जब सिंधु जल समझौते पर भारत के हस्ताक्षर के लिए गिड़गिड़ा रहा था पाकिस्तान!

जब विश्व बैंक की मध्यस्थता के तहत भारत - पाकिस्तान के बीच सिंधु जल बंटवारे के लिए बातचीत चल रही थी, पाकिस्तान की तरफ से बातचीत की कमान अयूब खान ने अपने हाथ में ले ली थी, क्योंकि उनकी तकनीकी टीम कई मुद्दों पर अड़ रही थी, भारत से राजी नहीं थी। लेकिन अयूब खान समझौते के लिए बेचैन थे

अपडेटेड Apr 25, 2025 पर 5:46 PM
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जब सिंधु जल समझौते पर भारत के हस्ताक्षर के लिए गिड़गिड़ा रहा था पाकिस्तान!

पहलगाम में पर्यटकों पर पाक समर्थित आतंकवादियों के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल समझौते को तत्काल स्थगित करने की घोषणा कर दी। इसके बाद पाकिस्तान की हालत खराब है। पहले ही दुनिया के सामने भीख का कटोरा लेकर घुम रहे पाकिस्तान को लग रहा है कि अगर इस स्थगन का असर दिखना शुरु हो गया तो पानी के बगैर तरस जाएगा वो। ये समझौता भी कभी उसने भीख के तौर पर ही हासिल किया था।

पहलगाम में अपने जेहादी गुर्गों के जरिये हिंदू पर्यटकों का चुन- चुनकर कत्ल कराने वाला और आतंकवाद को शह देने वाला पाकिस्तान अब भारत के सिंधु जल समझौते को स्थगित करने वाले ऐलान के बाद तड़प रहा हो, गीदड़भभकी दे रहा हो, लेकिन उसे इतिहास याद रखना चाहिए, किस तरह समझौते की भीख मांगी थी।

अयूब खान को पाकिस्तान के बुरे हालात का अंदाजा था। अयूब खान का कहना है कि पाकिस्तान के लिए एक ही रास्ता था, किसी भी कीमत पर सिंधु जल बंटवारे मामले में समझौता कर लेना, क्योंकि समझौते का न होना पाकिस्तान बर्दाश्त नहीं कर सकता था, भले ही ये समझौता मनमाफिक न हो, दोयम दर्जे का हो।


जब विश्व बैंक की मध्यस्थता के तहत भारत - पाकिस्तान के बीच सिंधु जल बंटवारे के लिए बातचीत चल रही थी, पाकिस्तान की तरफ से बातचीत की कमान अयूब खान ने अपने हाथ में ले ली थी, क्योंकि उनकी तकनीकी टीम कई मुद्दों पर अड़ रही थी, भारत से राजी नहीं थी। लेकिन अयूब खान समझौते के लिए बेचैन थे!

अयूब खान को लगता था कि अगर भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौेता करने से इंकार कर दिया, तो पाकिस्तान का अपना अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा, क्योंकि सिंचाई और पेयजल के लिए उसकी पूरी निर्भरता उन नदियो पर थी, जिनका नियंत्रण भारत के पास था। पाकिस्तान में लोग भूखों मर सकते थे।

पाकिस्तान को विश्व बैंक को भी साधना था, उसे पता था कि जैसा भी समझौता विश्व बैंक करा दे, उसी में पाकिस्तान की भलाई है। पाकिस्तान की माली हालत खराब थी और जिन नदियों का जल उसे हासिल होता दिखाई दे रहा था, उनके पानी के संग्रह के लिए डैम बनाने की क्षमता उसके पास नहीं थी, न ही पैसे थे।

इसलिए अयूब खान ने अपनी टेक्नीकल टीम को धमका दिया था, किसी ने समझौते की राह में बाधा खड़ी की, तो उसकी खटिया खड़ी करने की बात की थी पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक ने। अयूब खान को पता था कि समझौते का न होना, सब कुछ खोने के समान था। अयूब इसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकते थे।

इसलिए विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष के सामने गिड़गिड़ाते हुए अयूब खान ने पाकिस्तान में बनने वाले मंगला जैसे बांधों के लिए पश्चिमी देशों की मदद से पैसे जुटााने की व्यवस्था करवाई। भारत ने भी 'Indus Works Programme' में सहायता राशि दी थी, जिसकी कुल लागत तब 1070 मिलियन डॉलर आई थी।

