SHANTI Act: अमेरिका ने भारत के 'SHANTI' एक्ट का किया स्वागत, दोनों देशों के बीच खुलेंगे निवेश और तकनीक के नए दरवाजे

SHANTI Act: अमेरिकी दूतावास ने अपने बयान में कहा है कि वे भारत के साथ ऊर्जा क्षेत्र में 'जॉइंट इनोवेशन' और 'R&D' के लिए पूरी तरह तैयार है। पिछले दो दशकों से भारत-अमेरिका परमाणु समझौता कानूनी और नियामक बाधाओं के कारण धीमा पड़ा था, लेकिन इस नए कानून ने उन सभी अड़चनों को दूर कर दिया है

अपडेटेड Dec 23, 2025 पर 12:02 PM
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अमेरिकी दूतावास ने इसे दोनों देशों के बीच 'ऊर्जा सुरक्षा और नागरिक परमाणु सहयोग की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर' बताया है

SHANTI Act: भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में पिछले सात दशकों का सबसे बड़ा बदलाव अब हकीकत बन चुका है। संसद से पारित होने के बाद, 'शांति' (SHANTI) कानून को शनिवार को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई। इस ऐतिहासिक कदम का अमेरिका ने गर्मजोशी से स्वागत किया है। अमेरिकी दूतावास ने इसे दोनों देशों के बीच 'ऊर्जा सुरक्षा और नागरिक परमाणु सहयोग की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर' बताया है। इस नए कानून के साथ ही भारत ने परमाणु क्षेत्र में सरकारी एकाधिकार को खत्म कर निजी निवेश के लिए रास्ते खोल दिए हैं।

क्या है SHANTI कानून और यह क्यों है खास?

SHANTI कानून, 2025 भारत के पुराने 'परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962' और 'सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010' की जगह लेगा। इसका मुख्य उद्देश्य भारत की परमाणु क्षमता को वर्तमान के 8.2 GW से बढ़ाकर 2047 तक 100 GW तक ले जाना है।


निजी भागीदारी: अब भारतीय निजी कंपनियां और जॉइंट वेंचर्स परमाणु संयंत्र बना सकेंगे, उनके मालिक बन सकेंगे और उन्हें संचालित भी कर सकेंगे।

AERB को मिली ताकत: परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) को अब वैधानिक दर्जा दे दिया गया है, जिससे इसकी स्वायत्तता और सुरक्षा निगरानी और मजबूत होगी।

स्पेशल ट्रिब्यूनल: विवादों के निपटारे के लिए एक समर्पित 'न्यूक्लियर ट्रिब्यूनल' की स्थापना की जाएगी।

विदेशी निवेश की राह से हटी सबसे बड़ी रुकावट

अमेरिकी कंपनियों और अन्य विदेशी निवेशकों के लिए सबसे बड़ी चिंता 'सप्लायर लायबिलिटी' थी। पुराने कानून के तहत, किसी दुर्घटना की स्थिति में उपकरण सप्लाई करने वाली कंपनी को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता था। SHANTI कानून ने इस क्लॉज को हटा दिया है। अब किसी भी परमाणु घटना की जिम्मेदारी मुख्य रूप से प्लांट ऑपरेटर की होगी, सप्लायर की नहीं। यह बदलाव भारत के नियमों को अंतरराष्ट्रीय मानकों (CSC) के अनुरूप लाता है, जिससे वेस्टिंगहाउस और जीई-हिताची जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में रिएक्टर लगाना अब आसान हो जाएगा।

अमेरिका के साथ मजबूत होगी 'एनर्जी पार्टनरशिप'

अमेरिकी दूतावास ने अपने बयान में कहा है कि वे भारत के साथ ऊर्जा क्षेत्र में 'जॉइंट इनोवेशन' और 'R&D' के लिए पूरी तरह तैयार है। पिछले दो दशकों से भारत-अमेरिका परमाणु समझौता कानूनी और नियामक बाधाओं के कारण धीमा पड़ा था, लेकिन इस नए कानून ने उन सभी अड़चनों को दूर कर दिया है। अब न केवल बड़े परमाणु प्लांट, बल्कि स्मॉल मॉड्युलर रिएक्टर्स (SMR) जैसी आधुनिक तकनीक में भी दोनों देश मिलकर काम कर सकेंगे।

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