Save Aravalli Hills: पर्यावरण मंत्रालय का दावा- अरावली को लेकर फैलाया जा रहा भ्रम तथ्यों से परे

Save Aravalli Hills: केंद्र सरकार ने उन खबरों को खारिज कर दिया है जिनमें कहा गया था कि बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति देने के लिए अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में बदलाव किया गया है। सरकार ने अरावली पर्वतीय क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से लगाए गए प्रतिबंध का हवाला देते हुए यह बात कही

अपडेटेड Dec 22, 2025 पर 6:15 PM
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Save Aravalli Hills: पर्यावरण मंत्रालय का दावा है कि अरावली के बारे में गलत जानकारी फैलाई जा रही है

Save Aravalli Hills: अरावली पहाड़ियां और पर्वत श्रंखलाएं चार राज्यों के 37 जिलों में फैली हुई हैं, जिनका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर है। इन 37 जिलों में से राजस्थान का हिस्सा 73.8% है। इसके बाद गुजरात (16.9%), हरियाणा (8.8%) और एनसीटी का हिस्सा (0.42%) आता है। एक सरकारी विश्लेषण के अनुसार, अरावली पर्वतमाला के जिलों में कृषि/खेती प्रमुख भूमि उपयोग की श्रेणी में है। जो हरियाणा में 69 फीसदी, राजस्थान में 88.1 फीसदी, गुडरात में 52.6 फीसदी है।

कुल मिलाकर अरावली पहाडियों और पर्वतमालाओं में आने वाले 37 जिलों के कुल भोगोलिक क्षेत्र का लगभग 54.8 फीसदी कृषि योग्य भूमि है। राजस्थान मे आरएफ/पीए और ईएसजेड के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र कुल मिलाकर लगभग 18.6 फीसदी है। गुजरात में 8.9 फीसदी और हरियाणा में 0.5 फीसदी है। जबकि दिल्ली में एक महत्वपूर्ण हिस्सा यानि 20.8 फीसदी अधिसूचित संरक्षण के अंतर्गत है।

इस प्रकार अरावली पर्वतमाला के तहत आने वाले 37 जिलों के कुल भोगोलिक क्षेत्र का लगभग 15.4 फीसदी हिस्सा सुरक्षात्मक व्यवस्था के अधीन आता है। अरावली पर्वमाला और पर्वत श्रंखलाओं के पहाडी क्षेत्रों में विधायी रुप से स्वीकृत खनन पट्टों के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र अत्यंत सीमित है। जो कि मात्र 277.89 वर्ग किमी है।


या फिर अरावली में आने वाले 37 जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 0.19 फीसदी है। इससे ये भी साबित हो जाता है कि ये हिस्सा बहुत छोटा है और कानूनी रुप से ये नगण्य क्षेत्र ही स्वीकृत खनन पट्टों के अधीन है।

अरावली के भविष्य पर उठे सवाल

लेकिन सवाल उठने लगे हैं कि आखिर सरकार ने अरावली की परिभाषा क्यों बदली? अरावली के लिए 100 मीटर का मानक तय करने के पीछे क्या मंशा है? आपने अरावली को खनन के हवाले क्यों किया? क्या आप जनता को यह बात समझाने में असफल रहे हैं कि अरावली की परिभाषा तय करने के पीछे अरावली में खनन बढ़ाने की मंशा नहीं है? आखिर सच क्या है।

सवाल तो यही उठ रहा है कि सरकार लोगों को कैसे समझाएगी कि अरावली सुरक्षित है? केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि वे देश को ये आश्वस्त करना चाहता हूं कि अरावली पूरी तरह से सुरक्षित है। भूपेन्द्र यादव ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का गहन अध्ययन किए बिना और इसकी पृष्ठभूमि समझे बिना निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं, जो तथ्यों से परे हैं।

सुप्रीम कोर्ट नेकी समिति का गठन

सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि अरावली की कोई नई परिभाषा नहीं दी गई है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय में अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं में अवैध खनन का मुद्दा लंबे समय से चल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने W.P. (Civil) संख्या 4677/1985 (एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य) तथा W.P. (Civil) 202/1995 (टी.एन. गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम भारत संघ) में सुनवाई करते हुए 9 मई 2024 को अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की एक समान परिभाषा प्रस्तावित करने के लिए एक समिति का गठन किया।

समिति के अध्यक्ष के रूप में सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और सदस्य के रूप में दिल्ली सरकार (NCT), हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के वन विभाग के सचिव, भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI), केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया।

