Parliament Winter Session 2025: कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में एक विधेयक पेश किया है। इसमें अच्छे कानून बनाने के लिए संसद सदस्यों को 'व्हिप के झंझट' से मुक्ति दिलाकर विधेयकों और प्रस्तावों पर स्वतंत्र रूप से मतदान की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है। शुक्रवार को 'दलबदल रोधी कानून' में संशोधन के लिए गैर सरकार विधेयक पेश करने वाले तिवारी कहा कि इस बिल का मकसद यह पता लगाना है कि लोकतंत्र में प्राथमिकता किसकी होनी चाहिए। वह मतदाता जो अपने प्रतिनिधि को चुनने के लिए घंटों धूप में खड़ा होता है, या वह राजनीति, जिसके व्हिप का पालन करने के लिए प्रतिनिधि मजबूर हो जाता है।
तिवारी ने इससे पहले 2010 और 2021 में भी यह विधेयक पेश किया था। इसका उद्देश्य संसद सदस्यों को अविश्वास और विश्वास प्रस्तावों जैसे सरकार की स्थिरता से जुड़े प्रस्तावों, स्थगन प्रस्ताव, वित्त विधेयकों और वित्तीय मामलों को छोड़कर अन्य विधेयकों एवं प्रस्तावों पर स्वतंत्र रूप से मतदान करने की स्वतंत्रता देना है।
तिवारी ने पीटीआई से कहा, "यह विधेयक इस उद्देश्य से पेश किया गया है कि सांसदों को अपने विवेक, अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों और सामान्य समझ के आधार पर फैसले लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। एक निर्वाचित प्रतिनिधि को अपनी पार्टी के व्हिप का पालन करने के बजाय निर्वाचन क्षेत्र लोगों के हिसाब से काम करना चाहिए। पार्टी के व्हिप के चलते प्रतिनिधि को कोई महत्व नहीं रह जाता। लिहाजा उसे पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से सोचने और काम करने का अधिकार मिलना चाहिए।"
विधेयक के उद्देश्य और कारणों की व्याख्या में कहा गया है कि इसमें संविधान की दसवें अनुसूची में संशोधन का अनुरोध किया गया है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सांसद की सदस्यता तभी खो सकती है जब वह विश्वास प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, वित्त विधेयक या वित्तीय मामलों से संबंधित मुद्दों पर पार्टी के दिशा-निर्देशों के विपरीत मतदान करे या मतदान से दूर रहे।
बिल के उद्देश्य और कारणों की व्याख्या में कहा गया है, "अगर किसी सांसद का राजनीतिक दल उक्त प्रस्तावों, विधेयक या वित्तीय मामलों पर सभापति या लोकसभा अध्यक्ष के पास कोई निर्देश भेजता है तो उन्हें जितना जल्दी संभव हो सके, सदन में इसकी जानकारी देनी चाहिए।"
विधेयक में कहा गया है, "ऐसी जानकारी शेयर करते समय सदन के सभापति या अध्यक्ष को यह भी विशेष रूप से सूचित करना चाहिए कि अगर किसी सांसद ने राजनीतिक दल के निर्देश की अवहेलना की तो उसकी सदस्यता अपने आप समाप्त हो जाएगी। और सदस्य को अपनी सदस्यता समाप्त होने के बाद, सभापति या लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष अपील करने का अधिकार होगा।
बिल में आगे कहा गया है कि यह अपील सदस्यता खत्म होने की घोषणा की तारीख से 15 दिन के अंदर की जानी चाहिए। साथ ही सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को 60 दिन के अंदर अपील पर फैसला करना चाहिए। तिवारी ने कहा कि विधेयक उद्देश्य दोहरे लक्ष्य को प्राप्त करना है।
उन्होंने कहा कि एक लक्ष्य यह है कि सरकार की स्थिरता पर प्रभाव न पड़े। साथ ही दूसरा यह है कि सांसदों व विधायकों को वैधानिक स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने का अवसर मिले। उन्होंने कहा, "किसी मंत्रालय का संयुक्त सचिव कानून तैयार करता है। वह संसद में पेश किया जाता है, एक मंत्री इसे समझाने के लिए एक तैयार बयान पढ़ता है। फिर इसे एक औपचारिक चर्चा के लिए पेश किया जाता है और फिर व्हिप के जरिये थोपे गए दबाव के कारण सत्तापक्ष के सदस्य आमतौर पर इसके पक्ष में मतदान करते हैं और विपक्षी सदस्य इसके खिलाफ वोट करते हैं।"
जब यह पूछा गया कि क्या विधेयक का उद्देश्य व्हिप के झंझट को खत्म करना और अच्छे कानून बनाने को बढ़ावा देना है तो तिवारी ने कहा, "बिल्कुल।" तिवारी ने एक ज्यूडिशियल ट्रिब्यूनल स्थापित करने की भी अपील की, जिसमें 10वीं अनुसूची के मामलों को सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ हो। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले की अपील पांच जजों की पीठ के पास जाएगी। इसके बाद खुली अदालत में एक वैधानिक पुनरीक्षण की प्रक्रिया हो।