‘कलमा याद होता तो मेरी कहानी बदल जाती’, पाकिस्तानी गांव में फंसा था भारतीय पायलट, जानें सैफ अली खान के पिता के नाम का क्यों किया था इस्तेमाल?
India Pakistan War 1971 : बांग्लादेश को आजाद कराने के क्रम में पाकिस्तानी सेना के साथ हुए संघर्ष में कई भारतीय सैनिक, अधिकारी, पायलट पाकिस्तान में फंस गए थे। भारतीय वायुसेना के पायलट जवाहर लाल भार्गव भी प्लेन में गोलियां लग जाने के कारण पाकिस्तान में फंस गए थे। जब उनका सामना पाकिस्तान रैंजर्स से हुआ तो कलमा पढ़ने के सवाल ने जवाहर लाल भार्गव को रावलपिंडी जेल तक पहुंचा दिया था
1971 भारत-पाकिस्तान वॉर के समय जब पाकिस्तान में क्रैश हुआ भारतीय पायलट का प्लेन
India Pakistan War 1971 : केवल एक लाइन आपकी जिंदगी बदल सकती है। और अगर आप पाकिस्तान में हैं तो ये लाइन ‘कलमा’ हो सकती है। कलमा (या कलिमा) इस्लाम धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक घोषणा या विश्वास का कथन है। यह अरबी शब्द ‘क़लमा’ से आता है, जिसका अर्थ है ‘शब्द’ या ‘वचन’। कलमा इस्लाम के मूल सिद्धांतों को व्यक्त करता है और मुस्लिमों के लिए आस्था की आधारशिला माना जाता है।
कलमा यानी 'ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह'। हिंदी में इसका मतलब कुछ ऐसा होता है-कोई 'पूज्य नहीं सिवाय अल्लाह के, और मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल (दूत) हैं'। इस्लामिक समुदाय के लोगों सामान्य तौर कलमा जरूर याद होता है। लेकिन एक हिंदू भारतीय पायलट जब पाकिस्तानी जमीन पर फंसा तो कैसे कलमा न याद होने की वजह से वह फंसा, और फिर जेल में रहना पड़ा, आइए जानते हैं पूरी घटना।
पाकिस्तान में फंसे थे भारतीय पायलट जवाहर लाल भार्गव
1971 में बांग्लादेश को आजाद कराने के क्रम में पाकिस्तानी सेना के साथ हुए संघर्ष में कई भारतीय सैनिक, अधिकारी, पायलट पाकिस्तान में फंस गए थे। भारतीय वायुसेना के पायलट जवाहर लाल भार्गव भी प्लेन में गोलियां लग जाने के कारण पाकिस्तान में फंस गए थे। जब उनका सामना पाकिस्तान रैंजर्स से हुआ तो कलमा पढ़ने के सवाल ने जवाहर लाल भार्गव को रावलपिंडी जेल तक पहुंचा दिया था। नहीं तो पाकिस्तानी रैंजर्स के पहुंचने के पहले भार्गव ने वहां के गांववालों का दिल जीत लिया था और महज 12 किलोमीटर दूर भारतीय सीमा में महज कुछ घंटे के अंदर प्रवेश कर गए होते।
दुश्मन की गोलियां और H-24 मारुत
5 दिसंबर 1971 को बाड़मेर के उत्तरलाई बेस से फ्लाइट लेफ्टिनेंट जवाहर लाल भार्गव उस वक्त भारत की शान कहे जाने वाला बॉम्बर विमान H-24 (मारुत) से पाकिस्तान में मिशन पूरा करने निकले। भार्गव के साथ स्क्वार्डन लीडर के.के. बख्शी भी थे। यानी दो जांबाज पायलट पाकिस्तान की धरती पर अपने टार्गेट पर नेस्तनाबूद करने निकले थे।
सामान्य तौर पर वायुसेना के अभियानों में पायलट को टार्गेट सुनिश्चित करके भेजा जाता है। लेकिन ये अभियान कुछ अलग था। दोनों पायलट से कहा गया था कि आप खुद टार्गेट तलाशें और जहां भी संदेह उस जगह को नष्ट करें।
