UK-बेस्ड साइट Betfair.com के ज़रिए चलाया जाता था।
कोर्ट ने कहा कि ED के PAO में साफ दिख रहा है कि जुटाए गए सबूत और निकाले गए नतीजों का सीधा संबंध है। मई में ED ने एक आरोपी के घर पर रेड मारी थी। वह आरोपी एक कंड्यूट की तरह काम करता था — यानी वह बीच में रहकर काम करवाता था। उस पर आरोप था कि वह “सुपर मास्टर ID” खरीदता और आगे बांटता था, जिससे बिना KYC किए कई फर्जी बेटिंग अकाउंट बनाए जा सकते थे। रिपोर्ट के मुताबिक, इन IDs को आरोपियों ने करीब ₹2.4 करोड़ प्रति ID में खरीदा था।
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