7/11 Mumbai Train Blasts Case: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (24 जुलाई) को 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट से जुड़े सभी 12 आरोपियों को बरी करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। महाराष्ट्र सरकार ने 22 जुलाई को 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोट मामले में 12 आरोपियों को बरी करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 11 जुलाई 2006 को मुंबई में कई ट्रेन में किए गए सात बम धमाकों के मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था।
हाई कोर्ट के फैसले के बाद सभी आरोपियों को बरी भी कर दिया गया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अब महाराष्ट्र सरकार की जीत बताई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रेन विस्फोट मामले में बरी किए गए 12 आरोपियों को दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट का बरी होना कोई मिसाल नहीं बनेगा। इस फैसले का मकोका के अन्य मुकदमों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
हाई कोर्ट ने 12 व्यक्तियों की दोषसिद्धि को रद्द करते हुए कहा था कि गवाहों के बयान और आरोपियों के पास से कथित तौर पर की गई बरामदगी का कोई साक्ष्य मूल्य नहीं है। इनमें से पांच आरोपियों को विशेष अदालत ने सजा-ए-मौत और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर मुंबई की लोकल ट्रेन में 11 जुलाई, 2006 को सात विस्फोट हुए थे, जिनमें 180 से अधिक लोग मारे गए थे। जबकि कई अन्य लोग घायल हुए थे। विशेष अदालत ने जिन दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। उनमें कमाल अंसारी (अब मृत), मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान शामिल थे।
विशेष अदालत ने उन्हें बम रखने और कई अन्य आरोपों में दोषी पाया था। इसने तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद मजीद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीउर रहमान शेख को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। एक आरोपी, वाहिद शेख को 2015 में निचली अदालत ने बरी कर दिया था।
पीठ ने 2015 में विशेष अदालत द्वारा पांच लोगों को मृत्युदंड और शेष सात आरोपियों को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि करने से इनकार कर दिया और उन्हें बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अगर आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें जेल से तुरंत रिहा कर दिया जाए। पीठ ने अपने निर्णय में अभियोजन पक्ष के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने मामले में महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ नहीं की।