'इंस्पेक्टर राज' का होगा खात्मा, नीति आयोग ने लाइसेंस और परमिट खत्म करने का रखा प्रस्ताव
End of Inspection Raj : राजीव गौबा की अध्यक्षता वाली नीति आयोग की एक हाई-लेवल कमेटी ने जन विश्वास सिद्धांत की सिफारिश की है, जिसमें भरोसे पर आधारित रेगुलेटरी सिस्टम की रूपरेखा पेश की गई है
End of inspector raj : नीति आयोग कमेटी के मुताबिक इन मुख्य सिद्धांतों को बहुत गंभीर सलाह-मशविरे के बाद फ़ाइनल किया गया है और इनका मकसद देश के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को गाइड करना है
End of Inspection Raj : नीति आयोग के एक पैनल ने देश के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में बड़े बदलाव का प्रस्ताव रखा है। नीति आयोग के सदस्य और पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी राजीव गौबा की लीडरशिप वाली हाई-लेवल कमेटी ने लाइसेंस, परमिट और नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) खत्म करने, "इंस्पेक्टर राज" खत्म करने और रूटीन इंस्पेक्शन को मान्यता प्राप्त थर्ड पार्टी को सौंपने की सिफारिश की है।
नॉन-फाइनेंशियल रेगुलेटरी रिफॉर्म पर हाई-लेवल कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक,पैनल ने स्टेबल पॉलिसी और टैक्स सिस्टम की भी मांग की है और हर रेगुलेशन का बिज़नेस पर कम्प्लायंस कॉस्ट और सरकार पर एनफोर्समेंट बर्डन के लिए असेसमेंट करने की भी मांग की है।
हाई-लेवल कमिटी के प्रपोज़ल जन विश्वास सिद्धांत पर आधारित हैं, जो रेगुलेशन के लिए एक ट्रस्ट-बेस्ड अप्रोच है। पैनल की मुख्य सिफारिशों इस तरह हैं-
लाइसेंसिंग
लाइसेंसिंग और कम्प्लायंस की ज़रूरतें एक जैसी होनी चाहिए और इनको रिस्क के हिसाब से ग्रेड किया जाना चाहिए। लाइसेंस, परमिट, NoC, वगैरह के रूप में पहले से मंज़ूरी सिर्फ़ नेशनल सिक्योरिटी, पब्लिक सेफ्टी, इंसानी सेहत, या पर्यावरण या ज़रूरी पब्लिक इंटरेस्ट के कारणों से ही ज़रूरी होनी चाहिए और इनको सिर्फ़ कानून के तहत ही दिया जाना चाहिए। कोई भी एक्टिविटी जो कानून के तहत साफ़ तौर पर मना नहीं है,उसे पहले से मंज़ूरी से छूट होनी चाहिए।
रजिस्ट्रेशन
डेटाबेस के मेंटेनेंस या दूसरे ज़रूरी कामों के लिए रजिस्ट्रेशन ज़रूरी हो सकता है। रजिस्ट्रेशन अप्रूवल या रिजेक्शन के अधीन नहीं होने चाहिए। कम से कम डॉक्यूमेंटेशन के आधार पर खुद से रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। लाइसेंस, परमिट और NoC की वैलिडिटी आम तौर पर हमेशा के लिए होनी चाहिए। अगर नेशनल सिक्योरिटी, पब्लिक सेफ्टी, इंसानी सेहत, या पर्यावरण को गंभीर नुकसान या बड़े पब्लिक इंटरेस्ट के कारणों से ज़रूरी समझा जाए, तो पांच या दस साल का वैलिडिटी पीरियड तय किया जा सकता है।
इंस्पेक्टर राज का खात्मा
इंस्पेक्शन कंप्यूटर की मदद से रैंडम सिलेक्शन और रिस्क असेसमेंट पर आधारित होना चाहिए। इंस्पेक्शन, एक नियम के तौर पर, एक्रेडिटेड थर्ड पार्टी द्वारा किया जाएगा। थर्ड पार्टी के लिए सिलेक्शन और समय-समय पर परफॉर्मेंस असेसमेंट क्राइटेरिया बनाए जाएंगे और पब्लिश किए जाएंगे।
