
Ola-Uber-Rapido : देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में टैक्सी और बाइक पर ब्रेक लग गई है। ओला, उबर और रैपिडो से जुड़े हजारों ड्राइवरों ने अनिश्चितकाली हड़ताल शुरू कर दी है। ऑनलाइन कैब सेवाओं से जुड़ें ड्राइवरों की अनिश्चितकालीन हड़ताल के कारण हजारों यात्रियों को कैब बुक करने में परेशानी हो रही है। यह हड़ताल 15 जुलाई से चल रही है। ड्राइवरों की मुख्य मांगें हैं—उचित वेतन, कंपनियों द्वारा लिया जा रहा ज़्यादा कमीशन और एग्रीगेटर प्लेटफ़ॉर्म पर नियमों को सही तरीके से लागू करने में हो रही देरी।
रिपोर्ट के मुताबिक, परिवहन विभाग के अधिकारियों ने हड़ताल कर रहे ड्राइवरों से मुलाकात की और उनकी शिकायतें सुनीं। इसके बाद विभाग ने यूनियनों से कुछ समय माँगा है ताकि वे इन समस्याओं को लेकर एग्रीगेटर कंपनियों से बातचीत कर सकें।
स्ट्राइक पर हैं ड्राइवर्स
चर्चा के दौरान ड्राइवरों ने नालासोपारा के 46 वर्षीय एक कैब ड्राइवर के परिवार को मदद देने की माँग की। बता दें कि इस कैब ड्राइवर में बीते बुधवार को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। बताया जा रहा है कि वह गाड़ी की किश्तें नहीं चुका पा रहा था, इसी कारण उसने यह कदम उठाया। परिवहन विभाग ने ड्राइवरों से कहा है कि, वे किसी भी अगली कार्रवाई से पहले मंगलवार तक इंतज़ार करें, क्योंकि तब तक और बातचीत की जाएगी। ड्राइवरों की सबसे अहम मांग यह है कि ऐप आधारित कैब सेवाओं पर भी वही किराया लागू हो जो लोकल परिवहन प्राधिकरण (RTA) ने तय किया है। उनका कहना है कि ओला-उबर जैसी कैब का किराया भी काली-पीली टैक्सी के बराबर होना चाहिए।
ड्राइवरों की कुछ और अहम मांगें भी हैं
ड्राइवर यह भी कह रहे हैं कि ओला-उबर जैसे प्लेटफॉर्म ग्राहकों को जो भारी छूट देते हैं, उसका खर्च उनकी कमाई से काट लिया जाता है, जो गलत है। उनका कहना है कि यह खर्च कंपनियों को खुद उठाना चाहिए, ड्राइवरों पर नहीं डालना चाहिए। इसके अलावा, ड्राइवरों ने मांग की है कि “कूल कैब” श्रेणी की एसी SUV गाड़ियों के लिए अलग किराया तय किया जाए। उनका कहना है कि मौजूदा किराया ऐसी गाड़ियों को चलाने की लागत को कवर नहीं करता।
महाराष्ट्र में एग्रीगेटर सेवाओं पर नियम बनाने में देरी
महाराष्ट्र सरकार ने एक साल से ज़्यादा पहले ओला, उबर जैसी एग्रीगेटर सर्विसेज के लिए एक अलग नीति लाने का वादा किया था। इसमें किराया तय करने, लाइसेंस देने और निगरानी के नियम शामिल थे। हालाँकि, इन नियमों का मसौदा तो तैयार हो चुका है, लेकिन इसे अभी तक अंतिम मंज़ूरी नहीं मिल पाई है। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, परिवहन विभाग ने अपना काम पूरा कर लिया है, मगर अब ये नियम ऊँचे स्तर पर मंज़ूरी का इंतजार कर रहे हैं। इस देरी की वजह से हालात और उलझ गए हैं। ड्राइवर, कंपनियाँ और यात्री—तीनों ही भ्रम की स्थिति में हैं। सरकार के पास भी इस समय कोई स्पष्ट नियम नहीं होने के कारण दखल देने की सीमित ताकत रह गई है।
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