पाकिस्तान में एक जगह वहां की सेना की इंफॉर्मेशन यूनिट दिखने पर भार्गव और बख्शी ने रॉकेट दागे। पहला हमला बिल्कुल सटीक था। जब दोनों पायलट घूमकर दोबारा हमले के लिए लौटे तो नीचे से एंटी-एयक्राफ्ट बंदूकें तड़तड़ाने लगीं और भार्गव का प्लेन इसकी जद में आ गया।
पैराशूट के जरिए पाकिस्तान में कूदे पायलट भार्गव
भार्गव के माथे पर पसीने की बूंदे आने लगी थीं और उन्हें लगने लगा था कि उनका प्लेन पाकिस्तान के भीतर ही क्रैश हो जाएगा। भारत की सीमा से महज 12 किलोमीटर पहले ही भार्गव अपने प्लेन पैराशूट के जरिए कूद गए।
भार्गव जहां कूदे थे वहां रेगिस्तान था। उतरते ही उन्होंने अपने साथ रखा इमरजेंसी बैग उठाया। भार्गव को उम्मीद थी कि अगर वह लगातार भारतीय सीमा की तरफ चलेंगे तो कुछ घंटे में पहुंच जाएंगे। इसी बीच ऊपर उन्हें स्क्वार्डर लीडर बख्शी का प्लेन दिखा, उन्होंने हाथ हिलाए, आवाज दी, लेकिन बख्शी उन्हें देख नहीं पाए।
अपने गांव ले गए पाकिस्तान नागरिक
थके-हारे भार्गव के पास पानी की एक बोतल थी जो कुछ ही देर में खत्म हो गई। करीब एक किलोमीटर रेगिस्तान में चलने के बाद उन्हें गांव के कुछ लोग दिखे। पाकिस्तानी गांव वालों ने खाकी रंग की वर्दी में जब भार्गव को देखा तो पूछा, आप कौन हैं-भार्गव ने जवाब दिया फ्लाइट लेफ्टिनेंट मंसूर अली खान! मैं पाकिस्तान एयरफोर्स में हूं और प्लेन अभी क्रैश कर गया। मेरे साथी मुझे लेने आते ही होंगे।
मंसूर अली खान का नाम क्यों लिया?
दरअसल भार्गव के पिता एक्टर सैफ अली खान के पटौदी राजघराने में काम करते थे। भार्गव ने सैफ के पिता मंसूर अली के साथ खेला भी था। जब वो पाकिस्तान में फंसे तो अनजाने में उनके दिमाग में सबसे पहले नाम मंसूर का ही आया। उन्होंने जवाब देने में तनिक भी देर नहीं लगाई।
खैर, गांववाले भार्गव को छोड़ने को तैयार नहीं हुए और वो उन्हें लेकर गांव चले गए। भार्गव की गांव में अच्छी आवाभगत हुई। शाम होने को थी। गांववालों ने बताया कि उन्होंने पाकिस्तानी रैंजर्स को जानकारी दे दी है। वो आते ही होंगे। भार्गव समझ गए कि अब वो बुरी तरह फंसने वाले हैं।
गांववालों को चकमा देकर भागने का प्लान हुआ नाकामयाब
भार्गव का प्लान था कि वो रात को ही गांव से भाग निकलेंगे। लेकिन रैंजर्स के रूप में नई मुसीबत आ गई। जब रैंजर्स आए तो उन्हें भार्गव पर शक हुआ। एक रैंजर ने भार्गव से कलमा पढ़कर सुनाने को कहा। भार्गव इस सवाल से सकते में आ गए। उन्हें कलमा याद नहीं था और यहीं से रैंजर्स का शक गहरा हो गया।
बाद में भार्गव को रावलपिंडी जेल ले जाया गया जहां पर भारतीय सेना के अन्य जवान भी कैद थे। यहां पर भार्गव की मुलाकात अपने कई पायलट साथियों से हुई। करीब एक साल तक भार्गव पाकिस्तानी कैद में रहे। नवंबर 1972 में अन्य भारतीय युद्धबंदियों के साथ पाकिस्तान ने अदला-बदली में छोड़ा था।
2021 में लेखिका रचना रावत बिष्ट के साथ मुलाकात में भार्गव ने एकाएक पूरा कलमा पढ़कर सुना दिया। मुस्कराते हुए लेखिका ने पूछा-’आपको याद हो गया? भार्गव ने कहा-अगर ये मुझे उस दिन याद होता तो मेरी पूरी कहानी बदल सकती थी।’ बता दें कि भारत वापस लौटने के बाद जवाहर लाल भार्गव ने भारतीय वायुसेना में लंबे समय तक सेवाएं और एअर कोमोडोर के पद तक पहुंचे।