राजस्थान के जयपुर शहर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर विभाग ने भगवान शिव के नाम पर नोटिस जारी कर दिया। इतना काफी नहीं था, तो अधिकारियों ने उन्हें सात दिनों के भीतर तलब जवाब देने का भी फरमान जारी किया था। मामले ने जल्द ही सोशल मीडिया पर तूल पकड़ लिया और आनन-फानन में नोटिस जारी करने वाले अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।
ये मामला जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) का है। जेडीए शहर में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चला रहा है। इसके तहत शहर के वैशाली नगर स्थित गांधी पथ पर सड़क चौड़ीकरण अभियान के तहत अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में जेडीए ने दर्जनों मकानों और दुकानों को नोटिस थमाए। प्राधिकरण ने यहां के एक प्राचीन शिव मंदिर को भी ‘अवैध कब्जे’ की श्रेणी में डाल दिया और अतिक्रमण हटाने के लिए नोटिस जारी कर दिया।
दिलचस्प बात ये रही कि नोटिस न तो मंदिर के पुजारी के नाम था, न ही प्रबंधन समिति का नाम था। नोटिस भगवान शिव के नाम जारी किया गया था। मंदिर के पुजारी ने जब नोटिस लेने से इनकार कर दिया तो, इसे मंदिर की दीवार पर चिपका दिया गया। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जेडिए ने मंदिर की दीवार पर जो नोटिस चस्पा किया, उसमें स्पष्ट रूप से ‘भगवान शिव’ से 7 दिन के भीतर जवाब मांगा गया है। 21 नवंबर 2025 को जारी इस नोटिस में 28 नवंबर को दस्तावेजों सहित उपस्थित होने का आदेश भी दिया गया है।
नोटिस में हाईकोर्ट के आदेश की बात
नोटिस में उल्लेख किया गया है कि हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट की रिट पिटीशन संख्या 658/2024 के अनुसार गांधी पथ को 100 फीट चौड़ा किया जाना है। इस विस्तार कार्य के दौरान जेडीए की पीटी सर्वे रिपोर्ट (जोन-7) में पाया गया कि मंदिर की बाउंड्री वॉल सड़क की निर्धारित लाइन से 1.59 मीटर अंदर आ रही है। इसलिए इसे अतिक्रमण की श्रेणी में मानते हुए नोटिस जारी किया गया। नोटिस में यह भी लिखा है कि यदि निर्धारित समय सीमा में कोई जवाब या प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया तो जेडीए एकतरफा कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए बाध्य होगा।
जेडीए की इस कार्रवाई से स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं में नाराजगी है। लोगों का कहना है कि मंदिर वर्षों पुराना है और स्थानीय आस्था का केंद्र है। ‘भगवान शिव’ के नाम नोटिस धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कदम है। सोशल मीडिया पर भी यह मामला तेजी से वायरल हो गया है। कई यूजर्स ने व्यंग्य करते हुए लिखा — “अब भगवान को भी नोटिस का जवाब देना होगा क्या?” जबकि कुछ ने इसे प्रशासनिक प्रक्रिया में “मानव बनाम आस्था” की टकराहट बताया।
जेडीए सचिव किए गए निलंबित
मीडिया के जरिए मामला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए। इसके बाद जेडीए सचिव निशांत जैन ने प्रवर्तन अधिकारी अरुण पूनिया को निलंबन आदेश जारी कर दिया। आदेश में साफ लिखा गया कि अधिकारी का यह कदम कर्तव्य विमुखता और स्वेच्छाचारिता का परिचायक है, जो सरकारी कार्यप्रणाली की मर्यादा और संवेदनशीलता के खिलाफ है।