Betting-App Ban Effect: भारत में सट्टेबाजी वाले ऑनलाइन ऐप को बैन लगाने की तैयारी चल रही है जिसका कुछ लोग स्वागत कर रहे हैं लेकिन कुछ लोग विरोध नहीं लेकिन चिंता भी जता रहे हैं। न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती लत, मनी लॉन्ड्रिंग और ऐप्स के जरिए वित्तीय धोखाधड़ी जैसे गंभीर मुद्दे के चलते ऑनलाइन बेटिंग ऐप्स पर रोक लगाने की पहल जायज दिखती है लेकिन दूसरी तरफ जानकार इसके रिजल्ट को लेकर भी चिंतित दिख रहे हैं। इसकी वजह ये है कि आमतौर पर जब किसी चीज पर पाबंदी लगती है तो यूजर्स अवैध विकल्पों की तरफ चले जाते हैं और इस मामले में ऑफशोर (विदेशी) कैसीनो की तरफ वे जा सकते हैं। इन प्लेटफॉर्म पर क्रिप्टो के जरिए दांव लगवाया जा सकता है और जीतने पर इसी में जीती हुई राशि भी मिल सकती है। इससे अवैध और दो-तरफा पैसों की आवाजाही को बढ़ावा मिलेगा।
कितना लोकप्रिय है ऑनलाइन सट्टेबाजी मार्केट?
अभी की बात करें तो फैंटेसी स्पोर्ट्स में खिलाड़ियों के परफॉरमेंस पर पैसे लगाने को कानून की नजर में 'गेम ऑफ स्किल' के रूप में मान्यता मिल चुकी है। कोरोना महामारी के दौरान बाहर घरों में बंद रहने, वर्क फ्रॉम होम का चलन, और मोबाइल एंटरटेनमेंट में तेज उछाल ने भारत को एक उभरते हुए ऑनलाइन गेमिंग मार्केट के रूप में स्थापित कर दिया। इसकी पॉपुलरिटी इतनी अधिक हुई कि जमा राशियों पर 28% का भारी टैक्स भी Dream11, Games24x7 और Mobile Premier League जैसे ऐप्स की लोकप्रियता को नहीं रोक पाया। हालांकि अभी भी इसे एक लंबा रास्ता तय करना था।
बैन को लेकर क्या चिंता जता रहे जानकार?
भारत में घरेलू सट्टेबाजी इंडस्ट्री करीब $380 करोड़ का है और एनालिस्ट्स का अनुमान है कि $10 हजार करोड़ का भारतीय सट्टा हर साल विदेशी साइट्स पर चला जाता है। इनमें से अधिकतर सट्टे क्रिकेट पर लगाए जाता है, खासतौर से दो महीने चलने वाले इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के दौरान। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय इंडस्ट्री को बंद करने यानी बैन लगाने का मतलब है कि सरकार इन पैसों को विदेश जाने से रोकने की अपनी आखिरी उम्मीद भी छोड़ रही है। इसके साथ सरकार सालाना करीब $200 करोड़ से अधिक टैक्स रेवेन्यू से भी हाथ धो रही है।
एक अहम चिंता ये है कि जो लोग पहले से फैंटेसी स्पोर्ट्स सट्टे की लत में पड़ चुके हैं, वे अचानक इसे छोड़ नहीं पाएंगे और विकल्प खोजेंगे। कई इंटरनेशनल वेबसाइट्स भारतीय यूजर्स को स्वीकार करती हैं और वह “नो योर कस्टमर (KYC)” की जांच भी गंभीरता से नहीं करतीं, बस यूजरनेम, ईमेल और पासवर्ड काफी होता है। यूजर अगर बिटकॉइन या ईथर में जमा करे और पेमेंट भी उसी में ले, तो पूरा लेन-देन बैंकिंग सिस्टम से बाहर हो जाता है। भारत में पहले से ही लगभग 10 करोड़ क्रिप्टो वॉलेट्स हैं। सरकार जिस मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना चाहती है, वह और भी बढ़ सकती है। जानकारों के मुताबिक ऑफशोर यानी विदेशी सट्टेबाजी की कमाई उन लोगों के लिए क्रिप्टो लिक्विडिटी का जरिया बन जाएगी जो किसी की निगरानी में आए बिना लेन-देन करना चाहते हैं। इससे स्थानीय बैंक भी बाद में शिकायत करेंगे कि उनके डिपॉजिट गायब हो रहे हैं और पता नहीं चल रहा कि पैसा कहां जा रहा है।
सट्टेबाजी पर बैन लगाने से कई बड़े फायदे भी हैं जैसे कि आम लोगों की मेहनत का पैसा सट्टेबाजी पर बर्बाद नहीं होगा। इससे गोवा और सिक्किम जैसे पर्यटक स्थलों पर ऑफलाइन वेन्यू की तरफ कुछ एक्टिविटीज ट्रांसफर हो सकती है। सबसे अहम फायदा ये हो सकता है कि महज समय बिताने के लिए ऐसे गेम खेलवे वाले बिना पैसे वाले सोशल गेमिंग की तरफ मुड़ सकते हैं। विकल्पों के अभाव में जब ब्रांड्स और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर इनसे जुड़ने लगे तो इनके रिवार्ड बेहतर हो सकते हैं। ऑनलाइन बेटिंग ऐप पर बैन से वित्तीय प्रणाली को भी थोड़ी राहत मिल सकती है। भारतीय क्रिकेट सट्टेबाजी ऐप्स से बैंकों के सिस्टम पर दबाव बन रहा था कि वह रियल टाइम में रुपये में दांव लगा रहे थे। इन ऐप्स का जिन बैंकों में खाता रहता है, उन पर ग्राहकों का दबाव रहता है कि कोई फंड मिस न हो।