इस राशि में से 870 मिलियन डॉलर पाकिस्तान में किये जाने वाले कार्यों पर खर्च होने थे। समझौते के तहत नदियों का अस्सी प्रतिशत पानी पाकिस्तान को मिलना था, जबकि भारत को सिर्फ बीस प्रतिशत पानी मिलना था। इसके लिए 'Indus Basin Development Fund' बनाया गया था, जिसमें भारत का भी योगदान था।

भारत की तरफ से इसमें करीब 174 मिलियन डॉलर दिये गये थे। पाकिस्तान की तरफ से कोई रकम नहीं दी गई थी, उसके इलाके में लागू की जाने वाली सभी परियोजनाएं इस विशेष फंड से पूरी की गईं, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और तब के पश्चिमी जर्मनी ने अपना योगदान दिया था।

अपनी आत्मकथा में खुद अयूब खान लिखते हैं कि पाकिस्तान की तब औकात ही नहीं थी इस परियोजना को अपने इलाके में पूरा करने की। उसे पानी तो चाहिेए था, लेकिन बांध बनाने, नहरों को जोड़ने के लिए पॉकेट में पैसे नहीं थे, इसलिए वर्ल्ड बैंक की तरफ ही कटोरा बढ़ाना पड़ा था, उसकी मदद लेनी पड़ी थी।

पहलगाम में अपने जेहादी गुर्गों के जरिये हिंदू पर्यटकों का चुन- चुनकर कत्ल कराने वाला और आतंकवाद को शह देने वाला पाकिस्तान अब भारत के सिंधु जल समझौते को स्थगित करने वाले ऐलान के बाद तड़प रहा हो, गीदड़भभकी दे रहा हो, लेकिन उसे इतिहास याद रखना चाहिए, किस तरह समझौते की भीख मांगी थी।

सिंधु जल समझौेते पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तब पाकिस्तान गये थे। पाकिस्तान के कराची शहर में 19 सितंबर 1960 को इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, विश्व बैंक के तत्कालीन उपाध्यक्ष लीफ की मौजूदगी में नेहरू और अयूब खान ने अपने हस्ताक्षर किये थे।

उस समय नेहरू की अगुआई वाले भारत ने ये समझकर दरियादिली दिखाई थी कि सिंधु जल समझौते के तहत पाकिस्तानियों की प्यास बुझाने और फसल के लिए पानी देने की ऐवज में वो सदैव कृतज्ञता के बोझ तले दबे रहेंगे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि पाकिस्तान कभी अपनी घटिया, गंदी हरकतों से बाज नहीं आएगा।

दरअसल जिस देश की बुनियाद ही मक्कारी व जेहादी मानसिकता से पड़ी हो, उस देश से सदाशयता की उम्मीद करनी ही बेमानी थी। समझौते के पांच साल के अंदर ही भारत पर हमला करने वाला पाकिस्तान उसके बाद कई युद्ध लड़ चुका है, हार चुका है लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता, हमेशा नई साजिशें रचचा है।

नेहरू भले ही तब के पाकिस्तानी हुक्मरान अयूब के झांसे में आ गये हों, लेकिन नरेंद्र मोदी ने 2014 में देश की बागडोर संभालने के साथ ही कभी पाकिस्तान के झांसे में आने की गलती नहीं की है। हर बार जब पाकिस्तान अपने गुर्गों के जरिये गंदी हरकत करता है, उसका गला दबाना मोदी को बखूबी आता है।

इस बार भी पहलगाम में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की जान अपने गुर्गों, जेहादी आतंकियों के हाथ लेने वाले पाकिस्तान की मुश्कें कसने में मोदी की अगुआई वाला भारत पीछे नहीं हटेगा। इसी डर के मारे पाकिस्तान बदहवास है, बकवास भी कर रहा है लेकिन डर के मारे बुरा हाल है। किये की सजा मिलेगी, अवश्य!

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Brajesh Kumar Singh

Brajesh Kumar Singh

First Published: Apr 25, 2025 5:35 PM

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