सर क्रीक को लेकर पाकिस्तान लंबे समय से करता रहा है साजिश!
Sir Creek: जाहिर है, राजनाथ सिंह की तरफ से पाकिस्तान को कड़ी और साफ चेतावनी दी गई है। और चेतावनी भी गुजरात के कच्छ जिले के मुख्यालय भुज में विजयादशमी के मौके पर सैन्य छावनी में शस्त्रपूजा करते हुए दी गई है। ध्यान रहे कि कच्छ का ही दलदली हिस्सा है सर क्रीक, वो नाला, जिस पर पाकिस्तान अपना हक जताता है, वो भी बिना वजह
सर क्रीक में सीमा की सुरक्षा करते भारतीय सुरक्षा बल
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के ताजा बयान की वजह से एक बार फिर सर क्रीक की तरफ देश के लोगों का ध्यान गया है। उन्होंने कहा है कि जिस तरह से हाल में पाकिस्तान की फौज ने सर क्रीक के सभी इलाकों में अपना मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया है, वो उसकी नीयत बताता है। रक्षा मंत्री ने चेतावनी दी है कि अगर सर क्रीक के इलाके में पाकिस्तान की तरफ से कोई भी हिमाकत की गई, तो उसे ऐसा करारा जवाब मिलेगा कि उसका इतिहास और भूगोल दोनों बदल जाएंगे। उन्होंने याद दिलाया कि 1965 की जंग में भारत की सेना ने लाहौर तक पहुंचने का सामर्थ्य दिखाया था और आज 2025 के साल में पाकिस्तान को याद रखना चाहिए कि कराची का एक रास्ता क्रीक से ही होकर गुजरता है।
जाहिर है, राजनाथ सिंह की तरफ से पाकिस्तान को कड़ी और साफ चेतावनी दी गई है। और चेतावनी भी गुजरात के कच्छ जिले के मुख्यालय भुज में विजयादशमी के मौके पर सैन्य छावनी में शस्त्रपूजा करते हुए दी गई है। ध्यान रहे कि कच्छ का ही दलदली हिस्सा है सर क्रीक, वो नाला, जिस पर पाकिस्तान अपना हक जताता है, वो भी बिना वजह।
संकेत साफ हैं, अगर पाकिस्तान ने सर क्रीक में कोई भी घुसपैठ की, अपने कदम आगे बढ़ाये, तो भारत उसका कड़ा जवाब देगा। और जवाब सिर्फ स्थानीय स्तर पर सीमित नहीं होगा, आगे बढ़कर कार्रवाई की जाएगी, इसलिए रक्षा मंत्री के बयान में कराची का जिक्र है।
पाकिस्तान का प्रमुख शहर है कराची, जो पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद वर्षों तक उसकी राजधानी रहा। सर क्रीक से कराची की दूरी भी खास नहीं, ढाई- तीन सौ किलोमीटर के आसपास। इसलिए राजनाथ सिंह पाकिस्तान और उसके सियासी-सैन्य हुक्मरानों को सर क्रीक से होते हुए कराची को जाने वाले रास्ते की याद दिला रहे हैं, ताकि किसी भ्रम या खुशफहमी में न रहे पाकिस्तान।
सर क्रीक में क्या कर रहा है पाकिस्तान?
दरअसल ये चेतावनी देने की नौबत इसलिए आई है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान सर क्रीक के इलाके में लगातार सैन्य संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान की तरफ से की जा रही उसकी ये कारगुजारी अगर शक पैदा करती है, तो ये स्वाभाविक ही है और इसलिए राजनाथ सिंह की तरफ से चेतावनी देने की आवश्यकता भी आन पड़ी है।
वैसे सर क्रीक को लेकर पाकिस्तान का साजिश और मक्कारी वाला रवैया कोई नया नहीं है। ये आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था। और यही कारण है कि सर क्रीक भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दों में से एक के तौर पर लगातार बना हुआ है।
क्या है सर क्रीक?
