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Pandit Chhannulal Mishra: नहीं रहे पंडित छन्नूलाल मिश्र, वह गायक जिनकी गायकी के बिना अधूरी थी काशी की होली

Pandit Chhannulal Mishra: पंडित छन्नूलाल मिश्र को असाधारण संगीत सेवा के लिए कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया था। साल 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2010 में पद्म भूषण और फिर साल 2020 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था

अपडेटेड Oct 02, 2025 पर 8:33 AM
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पंडित छन्नूलाल मिश्र साल 2014 में वाराणसी से सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने थे

Pandit Chhannulal Mishra: शास्त्रीय गायक और पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित छन्नूलाल मिश्र का लंबी बीमारी के कारण निधन हो गया है। उनके निधन से संगीत जगत में एक युग का अंत हो गया है। पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट पर दुख जताया और उनके साथ अपने अनुभव साझा किए। बता दें कि पंडित छन्नूलाल मिश्र साल 2014 में वाराणसी से सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक भी बने थे।

पीएम मोदी ने जताया दुख

सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। वे जीवनपर्यंत भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि के लिए समर्पित रहे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत को जन-जन तक पहुंचाने के साथ ही भारतीय परंपरा को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने में भी अपना अमूल्य योगदान दिया। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे सदैव उनका स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होता रहा। साल 2014 में वे वाराणसी सीट से मेरे प्रस्तावक भी रहे थे। शोक की इस घड़ी में मैं उनके परिजनों और प्रशंसकों के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट करता हूं। ओम शांति!


सम्मान और संगीत का सफर

पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को आजमगढ़ में हुआ था। उन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा बिहार के मुजफ्फरपुर में पूरी की और लगभग चार दशक पहले वाराणसी को अपनी साधना स्थली बना लिया। वह ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के शीर्ष ग्रेड कलाकार रहे, साथ ही संस्कृति मंत्रालय (उत्तर-केंद्रीय) सरकार के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं।

उन्हें उनकी असाधारण संगीत सेवा के लिए कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया था। साल 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2010 में पद्म भूषण और फिर साल 2020 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

गायन शैली और काशी से अटूट नाता

पंडित छन्नूलाल मिश्र की पहचान उनके बहुमुखी गायन से थी। वह ख्याल, ठुमरी, भजन, कजरी, चैती और दादरा जैसी शास्त्रीय और लोक विधाओं के अनुपम मिश्रण थे। लेकिन काशी (वाराणसी) में उनकी विशेष पहचान एक धार्मिक भजन 'फागुन मास के समय खेले मसाने में होली दिगम्बर- खेले मसाने में होली' से थी। मान्यता है कि उनकी इस विशेष गायकी के बिना वाराणसी की होली पूर्ण नहीं मानी जाती थी। यह भजन फागुन के महीने में भगवान शिव के श्मशान घाट में भूत-पिशाचों के साथ होली खेलने का अलौकिक वर्णन करता है, जिसमें 'दिगंबर' भगवान शिव के नग्न स्वरूप को दर्शाता है।

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