नीति/नियमों में कोई अचानक बदलाव नहीं
रेगुलेटरी अपडेट के लिए एक फिक्स्ड कैलेंडर होना चाहिए,यानी जब तक कि किसी खास वजह से ज़रूरी न समझा जाए,बदलाव/अमेंडमेंट्स हर साल एक फिक्स्ड डेट को किए जाएंगे। नए रेगुलेशन और अमेंडमेंट्स सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ सही सलाह-मशविरे के बाद और सही लीड टाइम के साथ लागू किए जाने चाहिए।
नियमों के प्रभाव की समीक्षा
मौजूदा और भविष्य के रेगुलेशन, बिज़नेस के लिए कम्प्लायंस की लागत और सरकार के लिए एनफोर्समेंट की लागत के असेसमेंट के अधीन होंगे। इसे आसान बनाने के लिए,इम्प्लीमेंटेशन टाइमलाइन के साथ एक रेगुलेटरी इम्पैक्ट असेसमेंट फ्रेमवर्क बनाया जाएगा।
दंड के प्रावधान
छोटे, प्रोसिजरल/टेक्निकल अपराधों के लिए क्रिमिनल पनिसमेंट को अपराध की टेगरी से हटा दिया जाएगा। क्रिमिनल पनिसमेंट (कैद या जुर्माना) सिर्फ़ ऐसे गंभीर अपराधों के लिए दी जाएगी जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा या पब्लिक ऑर्डर,या इंसानी सेहत को खतरा हो,धोखाधड़ी हो,पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो, या कोई और ऐसी गलती हो या हुई हो जिससे ऐसे असर हो सकते हों जिनकी भरपाई न हो सके। सज़ा (कैद, जुर्माना, या पेनल्टी) अपराध की गंभीरता के हिसाब से होगी। ऊपर दिए गए सिद्धांतों के आधार पर, मौजूदा और प्रस्तावित कानूनों के तहत सभी क्रिमिनल प्रॉविजंस का पूरी तरह से रिव्यू किया जाएगा।
डिजिटल कम्प्लायंस फ्रेमवर्क
रेगुलेटरी कम्प्लायंस से जुड़ी सभी फाइलिंग डिजिटली इनेबल्ड होंगी। मिनिस्ट्री लेवल पर इंटरऑपरेबिलिटी पक्की की जाएगी ताकि एक बार सबमिट की गई जानकारी को दोबारा फाइल करने की ज़रूरत न पड़े।
पूरे सरकारी तंत्र में डेटाबेस की इंटरऑपरेबिलिटी सुनिश्चित की जानी चाहिए। डिपार्टमेंट दूसरे डिपार्टमेंट के इस्तेमाल के लिए API की पहचान करना चाहिए और उन्हें पब्लिश करना चाहिए। उम्मीद है कि ऊपर सुझाया गया फ्रेमवर्क सरकार सभी मिनिस्ट्री/डिपार्टमेंट को गाइडिंग प्रिंसिपल के तौर पर सही तरीके से सर्कुलेट करेगी। समय के साथ, राज्य सरकारों और लोकल बॉडी को भी ईज़ ऑफ़ लिविंग और ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देने के लिए इस फ्रेमवर्क को अपनाने के लिए बढ़ावा देना चाहिए।
नीति आयोग कमेटी के मुताबिक इन मुख्य सिद्धांतों को बहुत गंभीर सलाह-मशविरे के बाद फ़ाइनल किया गया है और इनका मकसद देश के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को गाइड करना है। कमेटी ने सुझाव दिया है कि सभी मंत्रालयों और डिपार्टमेंट को इन सिद्धांतों को सभी मौजूदा और भविष्य के रेगुलेशन पर लागू करना चाहिए और मौजूदा नियमों को समय पर इन सिद्धांतों के हिसाब से बनाना चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कमिटी की सिफारिशों का मकसद सरकार को भरोसे पर आधारित रेगुलेटरी तरीके की ओर ले जाना है,जिसमें भरोसे, कुशलता और पारदर्शिता के सिद्धांतों को शामिल करके एक ऐसा मॉडर्न फ्रेमवर्क बनाया जाएगा जो नागरिकों और बिज़नेस दोनों में भरोसा बढ़ाएगा।