इसके बाद फिर 12 अगस्त 2025 के अपने आदेश मे सर्वोच्च न्यायालय ने ये दोहराया कि खनन की अनुमति देते समय विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाए जा रहे असंगत मानदंडों को एक करते हुए एक ही समान परिभाषा की आवश्यकता है। न्यायालय ने विशेष रूप से पहाड़ी के चारों ओर 100 मीटर तक खनन की अनुमति देने की प्रथा पर चिंता जताई, जिससे पतले खंभे जैसे ढांचे बचते हैं जिनके गिरने का खतरा रहता है।

अरावली श्रृंखला की परिभाषा स्पष्ट और पारदर्शी तरीके से लागू

समिति ने राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और NCT दिल्ली सरकारों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया। इसमें यह तथ्य सामने आया कि केवल राजस्थान के पास ही अरावली क्षेत्र में खनन को नियंत्रित करने के लिए औपचारिक रूप से स्थापित परिभाषा थी, जो 2002 की समिति रिपोर्ट और रिचर्ड मर्फी (1968) के लैंडफॉर्म वर्गीकरण पर आधारित है।

राजस्थान सरकार साल 2006 से इस परिभाषा का पालन कर रही है, जिसके अनुसार स्थानीय ऊंचाई से 100 मीटर या अधिक उठने वाली पहाड़ियों को घेरने वाले सबसे निचले कंटूर (Lowest Binding Contour) के भीतर आने वाले सभी लैंडफॉर्म में खनन की अनुमति नहीं दी जाती। सभी राज्यों ने इस 100 मीटर के मानक को अपनाने पर सहमति जताई। फिर इसे अधिक Objective एवं Transparent बनाने पर भी सहमति दी।

समिति की प्रमुख सिफारिशें

  • स्थानीय उतार-चढ़ाव (Local Relief) निर्धारित करने के लिए वैज्ञानिक मानदंड
  • 500 मीटर के भीतर स्थित पहाड़ियों को एक श्रृंखला मानना
  • Survey of India के नक्शों पर अनिवार्य अंकन
  • Core/Inviolate क्षेत्रों की स्पष्ट पहचान
  • सतत खनन और अवैध खनन रोकने के उपाय

सरकार के उच्च पदस्सथ सूत्र बता रहे हैं कि इन मानकों से ये स्पष्ट है कि सरकार ने अरावली की परिभाषा बदली नहीं है। बल्कि पुरानी परिभाषा को अधिक स्पष्ट और पारदर्शी तरीके से लागू किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय का 20 नवंबर 2025 का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने समिति की दी हुई परिभाषा को स्वीकार कर लिया और Core/Inviolate क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध जारी रखा है। साथ ही MPSM (Management Plan for Sustainable Mining) बनने तक नए खनन पट्टों पर रोक ही नहीं लगाई। बल्कि मौजुदा में चल रहे खनन के काम को सख्त शर्तों के साथ जारी किया।

जहां पहले से 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों में खनन पट्टे स्वीकृत हैं। वहां खनन जारी रह सकता है। भविष्य में केवल Critical, Strategic और Deep Seated Minerals को ही छूट दी गई है। चिन्हित क्षेत्रों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध जारी रहेगा। समिति के मुताबिक संरक्षित क्षेत्रों, टाइगर रिजर्व और कॉरिडोर, Eco Sensitive Zone (ESZ), संरक्षित क्षेत्र की सीमा से 1 किमी तक, रामसर साइट्स और वेटलैंड से 500 मीटर, CAMPA या सरकारी फंड से विकसित क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का खनन बैन है।

सतत खनन हेतु दिशा-निर्देश

वन भूमि में खनन के लिए Forest Clearance अनिवार्य रहेगा। Compensatory Afforestation और NPV के लिए खनन करने वाली कंपनियां बाध्य होंगी। छह-मासिक अनुपालन रिपोर्ट सरकार को देना होगा। उधर ड्रोन, सीसीटीवी और ई-चालान से अवैध खनन पर निगरानी और कंट्रोल रखा जाएगा। साथ ही राज्य सरकारों को अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।

अरावली क्षेत्र के कुल 1.44 लाख वर्ग किमी में से वैध खनन की केवल 0.19% (277.89 वर्ग किमी) क्षेत्र में इजाजत है। इसके अलावे दिल्ली में कहीं भी खनन की अनुमति नहीं है। इसलिए सरकारी सूत्र दावा कर रहे हैं कि अरावली पहाड़ों और श्रंखला में वर्तमान समय में भी सीमित क्षेत्रों में खनन हो रहा है।

ऐसा भी नहीं है कि साल 2006 में परिभाषित अरावली पहाड और श्रंखला के अलावा समस्त शेष रहे अरावली पहाड़ और श्रंखला में खनन की छुट दे दी गई हो। इसलिए सरकारी सूत्रों का मानना है कि अरावली को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है जो सच नहीं है।

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