Modi before Modi: नरेंद्र मोदी का नाम पहली बार कब अखबारों की सुर्खियों में आया था?
राजीनितिज्ञ और प्रसिद्ध व्यक्ति के रूप में नरेंद्र मोदी की सफलता के बारे में काफी कुछ लिखा गया है। लेकिन, शुरुआत में संघ के एक प्रचारक और बाद में गुजरात में बीजेपी को स्थापित करने वाले एक नेता के रूप में उनके बारे में अपेक्षाकृत कम लिखा गया है
राजनीतिक नेता के रूप में नरेंद्र मोदी को देशभर में पहचान तब मिली जब वह 1990 में एल के आडवाणी के नेतृत्व में निकाली गई सोमनाथ यात्रा के गुजरात चरण के प्रमुख संगठनकर्ता बने।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो गए हैं। वह 12 सालों से देश के प्रधानमंत्री हैं। 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद से वह बीते 24 सालों से जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि वह भारत के सबसे बड़े राजनितिक नेता बने हुए हैं। एक राजीनितिज्ञ और प्रसिद्ध व्यक्ति के रूप में उनकी सफलता के बारे में काफी कुछ लिखा गया है। लेकिन, शुरुआत में संघ के एक प्रचारक और बाद में गुजरात में बीजेपी को स्थापित करने वाले एक नेता के रूप में उनके बारे में अपेक्षाकृत कम लिखा गया है।
इमर्जेंसी विरोधी कार्यकर्ता के रूप में पहली बार अखबारों में छपा नाम
नरेंद्र मोदी का नाम पहली बार अंग्रेजी अखबारों में तब आया था, जब इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी हटाई थी। तब शायद ही किसी ने उनके भविष्य में प्रधानमंत्री बनने की कल्पना की होगी। इमर्जेंसी हटने के बाद हुए चुनावों ने इंदिरा गांधी और कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीन ली थी। मोरारजी देसाई संयुक्त जनता पार्टी के नेता के रूप में देश के प्रधानमंत्री बने थे। बाबुभाई पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। तब राज्य में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी। तब सरकारी टेलीविजन चैनल दूरदर्शन के कार्यक्रम 'युवादर्शन' में चर्चा के लिए युवा नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया था। चर्चा का विषय 'इमर्जेंसी के दौरान युवाओं का संघर्ष' था।
दूरदर्शन के इस कार्यक्रम की संयोजक (Anchor) गुजरात की सामाजिक कार्यकर्ता अलका देसाई थीं। नरेंद्र मोदी के अलावा प्रवीण टांक और कीर्तिदा मेहता ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। उन दिनों अंग्रेजी अखबारों में दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों की रोजाना लिस्ट छपती थी। तब इंडिया में एक ही टीवी स्टेशन था। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के टेलीविजन सेक्शन में 23 मई, 1978 को इस टीवी चर्चा के प्रोग्राम के बारे में एक नोटिस छपा था, जिसमें इस कार्यक्रम का प्रसारण समय रात 8:30 बजे बताया गया था। यह पहली बार था जब किसी अखबार में नरेंद्र मोदी का नाम छपा था।
दूसरी बार बाढ़ के समय राहत कार्य के दौरान संघ के प्रचारक के रूप में अखबार में नाम छपा
दूसरी बार नरेंद्र मोदी का नाम गुजरात के मोरबी में मच्छू बांध के टूटने पर राहत कार्य के दौरान अखबार में छपा। 11 अगस्त, 1979 को मच्छू नदीं पर बना मच्छू-2 बांध टूटा था। इससे पूरे मोरबी शहर में पानी भर गया था। बहुत बड़ा इलाका बाढ़ के पानी में डूब गया था। इससे भारी तबाही हुई थी। हजारों लोगों की मौत हो गई थी।
