PM Modi: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संगठन के ऐतिहासिक संघर्ष और उसकी अडिग विचारधारा को रेखांकित किया। पीएम मोदी ने कहा कि चाहे संघ पर झूठे मामले दर्ज करने की कोशिश की गई हो या इसे प्रतिबंधित करने के प्रयास किए गए हों, संगठन ने कभी भी अपने मन में कड़वाहट नहीं पाली। पीएम मोदी ने कहा, 'आरएसएस कभी कड़वा नहीं हुआ, क्योंकि हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहां हम अच्छे और बुरे दोनों को स्वीकार करते हैं।' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संघ की एकमात्र रुचि हमेशा 'राष्ट्र के प्रति प्रेम' रही है।
पीएम मोदी ने जारी किया ₹100 का सिक्का और डाक टिकट
शताब्दी समारोह के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को एक विशेष स्मारक डाक टिकट और ₹100 का सिक्का जारी किया। पीएम मोदी ने कहा कि यह भारत के इतिहास में पहली बार है जब किसी सिक्के पर 'भारत माता' की छवि उकेरी गई है। उन्होंने बताया कि इस ₹100 के सिक्के के एक तरफ राष्ट्रीय प्रतीक है, जबकि दूसरी तरफ 'वरद मुद्रा' में सिंह पर विराजमान भारत माता की छवि है, जिसके समक्ष स्वयंसेवक समर्पण भाव से नतमस्तक हो रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा कि यह विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया सिक्का और डाक टिकट राष्ट्र निर्माण में RSS के योगदान को उजागर करता है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 1963 में RSS ने गणतंत्र दिवस परेड में भी गर्व से भाग लिया था, और जारी किए गए डाक टिकट पर उसी ऐतिहासिक पल की छवि है।
देश प्रेम के लिए संघर्ष और बदले की भावना से दूरी
प्रधानमंत्री मोदी ने संघ के उन ऐतिहासिक योगदानों को याद किया जब संगठन ने देश के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा, 'संघ ने अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है।' पीएम मोदी ने कहा कि संघ की भावना को कुचलने और उस पर झूठे आरोप लगाने के कई प्रयास हुए, लेकिन आरएसएस ने कभी भी बदले की भावना से लड़ाई नहीं लड़ी। उन्होंने संघ के इस निस्वार्थ चरित्र की प्रशंसा करते हुए कहा कि तमाम चुनौतियों के बावजूद, संघ का एकमात्र उद्देश्य हमेशा देश के प्रति निस्वार्थ प्रेम रहा है।
आजादी के बाद का काला अध्याय: 1948 का प्रतिबंध
आरएसएस की मुखपत्रिका 'द ऑर्गनाइजर' के अनुसार, संघ ने आजादी के बाद भी कई कड़े इम्तिहान देखे हैं। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, 1 फरवरी 1948 की आधी रात को संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के उत्तराधिकारी एम.एस. गोलवलकर, जिन्हें स्वयंसेवकों द्वारा 'श्री गुरुजी' के नाम से पूजा जाता है, को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके ठीक तीन दिन बाद 4 फरवरी को संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
हालांकि, जांच जल्द ही इस बात की पुष्टि कर चुकी थी कि गांधीजी की हत्या में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं थी। गोलवलकर जी को छह महीने बाद रिहा कर दिया गया, लेकिन 'द ऑर्गनाइजर' के मुताबिक, तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दबाव के कारण उन्हें नवंबर 1948 में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, ताकि संघ को सरकार की छत्रछाया में लाया जा सके।
गोलवलकर की दूसरी बार गिरफ्तारी के बाद, स्वयंसेवकों ने देशव्यापी सत्याग्रह शुरू किया। जनता के बढ़ते दबाव के सामने सरकार को झुकना पड़ा और अंततः 12 जुलाई 1949 को बिना किसी शर्त के संघ पर से प्रतिबंध हटा लिया गया। गोलवलकर जी को अगले ही दिन रिहा कर दिया गया। बाद में 1954 में बिहार सहित अन्य मामलों में भी उन्हें कोर्ट ने बरी कर दिया, जिसे आरएसएस हमेशा दोषमुक्ति के रूप में याद करता है।
पीएम मोदी ने याद किया श्री गुरुजी का संदेश
'गुरुजी को झूठे आरोपों में जेल भेज दिया गया और उन्हें सलाखों के पीछे यातनाएं भी झेलनी पड़ीं। फिर भी जब वह आजाद होकर बाहर आए, तो उन्होंने सभी को याद दिलाया कि जैसे जीभ गलती से कट जाने पर कोई अपने दांत नहीं निकालता, वैसे ही किसी को अपने ही समाज के खिलाफ नहीं होना चाहिए।'