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मराठाओं को अब भी OBC दर्जे का इंतजार! लेकिन जरांगे पाटिल के आंदोलन की बड़ी जीत, नौकरी समेत इन मुद्दों पर राजी हुई सरकार

यह अहम सफलता उस लंबे संघर्ष का नतीजा है, जिसे मराठा समाज दशकों से चला रहा है। राज्य की करीब 30% आबादी वाले मराठा समुदाय की यह ऐतिहासिक मांग अब आंशिक रूप से पूरी होती दिख रही है। राजनीति में मजबूत पकड़ होने के बावजूद, मराठा समाज का बड़ा हिस्सा लंबे समय से यह दलील देता रहा है कि उनकी बड़ी आबादी अब भी सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई है

अपडेटेड Sep 02, 2025 पर 7:48 PM
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Maratha Andolan: मराठाओं को अब भी OBC दर्जे का इंतजार! लेकिन जरांगे पाटिल के आंदोलन की बड़ी जीत

मुंबई में मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में चल रहा मराठा आंदोलन पांचवें दिन निर्णायक दौर में पहुंच गया, जब राज्य की मराठा उप-समिति ने कई अहम मांगों को मान लिया। एक बड़े फैसले के तहत राज्य सरकार ने हैदराबाद गजट को तुरंत लागू करने पर सहमति जताई है। इसके बाद परिवार, गांव और रिश्तेदारी के रिकॉर्ड की जांच के आधार पर मराठाओं को कुनबी जाति के प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे। यह फैसला प्रदर्शनकारियों की लंबे समय से चली आ रही मांग- OBC कैटेगरी में मान्यता को पूरा करता है।

जरांगे, जिन्होंने अपनी आंदोलन में पांच मुख्य मांगें रखी थीं, को सरकार की ओर से आठ सूत्रीय प्रस्ताव सौंपा गया। इसमें त्वरित सरकारी प्रस्ताव (GRs) जारी करने का आश्वासन, सितंबर तक आंदोलनकारियों पर दर्ज मामलों की वापसी, शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी के अवसर और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले परिवारों को वित्तीय सहायता देने का वादा शामिल है।

मराठा और कुनबी अभी भी एक नहीं: राज्य ने दो महीने का समय मांगा


समझौते के ऐलान के बाद आंदोलन स्थल पर जश्न का माहौल बन गया। जरांगे ने घोषणा की कि जैसे ही सरकारी प्रस्ताव (GR) जारी होगा, मुंबई का आंदोलन एक घंटे के भीतर खत्म कर दिया जाएगा। हालांकि, एक अहम मसला अब भी अटका हुआ है- जरांगे की यह मांग कि मराठा और कुनबी को आधिकारिक रूप से “एक ही जाति” माना जाए। इस पर उपसमिति ने एक से दो महीने का समय मांगा है, यह कहते हुए कि जातीय रिकॉर्ड में गड़बड़ियां और प्रशासनिक रुकावटें दूर करनी होंगी।

सरकार के इस आंशिक झुकाव से फिलहाल आंदोलनकारियों को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन मुख्य मांग पर देरी से हालात में तनाव बरकरार रहने की आशंका बनी हुई है।

दशकों से चल रहा मराठा आंदोलन

यह अहम सफलता उस लंबे संघर्ष का नतीजा है, जिसे मराठा समाज दशकों से चला रहा है। राज्य की करीब 30% आबादी वाले मराठा समुदाय की यह ऐतिहासिक मांग अब आंशिक रूप से पूरी होती दिख रही है।

राजनीति में मजबूत पकड़ होने के बावजूद, मराठा समाज का बड़ा हिस्सा लंबे समय से यह दलील देता रहा है कि उनकी बड़ी आबादी अब भी सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई है। 2018 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने विशेष SEBC श्रेणी के तहत 16% आरक्षण दिया था। लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन करता है।

तब से, जरांगे आंदोलन के प्रमुख चेहरे के रूप में उभरे हैं, खासकर 2023 में जालना में उनकी भूख हड़ताल के बाद। उन्होंने लगातार यह मांग की कि मराठाओं को कुनबी वर्गीकरण के माध्यम से OBC दर्जा दिया जाए, जिसे हैदराबाद और सातारा गजट जैसी ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया हो।

हाल की बातचीत वरिष्ठ मंत्रियों राधाकृष्ण विकहे पाटिल, शिवेंद्र राजे भोसले, उदय समंत, जयकुमार गोरे और माणिकराव कोकाटे की ओर से की गई, जिसमें जस्टिस संदीप शिंदे की पूर्व समिति के सुझाव भी शामिल थे।

फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार के लिए अब चुनौती यह है कि वादों को तुरंत कानूनी कार्रवाई में बदलते हुए मौजूदा OBC समूहों की चिंताओं को संभाला जाए।

ज्यादातर मांगों को मान लेने से सरकार को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन मराठाओं को कुनबी वर्ग में शामिल करने का लंबित सवाल अब भी सबसे बड़ी परीक्षा है, क्योंकि ये एक ऐसा कदम है, जो महाराष्ट्र की जातिगत संरचना और चुनावी भविष्य दोनों को ही बदल सकता है।

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