सवाल उठता है कि आखिर सर क्रीक क्या है, जिसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले छह दशक से विवाद है, जो सुलझ नहीं रहा है। दरअसल कश्मीर की तरह ही सर क्रीक का भी मसला है, जिस पर भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है।
जहां तक सर क्रीक का सवाल है, ये एक ऐसा नाला है, जो गुजरात के कच्छ जिले और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बीच है। ये नाला भले सर क्रीक के तौर पर ही ज्यादातर पुकारा जाता हो, लेकिन कच्छ के पुराने दस्तावेजों में इसे सिर क्रीक कहा गया है।
इसका कारण ये बताया जाता है कि पहले इस नाले में सीरी नाम की मछली पाई जाती थी, जिसके नाम पर इस नाले का नाम पड़ा सिर क्रीक। बाद में इसे सर क्रीक के तौर पर ही ज्यादा पहचान मिली, क्योंकि अंग्रेजी में सिर और सर एक ही ढंग से लिखा जाता है।
सर क्रीक की कुल लंबाई करीब 68 किलोमीटर की है, जबकि इसके आगे का दलदली इलाका, जो बॉर्डर पिलर नंबर 1175 पर खत्म होता है, वो 36.4 किलोमीटर का है। इस तरह से कुल 104.4 किलोमीटर लंबाई का ये इलाका ही भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद की जड़ है।
रिपोर्टिंग के दिनों में सर क्रीक इलाके और बॉर्डर पिलर नंबर 1175 की तस्वीर
कारण ये कि दोनों ही देशों के बीच सीमा को लेकर जो आपसी सहमति बनी, वो जम्मू के सांभा सेक्टर से शुरु होकर बॉर्डर पिलर नंबर 1175 तक ही है, जो कच्छ के रण में है। इसके आगे है सर क्रीक, जिसे लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है भारत- पाकिस्तान के बीच।
रियासत के दौर से चला आ रहा विवाद
वैसे देखा जाए तो सर क्रीक का विवाद सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है, पाकिस्तान के अस्तित्व में आने से भी पहले का। आजादी के पहले कच्छ भारत की एक प्रमुख रियासत थी, जिसके राजा महाराव के तौर पर संबोधित किये जाते थे।
बीसवीं सदी की शुरुआत में कच्छ महाराव और सिंध प्रांत के तत्कालीन प्रशासन के बीच एक फौजदारी मामले को लेकर विवाद शुरू हुआ, जो वारदात सर क्रीक इलाके में हुई थी। ऐसे में उस वारदात से जुड़ा मामला कहां चलेगा, महाराव कच्छ की अदालत में या फिर सिंध प्रांत की अदालत में, इसे लेकर विवाद शुरु हुआ।
इस विवाद के बाद ही कच्छ रियासत और सिंध प्रांत की सीमा तय करने के लिए 1914 में दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके आधार पर 1924-25 में सीमा को चिन्हित करने के लिए पत्थर लगाने का काम खत्म हुआ। उसके बाद से इस इलाके में कोई विवाद दोनों पक्षों के बीच नहीं रहा।
बंटवारे के बाद फिर खड़ा हुआ विवाद
लेकिन देश की आजादी के बाद जहां कच्छ रियासत का भारत में विलय हुआ, तो वही सिंध प्रांत पाकिस्तान में गया। इसके बाद एक बार फिर से विवाद की शुरुआत हुई, जिसकी परिणति कच्छ के रण में पाकिस्तान की 1965 में हुई घुसपैठ और फिर उसके बाद भारत- पाकिस्तान युद्ध के तौर पर सामने आई।
उस समय कच्छ सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जो अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ब्रिटिश प्रधानमंत्री हेरॉल्ड विल्सन की अध्यक्षता में बैठा, उसने छाड़ बेट सहित कच्छ के रण का करीब दस फीसदी हिस्सा पाकिस्तान को सौंपने का फैसला किया।