बांध टूटने की यह घटना भारत की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक थी। तब मोदी का नाम संघ के प्रचारक के रूप में उनके काम की वजह से अखबारों के पन्नों पर छपा था। वह संघ की तरफ से राहत कार्यों का समन्वय कर रहे थे। बांध टूटने के एक महीना बाद टाइम्स ऑफ इंडिया ने 30 सितंबर, 1979 को लिखा था कि संघ के नरेंद्र मोदी की तरफ से बनाई गई पुर पीड़ित सहायता समिति को संघ की महाराष्ट्र इकाई से 5 लाख रुपये का चेक मिला। यह पैसा बाढ़ प्रभावित मोरबी और आसपास के इलाकों में राहत कार्य के लिए दिया गया था।
इस मौके पर बोलते हुए मोदी की अगुवाई वाली गुजरात में संघ की समिति के कोषाध्यक्ष रविभाई शाह ने बताया था कि मोदी की अगुवाई में किस तरह राहत कार्य के लिए 14 लाख रुपये जुटाए गए। इससे 100 घर बनाए गए, तीन गावों को गोद लिया गया और बाढ़ से प्रभावित लोगों के लिए कपड़े और अनाज बांटे गए थे और उन्हें मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी।
बीजेपी के नेता के रूप में अखबारों में पहली बार मोदी का नाम
पहली बार एक राजनीतिक नेता के रूप में नरेंद्र मोदी का नाम 1988 में अखबारों में छपा था। तब उन्होंने तुरंत गुजरात बीजेपी में महासचिव की जिम्मेदारी संभाली थी। वह गुजरातों में किसानों की मांग पर कांग्रेस विरोधी रास्ता रोको आंदोलन के संगठनकर्ता थे।
वह कुछ ही समय पहले संघ से बीजेपी में आए थे। उनका नाम रास्ता रोको आंदोलन से जुड़ी खबरों में अखबारों में छपा था। बीजेपी ने तत्कालीन अमरसिंह चौधरी की कांग्रेसी सरकार के खिलाफ इस आंदोलन का आयोजन किया था।
तब राज्य के बाहर के ज्यादा लोगों को मोदी के बारे में पता नहीं था। बीजेपी की गुजरात इकाई के महासचिव के रूप में किसान आंदोलन की खबरों में मोदी का नाम अखबारों में छपा था। उन्हें यह कहते हुए उदधृत किया गया था कि आंदोलनों में पूरे राज्य में 50,000 से अधिक बीजेपी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
गुजरात में बीजेपी के वास्तुकार के रूप में मोदी
राजनीतिक नेता के रूप में नरेंद्र मोदी को देशभर में पहचान तब मिली जब वह 1990 में एल के आडवाणी के नेतृत्व में निकाली गई सोमनाथ यात्रा के गुजरात चरण के प्रमुख संगठनकर्ता बने। तब बीजेपी गुजरात में सत्ता हासिल नहीं कर पाई थी। लेकिन, यात्रा के सोमनाथ-गांधीनगर के चरण में मोदी की भूमिका को देखकर एक अखबार में एक रिपोर्ट छपी जिसमें 1991 के आम चुनावों में बीजेपी की जीत की संभावनाओं के बारे में बताया गया। स्वप्न दास गुप्ता पहले से ही उन्हें गुजरात के वास्तुकार के रूप में संबोधित कर रहे थे। इसकी वजह गुजरात में बीजेपी का जबर्दस्त उभार था।
14 जून, 1991 को मोदी ने कहा था कि गुजरात भगवा उभार की धुरी बन सकता है। इसकी वजह महाराष्ट्र और राजस्थान से इसका संबंध और असर था। दासगुप्ता ने लिखा, "जब देश के बाकी हिस्सों को आम चुनावों में बीजेपी के आधा से ज्यादा सीटें जीतने को लेकर संदेह था तब गुजरात में यह माना जा रहा था कि भगवा युग की शुरुआत जल्द होने वाली है।"
बीजेपी पहली बार 1995 में गुजरात में सत्ता में आई। पार्टी ने राज्य में 121 सीटें जीती। केशुभाई पटेल राज्य में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने। इस जीत में मोदी की बड़ी भूमिका थी।
(नलिन मेहता की किताब द न्यू बीजेपी:मोदी एंड द मेकिंग ऑफ द वर्ल्ड लार्जेस्ट पॉलिटिकल पार्टी से संकलित)