बावजूद इसके सर क्रीक को लेकर विवाद खत्म नहीं हुआ। पाकिस्तान ने नया विवाद खड़ा करते हुए ये कहना शुरू किया कि सर क्रीक का पूर्वी किनारा, जो भारत की तरफ है, उस तक उसका अधिकार बनता है। लेकिन भारत ने पाकिस्तान के इस दावे को गलत बताया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिमानों के मुताबिक, अगर दो देशों के बीच कोई नदी या नाला आता है, तो उसकी मध्यरेखा सीमा बनती है, न कि उसका किनारा।
पाकिस्तान ने इसे मानने से इंकार कर दिया और 1914 के समझौते के साथ अटैच एक नक्शे का हवाला देते हुए ये कहना शुरू किया कि उस नक्शे में सर क्रीक का पूर्वी हिसा, जो भारत की तरफ है, उस तक पाकिस्तान की सीमा दिखाई गई है।
लेकिन भारत ने पाकिस्तान के इस क्लेम को अतार्किक बताया और कहा कि 1914 के समझौते के बाद 1925 तक बॉर्डर पिलर लग गये और ऐसे में मैप पर दिखाये गये बिंदुओं का कोई मतलब नहीं है।
वाजपेयी सरकार के कंपोजिट डायलॉग प्रोसेस में भी था सर क्रीक का मुद्दा
दोनों देशों के बीच इस विवाद को सुलझाने के लिए 1969 से लेकर 1992 के बीच पांच बैठके हुईं। इसके बाद 1998 में वाजपेयी सरकार के दौरान जो कंपोजिट डायलॉग प्रोसेस शुरू हुआ, उसमें दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ाने वाले उपायों के तौर पर सर क्रीक के समाधान का मसला भी आया। लेकिन उसके बाद कारगिल में 1999 में हुई पाकिस्तानी घुसपैठ ने इस सिलसिले को एक बार फिर से पटरी से उतार दिया, उल्टे दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया। युद्ध शुरू हुआ, और भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को मई से जुलाई 1999 तक चले ऑपरेशन के दौरान कारगिल के इलाके से खदेड़ दिया।
पाकिस्तान के घुटनों पर आ जाने और अपने सभी लक्ष्य हासिल करने के बाद भारत ने कारगिल में युद्ध विराम कर दिया, लेकिन महीने भर बाद ही कारगिल के तनाव की छाया कच्छ में दिखी। कच्छ के इलाके में पाकिस्तान लगातार अपने टोही विमानों को भेज रहा था। भारतीय सेना भी सतर्क थी। ऐसे में जैसे ही पाकिस्तानी टोही विमान अटलांटिक, भारतीय सीमा में घुसा, कच्छ के नलिया बेस से उड़े भारतीय विमानों ने उसे 10 अगस्त 1999 को मार गिराया।
अटलांटिक का मलबा उसी सर क्रीक के इलाके में गिरा, जिस इलाके को हथियाने की साजिशें पाकिस्तान लगातार करते रहा है। अटलांटिक में सवार सभी 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तान ने सबक नहीं सीखा।
इस घटना के बाद से पाकिस्तान ने सर क्रीक के इलाके में पाकिस्तान रेंजर्स की जगह पाक मरीन्स की तैनाती कर दी। पाकिस्तान मरीन्स पाकिस्तानी नेवी की स्पेशल कमांडो यूनिट है, जो पानी के साथ ही दलदली जमीन पर भी ऑपरेशन कर सकती है, विशेष तौर पर इसके लिए प्रशिक्षित है।
पाकिस्तीन मरीन्स की तैनाती के पहले तक, सर क्रीक में भारत की तरफ से जहां बीएसएफ तैनात थी, वही पाकिस्तान की तरफ से पाकिस्तान रेंजर्स, जो बीएसएफ जैसी ही पाकिस्तान की सरहदी सुरक्षा पारा मिलिट्री फोर्स है। लेकिन पाकिस्तान ने साजिश के तहत चुपके से पाकिस्तान मरीन्स को लगा दिया।
भारत को जैसे ही ये ध्यान में आया, सर क्रीक के इलाके में चौकसी बढ़ाने के लिए फ्लोटिंग बॉर्डर आउटपोस्ट की व्यवस्था की गई। ये फ्लोटिंग बीओपी, वो विशेष जल जहाज हैं, जिस पर बीएसएफ के जवान अपने हथियारों के साथ तैनात रहते हुए, चौकसी बरत सकते हैं। क्रीक के दलदली इलाके में जमीन पर खड़ा नहीं रहा जा सकता, इसलिए इनका होना सुविधाजनक रहा।
सर क्रीक इलाके की सुरक्षा में तैनात BSF अधिकारी के साथ तस्वीर
UPA सरकार में भी अटकी बात, UN की डेडलाइन भी हुई खत्म
पाकिस्तान के सामने सर क्रीक में भारत की इन्हीं तैयारियों के बीच केंद्र में कांग्रेस की अगआई वाली UPA सरकार के आ जाने के बाद दोनों देशों के बीच सर क्रीक को लेकर फिर से कई राउंड की बातचीत हुई। बातचीत के इस सिलसिले के दौरान बनी सहमति के आधार पर वर्ष 2005-07 में सर क्रीक का दोनों देशों की तरफ से साझा सर्वे हुआ।
ज्वाइंट सर्वे के बाद एक रिपोर्ट भी तैयार हुई, लेकिन उसके बाद आगे कोई फैसला नहीं हो पाया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र की तरफ से दी गई वो समय सीमा भी खत्म हो गई, जिस समय सीमा तक भारत और पाकिस्तान को सर क्रीक विवाद को सुलझा लेना था।
संयुक्त राष्ट्र ने लंबे समय से विवाद की जद में रहे इस मुद्दे को तय करने के लिए 2004 में पांच साल की समयसीमा तय की थी और कहा था कि 2009 तक दोनों देश सर क्रीक का मसला सुलझा लें, ताकि इसी के हिसाब से तय हो सके उनकी अंतरराष्ट्रीय जल सीमा भी और इस सीमा के हिसाब से एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन।
इस समय सीमा के समाप्त हो जाने तक दोनों देशों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाने पर संयुक्त राष्ट्र ने सर क्रीक के करीब के समुद्री इलाके को अंतरराष्ट्रीय जल घोषित करने की धमकी भी दी थी, जिस स्थिति में कोई भी तीसरा देश समुद्र सीमा से 200 नॉटिकल माइल की दूरी के बीच किसी भी किस्म का खनन या दूसरे फायदे उठा सकता है। सामान्य परिस्थितियों में किनारे से लेकर 200 नॉटिकल माइल तक उस देश का एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन माना जाता है, जिसका किनारा वहां लगा होता है।
दो इंच ज्यादा हिस्सा भी पहुंचा सकता है बड़ा नुकसान
26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान प्रायोजित मुंबई आतंकी हमले के बाद सर क्रीक को लेकर बातचीत का रास्ता आगे बढ़ा नहीं, विवाद जस का तस बना रहा। दरअसल विवाद सुलझाने के लिए भारत सर क्रीक के मामले में कोई उदारता भी नहीं दिखा सकता, क्योंकि सर क्रीक के हिसाब से ही भारत और पाकिस्तान के बीच की समुद्री जल सीमा भी तय होनी है। सर क्रीक में अगर दो इंच ज्यादा हिस्सा भी पाकिस्तान को दिया जाए, तो उसका असर समंदर के अंदर सैकड़ों नॉटिकल माइल के संसाधनों पर पड़ सकता है।
सर क्रीक के इलाके में तेल और गैस के भारी भंडार की संभावना भी लंबे समय से व्यक्त की जाती रही है। इसलिए इसका सामरिक ही नहीं, आर्थिक महत्व भी काफी बड़ा है। यही वजह है कि भारत इस मामले में कोई ढील बरतने को तैयार नहीं और पाकिस्तान इसे पूरा का पूरा हड़पने के लिए लगातार साजिशें करता रहता है।
पूरा सर क्रीक पाकिस्तान को देने की थी तैयारी!
सर क्रीक को लेकर दिसंबर 2012 में देश के अंदर भी काफी बड़ा सियासी विवाद हुआ। तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को इस बात के संकेत मिले थे कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के चक्कर में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरा सर क्रीक पाकिस्तान को देने की सोच रहे हैं और इस बारे में 15 दिसंबर को फैसला होने जा रहा है।
इस आशंका के मद्देनजर मोदी ने 12 दिसंबर 2012 को एक पत्र लिखकर मनमोहन सिंह को कहा कि अगर भारत सरकार पूरे सर क्रीक का कब्जा पाकिस्तान को देने की तैयारी कर रही है, तो वो इससे बाज आए।
वह समय गुजरात में विधानसभा चुनावों का था, इसलिए मनमोहन सिंह की तरफ से इसका तत्काल खंडन किया गया और मोदी के आरोपों को बेबुनियाद करार दिया गया। लेकिन मोदी फिर भी आश्वस्त नहीं हुए और कहा कि प्रधानमंत्री का इस मामले में जवाब साफ नहीं है। उन्होंने ये मांग कर डाली कि प्रधानमंत्री ये साफ करें कि सर क्रीक के मामले में कोई घोषणा की जाने वाली है या नहीं।
सर क्रीक को लेकर हुए इस आंतरिक विवाद में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी कूद पड़ी थीं, उन्होंने गांधीनगर के कलोल में एक चुनावी सभा के दौरान कहा कि कांग्रेस ने देश के हितों, एकता और अखंडता के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया है, लेकिन कुछ लोग उकसाने वाली बातें करके लोगों को भड़काना चाहते हैं।
हालांकि, इस आंतरिक विवाद का बड़ा असर ये हुआ कि सर क्रीक को लेकर पाकिस्तान के साथ चलने वाली बातचीत पूरी तरह रुक गई, भारत सरकार के रवैये में कोई लचीलापन आने की आशंका खत्म हो गई। देश और खास तौर पर गुजरात की जनता सर क्रीक में कुछ भी गंवाना बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, जो 1965 में छाड़ बेट का इलाका पाकिस्तान के पास चले जाने का दर्द कभी भूल नहीं पाई।
2014 के बाद से बढ़ाई गई सर क्रीक की सुरक्षा
जब 2014 में मोदी ने खुद प्रधानमंत्री के तौर पर देश की बागडोर संभाली, सर क्रीक इलाके में सुरक्षा को तेजी से मजबूत किया गया। सर क्रीक के इलाके की सुरक्षा करने वाली बीएसएफ को लगातार आधुनिक हथियार, उपकरण, फास्ट क्राफ्ट और जहाज मुहैया कराये गये। सर क्रीक के इलाके में एक नहीं, तीन- तीन स्थाई सुरक्षा चौकियां खड़ी की गईं। सुरक्षा को और धार देने और पाकिस्तान की किसी भी गंदी हरकत का तगड़ा जवाब देने के लिए अमेरिका में बने फास्ट पेट्रोल वेस्सेल की भी तैनाती की गई।
बीएसएफ के साथ ही सेना ने भी इस इलाके में एहतियात के तौर पर अपनी तैयारियां काफी बढ़ाई हैं, पिछले कुछ वर्षों में। सर क्रीक को लेकर भारत सरकार के कड़े इरादे का संकेत देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लगातार सर क्रीक का दौरा करते रहे हैं, सुरक्षा तैयारियों की समय- समय पर समीक्षा करते रहे हैं।
हालांकि, भारत की गंभीर चेतावनी के बावजूद पाकिस्तान सर क्रीक के इलाके में अपनी गतिविधियों से बाज नहीं आया है। उसने हाल के वर्षों में सर क्रीक के पास इकबाल बाजवा पोस्ट बनाई है। ये उसकी खुराफाती कोशिश का ही नमूना मानी जा रही है। इसके अलावा उसने इस इलाके में अपने जवानों की तैनाती भी बढ़ाई है।
दरअसल कश्मीर में अब अपनी दाल कुछ खास नहीं गल पाने के कारण पाकिस्तान सर क्रीक में नापाक हरकत करने की साजिश रच रहा है। POJK में पाकिस्तानी फौज और शासन के खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहा है, उधर से ध्यान बंटाने के लिए भी सर क्रीक में पाकिस्तान कोई दुस्साहस कर सकता है, खास तौर पर मुल्ला जनरल असीम मुनीर के आर्मी चीफ रहने के दौरान, जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मुंह की खाने के बाद भी खुद को फील्ड मार्शल के तौर पर प्रोमोट करवा लिया।
इसी के मद्देनजर राजनाथ सिंह ने कच्छ जाकर पाकिस्तान को चेतावनी दी है, सर क्रीक को लेकर। पाकिस्तान के फौजी हुक्मरानों को अक्ल आए, तो बेहतर, अन्यथा भारतीय सुरक्षा बल सबक सिखाने को हैं तैयार। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही कह रखा है, ऑपरेशन सिंदूर जारी है।